हे केदार नाथ ,
तुम कैसे भगवान ?
हम तुमसे मिलने आए थे ,
तुम्हारा आशीर्वाद लेने |
आस्था के सागर मे डूब कर
तुम्हारा प्रसाद लेने |
पर यह क्या किया तुमने ?
क्या बिगाड़ा था हम सब ने ?
यदि आप विनाश के स्वामी हैं |
पूर्ण अंतर्यामी हैं |
पापियों को छोड़ कर
अपने ही भक्तों का विनाश कर डाला !
महिलायें पुरुषों और अबोध बच्चों का
संहार कर डाला !
निर्दोषों की लाशों से भर
लिया अपना आँगन |
आसुओं के शैलाब से डूब गया वतन |
आश्चर्य .....महान आश्चर्य !
तुम मौन होकर अपने भक्तों को ,
मरते हुये देखते रहे ?
और वे तुम्हें आखिरी सांस तक पुकारते रहे |
कहाँ चली गई तुम्हारी दया दृष्टि ?
कहाँ चली गई तुम्हारी अनंत शक्ति ?
भक्त के साथ विश्वाश घात हुआ है |
शायद तुमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है |
एक ऐसा पाप ,..।
जिसे तुम अपने आप को
शायद ही माफ कर सकोगे |
ख़ुद को कैसे भोला कह सकोगे ?
भक्तों को नहीं बचा सकते थे
शक्ति का आभास नहीं करा सकते थे |
भक्तों से पहले तुम्हें बह जाना चाहिए था |
तुम्हारा भी मंदिर
टुकड़ों मे बिखर जाना चाहिए था |
पर ये क्या आज के बाबाओं की तरह ,
आप भी हो गए ?
चेलों के पैसों से प्रमाद मे डूब गए ?
तुम्हारी इस शक्ति की दयनीय अवस्था पर |
कौन करेगा अब विश्वास तुम पर ?
तुम से ज्यादा भोला तो ,
आज का इंसान है |
तुमसे शक्ति शाली तो उसका ईमान है |
वह आज भी ....।
तुम्हें व तुम्हारे मंदिर के बचने पर ,
गर्वान्वित है |
तुम्हारी महिमा पर आज भी आशान्वित है |
पर याद रखो !
प्रकृति के सिद्धान्त मे यदि कर्मफल शाश्वत है |
तो तुम्हारे लिए भी दंड यथावत है |
आडंबर पाखंड का दंड भोगना पड़ता है |
मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||
नवीन
तुम कैसे भगवान ?
हम तुमसे मिलने आए थे ,
तुम्हारा आशीर्वाद लेने |
आस्था के सागर मे डूब कर
तुम्हारा प्रसाद लेने |
पर यह क्या किया तुमने ?
क्या बिगाड़ा था हम सब ने ?
यदि आप विनाश के स्वामी हैं |
पूर्ण अंतर्यामी हैं |
पापियों को छोड़ कर
अपने ही भक्तों का विनाश कर डाला !
महिलायें पुरुषों और अबोध बच्चों का
संहार कर डाला !
निर्दोषों की लाशों से भर
लिया अपना आँगन |
आसुओं के शैलाब से डूब गया वतन |
आश्चर्य .....महान आश्चर्य !
तुम मौन होकर अपने भक्तों को ,
मरते हुये देखते रहे ?
और वे तुम्हें आखिरी सांस तक पुकारते रहे |
कहाँ चली गई तुम्हारी दया दृष्टि ?
कहाँ चली गई तुम्हारी अनंत शक्ति ?
भक्त के साथ विश्वाश घात हुआ है |
शायद तुमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है |
एक ऐसा पाप ,..।
जिसे तुम अपने आप को
शायद ही माफ कर सकोगे |
ख़ुद को कैसे भोला कह सकोगे ?
भक्तों को नहीं बचा सकते थे
शक्ति का आभास नहीं करा सकते थे |
भक्तों से पहले तुम्हें बह जाना चाहिए था |
तुम्हारा भी मंदिर
टुकड़ों मे बिखर जाना चाहिए था |
पर ये क्या आज के बाबाओं की तरह ,
आप भी हो गए ?
चेलों के पैसों से प्रमाद मे डूब गए ?
तुम्हारी इस शक्ति की दयनीय अवस्था पर |
कौन करेगा अब विश्वास तुम पर ?
तुम से ज्यादा भोला तो ,
आज का इंसान है |
तुमसे शक्ति शाली तो उसका ईमान है |
वह आज भी ....।
तुम्हें व तुम्हारे मंदिर के बचने पर ,
गर्वान्वित है |
तुम्हारी महिमा पर आज भी आशान्वित है |
पर याद रखो !
प्रकृति के सिद्धान्त मे यदि कर्मफल शाश्वत है |
तो तुम्हारे लिए भी दंड यथावत है |
आडंबर पाखंड का दंड भोगना पड़ता है |
मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||
नवीन