_ -नवीन मणि त्रिपाठी
कानपुर शहर का ठेठ फक्कड़ी अंदाज "वाह गुरु " और "झाडे रहो कलट्टर गंज "इस तरह के अनेक चर्चित वाक्य हर गली चौराहे पर अपना रस बिखेर ही देते हैं । औद्योगिक जीवन शैली ,घनी आबादी, मशीनों ,चिमनियों के कचरे और कीचड में रचा बसा शहर अपनी पहचान आज भी सजोये हुए है । कहा जाता है कमल कीचड़ में खिलते हैं । यह सच भी है । आजादी की जंग हो या वैचारिक क्रांति के लिए साहित्यकारों की भूमिका , इस शहर ने अनेको कमल खिलाये हैं ।
कानपुर साहित्यकारों की धरती रही है। यहाँ की उन्मुक्त लेखन शैली देश को जागरूक करने में अपनी महती भूमिका के लिए अति महत्त्वपूर्ण पहचान रखती है । देश की आजादी के लिए कानपुर के साहित्यिक पुरोधाओ ने देश के लिए उर्जावान साहित्य लिखकर देश के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए महत्वपूर्ण आलम्ब प्रस्तुत किया है । क्रांतिकारियों की धरती पर कभी क्रांतिकारी साहित्यकारों की कभी कमी नहीं रही । कानपुर को साहित्य की राजधानी मान लेना भी मान लेना तर्क संगत ही होगा । देश के बड़े बड़े साहित्यकारों का कर्म क्षेत्र कानपुर रहा है । इसके अतिरिक्त हिंदी साहित्यकारों का जन्मदाता भी कानपुर रहा है ।
आदि कवि महर्षि बाल्मीकि ( बिठूर) जिन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की है वह पवित्र धरती कानपुर की ही है । काव्य धारा में निराला जी नीरज जी व् अनेक रचनाकारो ने कानपुर के साहित्यिक अमरत्व का परचम लहराया है । आज की चर्चा यदि हम कानपुर के लेखको के सम्बन्ध में करें तो हमें भारतेंदु युग से ही शुरुआत करनी चाहिए ।
भारतेंदु युग के समकालीन आदरणीय प्रताप नारायण मिश्र जी जिनका कर्म क्षेत्र कानपुर ही रहा है ।आपने कानपुर में नाटक सभा नाम का एक संगठन भी तैयार किया था । आपका कार्य कल 1856 से1895 के मध्य रहा है । मिश्र जी ने सामाजिक कुरीतियों पर गहरा कटाक्ष किया है। मिश्र जी की पहचान कुशल नाटककार ,निबन्धकार ,और अनुवादक के रूप में थी । स्वंत्रता संग्राम में मिश्र जी की कलम समाज में नव चेतना के साथ लोगों को जागरुक किया । स्पष्ट ,सटीक व् सामयिक लेखन के द्वारा देश के हित में उन्होंने सच को लिखना ही बेहतर समझा । लगभग उनकी सभी कृतियाँ देश हित पर ही केन्द्रित मिलती हैं ।
मिश्र जी ने "ब्रह्मण" नामक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया था ।
कलि कौतूहल, कलि प्रभाव, हठी हमीर , गो संकट आदि अमर नाटकों की रचना कर कानपुर एवम देश के साहित्य को गर्वान्वित किया है ।
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कानपुर के महान साहित्यिक पत्रकार लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी जी की कलम में अद्भुद लेखन शक्ति थी ।विद्यार्थी जी प्रताप नामक पत्रिका का संपादन किया था । उनके लेख के एक एक शब्द आग उगलते थे । अंग्रेजी शासन और व्यवस्था के खिलाफ उनके लेख बेहद ओजस्वी हुआ करते थे । कहा जाता है सरदार भगत सिंह भी उनसे कभी कभी मिलने आते थे । अपने निर्भीक चिंतन को विद्यार्थी जी ज्यो का त्यों लिखने में कोई संकोच नहीं करते थे । जलियावाला बाग कांड और सरदार भगत सिंह की फांसी पर अपना तीखा विचार विचार प्रवाह उन्होंने प्रताप में प्रकाशित किया था । उनके आजादी के क्रांतिकारी लेख जन मानस पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ते थे । गणेश शंकर विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे ।
