तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 19 मार्च 2014

आयुध निर्माणी दिवस २०१४

आयुध निर्माणी दिवस २०१४ को पढ़ी गयीं कुछ रचनाएं मुक्तक और छंद में -

                  मुक्तक  

ये दीप आयुधों का जलाते रहेंगे हम । 
मजदूर बनके देश बचाते रहेंगे  हम ॥ 
हमको भी वक्त का ये तकाजा कबूल है । 
शरहद पे नए शास्त्र सजाते रहेंगे हम ॥ 


गीता पढ़ो या फिर पढ़ो आयत कुरान की । 
इंसानियत की राह दिखाती ईमान  की ॥ 
कातिल सियासतों से मुल्क को बचाइये । 
दरके न कोई ईंट अमन के मकान की  ॥
 

तुम्हारी चाल पे नजरें गड़ाए बैठे हैं । 
तोप कि नोक पे तुमको सजाये बैठे हैं ॥
तुम भरोसे के ना काबिल न कभी थे पहले।
सबक के वास्ते बम को बनाये बैठे हैं ॥
  
                                   छंद 

विश्व में समानता न कर पाये कोई देश ,ऐसे गुणवत्ता पूर्ण शस्त्र को सजाइये । 
शक्ति उत्पादन न क्षीण होने पाये कभी ,हौसलों के दीप से दिवस को मनाइये ॥ 
आयुध निर्माणी का पताका हो बुलंद अब ,विश्व के बाजार में तिरंगा फहराइये । 
शपथ निभाना उत्पादन के प्रहरी हो , स्वाभिमानी राष्ट्र भक्त बनके दिखाइये ॥ 


उन्नति के पथ पर विश्व कि प्रथम शक्ति जैसी भाव भंगिमा शबाब मागता है देश । 
देश कि सुरक्षा से खेल जो भी करते हैं ,ऐसे देश द्रोही का नकाब मागता है देश ॥ 
युद्ध पॉत  जलने लगे हैं आज रोज ,भ्रष्ट कार्य शैली का जबाब मागता है देश ॥ 
रक्त व पसीने कि कमाई देश वासियों की जल में डुबोने का हिसाब मागता है देश ॥ 


आयुध आभाव जब देश की विडम्बना हो खंड खंड राष्ट्र की अखंडता भी होती है । 
कर्णधार आयुधों प्रहरी तो राष्ट्र के हो, सेवा स्वाभिमान कि प्रचंडता सजोती है ॥
लक्ष्य उत्पादन विशाल गुणवत्तापूर्ण, ड्रेगन कि धूर्तता उदंडता को खोती है । 
लाज देश की बचाना आयुधों के कर्णधार , भारती माँ तुमपे घमंडता से जीती है ॥
 
                                                नवीन मणि त्रिपाठी
                                             आयुध निर्माणी कानपुर