एक बार ग्वालियर के महाराज रात्रि भोज पर आमंत्रित कर उन्हें एक शाल भेट की थी ।आशय अप्रत्यक्ष था की प्रताप में ग्वालियर रियासत के लिए नकारात्मक टिप्पणियां ना प्रकाशित हों । विद्यार्थी जी शाल तो ग्रहण कर लिया लेकिन उस शाल का उपयोग उन्होंने जीवन भर नहीं किया । लेखन के प्रति समर्पण भाव का ज्वलंत उदारण आज के पत्रकारों के लिए प्रेरणा स्रोत है ।
बाद में उन्होंने आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी जी के साथ उनकी पत्रिका सरस्वती के संपादन विभाग में नौकरी भी किये
विद्यार्थी जी ने कर्मयोगी , हित वाणी , और स्वराज नामक पत्रों के लिए लेख लिखे । साम्प्रदायिक उन्माद की आग में साम्प्रदायिकता से लड़ते हुए 25 मार्च 1929 को विद्यार्थी जी शहीद हो गये ।
कानपुर के गौरवमयी स्तंभों में श्यामलाल गुप्त पार्षद जी का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है । आपका जन्म 16सितम्बर1893 में कानपुर के नरबल में हुआ था । पार्षद जी जब कक्षा पांच में पढ़ते थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी -
परोपकारी पुरुष मुहिम में पावन पद पाते देखे ।
उनके सुन्दर नाम स्वर्ण में सदा लिखे जाते देखे।।
श्याम लाल गुप्त जी ने सचिव नामक मासिक पत्र का संपादन किया । उनके कई क्रांतिकारी लेख व रचनाए क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं ।
उनका लिखा हुआ यह गीत -
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ।
झंडा ऊंचा रहे हमारा ।।
उनके इस गीत को बाद में राष्ट्र गीत के सम्मान से नवाजा गया ।
इस प्रकार कानपुर अनेक महान साहित्यकारों से गर्वान्वित होता रहा है । यदि हम नगर के साहित्यकारों पर दृष्टि पात करें । तो पाएंगे वर्तमान साहित्यकार भी साहित्य की इस परिपाटी को जीवंत रखने में एक परिमार्जन के साथ अपनी महत्त्व पूर्ण भूमिका हेतु प्रयत्नशील हैं ।
कानपुर के वर्तमान प्रसिद्ध कथाकार गिरिराज किशोर जी ना केवल कानपुर बल्कि देश के वरिष्ठ साहित्यकारों के मध्य सशक्त हस्ताक्षर के रूप में पहचाने जा रहे है । गिरिराज जी उत्कृष्ट कथाकार के साथ साथ उपन्यासकार एवम नाटक कार भी हैं ।
आप पद्म श्री पुरष्कार से अलंकृत हैं । वर्तमान हिंदी साहित्य में गिरिराज जी की अनेको महत्वपूर्ण उपलब्धिया रही हैं ।
आपकी पुस्तक पहला गिरमिटिया , ढाई घर, अंतर ध्वंस ,यातना घर अत्यंत प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं ।उनकी नयी पुस्तक मृग तृष्णा काफी चर्चा में है ।
कानपुर व देश के गौरव के रूप में पहचान बन चुके आदरणीय राजेन्द्र राव जी की कलात्मक और बिंदास लेखन शैली पाठको की पसंद की बुलंदियों को छूने में सक्षम है। निर्विवाद रूप से राव साहब की लेखन विशिष्टता समय के साथ अपनी जीवंत पृष्ठभूमि व लोकप्रियता के परिवर्तन शील उदारता के संग कलमबद्ध करने में सफल हो ही जाती है । राव साहब भी कथाकार के साथ साथ उपन्यासकार भी हैं ।आप समय समय पर उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा पुरष्कृत किये जाते रहे हैं । आपकी महत्वपूर्ण पुस्तकें असत्य के प्रयोग , पाप पुण्य से परे , सूली ऊपर सेज पिया की ,कीर्तन काफी लोक प्रिय रही हैं । आपकी पहली कहानी का नाम शिफ्ट था ।
हिंदी साहित्य में यदि कानपुर की चर्चा होगी तो प्रियंवद जी का जिक्र स्वर्णिम अक्षरों में लिपिबद्ध मिलेगा । प्रियंवद जी की अद्भुद लेखन शैली ,निराला अंदाज हरफन मौला वाली तस्वीर अपने आप में उनको अति विशिष्ट बनाती है । बेशक आपकी पहचान एक कथाकार और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्द है परन्तु मजे की बात यह है की पुस्तक लाल कनेर का फूल उनका काव्य संग्रह है । वह चर्चित और लोकप्रिय पुस्तक है। प्रियंवद जी की पहचान एक इतिहासकार के रूप में भी होती है । आपकी पुस्तक भारत विभाजन की अंतर कथा ऐतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित अमर कृति है । आपकी अन्य पुस्तकें बोसिदनी, मुट्ठी में बंद चिड़िया,एक अपवित्र प्रेम ,धर्मस्थल ,परछाई ,नाच विशेष चर्चित रहीं हैं । आपका उपन्यास वे वहां कैद हैं लोक प्रियता के स्तर पर अच्छी पहचान बना चूका है ।
कानपुर के अमरीक सिंह दीप जी की कहानियां गहरी संवेदनाओं से ओत प्रोत होती हैं । दीप जी कानपुर के वरिष्ठ कथाकार हैं । आपकी कहानियां सामाजिक व्यथाओं पर तीखा प्रहार करती हैं और दीप जी की अपनी कहानियों के माध्यम से पाठक तक अपना मौलिक सन्देश बहुत ही खूबसूरत अंदाज में पहुचाने में सफल हो जाते हैं । वैचारिक क्रांति को जन्म देने में सक्षम दीप जी कहानियों का अंत एक ऐसे मोड़ पर होता देखा गया है जहाँ विचारधाराओं का परिवर्तन स्वाभाविक तौर पर आंदोलित हो जाता है ।
दीप जी एक कुशल अनुवादक भी हैं आप ने देश विदेश की कई कहानियों का अनुवाद बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है । आपकी कहानी संग्रह "कहाँ जायेगा सिद्धार्थ" ,झाड़े रहो कलट्टर गंज ,सिर फोड़ती चिड़िया ,काला हांड़ी ,काली बिल्ली ,एक कोई और , बन पाँखी काफी प्रसिद्ध हो चुकी हैं । दीप जी का उपन्यास एक और पंचाली वर्तमान में प्रकाशित हुआ है । साहित्यिक परिवेश में एक और पांचाली की चर्चा खूब है ।
कानपुर के साहित्यकारों में वर्तमान में कुछ साहित्यकार हाल के कुछ वर्षों से अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है । इस कड़ी में युवा कथाकार गोविन्द उपाध्याय जी का नाम प्रमुख है । गोविन्द जी देश के सशक्त कथाकारों की कतार में आकर खड़े हो चुके हैं । गोविन्द जी की कहानियों में आंचलिक पृष्ठभूमि की झलक मिलती है । आंचलिकता के मर्मज्ञ कथाकार के रूप में आपकी पहचान बन चुकी है । आज कल देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में आप निरंतर दिख रहे । गोविन्द जी कहानी संग्रह पंखहीन ,समय रेत और फूकन फूफा ,सोन परी का तीसरा अध्याय ,चौथे प्रहर का विरह गीत ,आदमी कुत्ता और ब्रेकिंग न्यूज जैसी कहानी संग्रह चर्चाओं रहीं हैं ।
प्राख्यात साहित्यकार कृष्ण विहारी जी का संबंध भी कानपुर से ही है । कृष्ण बिहारी जी आबूधाबी से साहित्यिक पत्रिका "निकट " का संपादन कार्य देख रहे हैं । आपकी पहली कहानी १९७१ में प्रकाशित हुई थी कृष्ण बिहारी जी कहानियां देश बड़ी हिंदी साहित्यिक पत्रिकाओं में अक्सर देखने को मिल जाती हैं । कृष्ण बिहारी वर्ष में दो माह कानपूर में ही गुजारते हैं । आपकी महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में दो औरतें ,पूरी हकीकत पूरा फ़साना ,नातूर ,एक सिरे से दुसरे सिरे तक ,इंतजार श्वेत--- स्याम ---रतनार अच्छी संग्रह के रूप में प्रसिद्ध है । कृष्ण बिहारी जी की नई पुस्तक उसका चेहरा बाजार में आ चुकी है ।
कानपुर आज उत्कृष्ट साहित्यकारों से भरा पड़ा है । यहाँ की साहित्यिक खुशबू पूरे विश्व में हिंदी जगत के साहित्य को महका रही है । प्रेम गुप्ता मानी और राजकुमार सिंह जैसे अनेक सशक्त साहित्यकारों की चर्चा अधूरी रह गई है । अगले किसी अंक में उनकी चर्चा की जाएगी । प्राचीन और द्विवेदी युग के साहित्यकारों की विरासत को वर्तमान साहित्यकार अपनी पुरजोर लेखन की ताकत से संभालने में कामयाब हैं । सम्पूर्ण पाठक कानपुर के साहित्यिक कथाकारों के उज्जवल भविष्य की कामना करता है ।