---- पतुरिया ---
-- नवीन मणि त्रिपाठी
"अम्मा मैं बहुत अच्छे नम्बर से पास हो गई हूँ । अब मैं भी पी सी एस अधिकारी बन गयी ।"
बेटी दुर्गा ने अपने पी सी एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने की
सूचना को जैसे ही नैना को बताया नैना की आँखों से आंसू छल छला कर बहने लगे
।
"अरी मोरी बिटिया बस तुमका ही देखि देखि ई जिंदगी ई परान जिन्दा रहल
। " आज हमार सपना पूरा हो गइल । तोरे पढाई माँ आपन पूरा गहना गीठी सब बेच
देहली हम । दू बीघा खेत बिक गइल । चार बीघा गिरो रखल बा । आज तू पास हो
गइलू त समझा भगवान हमरो पतुरिया जात के सुन लिहलें ।
दुर्गा को गले लगा कर काफी देर तक नैना रोती रही । माँ को
देख कर दुर्गा की आँखों में भी आंसू आ गए ।दुर्गा की आँखों के सामने वह
बचपन का सारा मंजर घूम गया था । लोग बड़ी हिकारत भरी नजरों से देखते थे ।
माँ का समाज में कोई सम्मान नही था । गांव में आने वाले लोग घूर घूर के
जाते थे । नैना ने बहुत साफ शब्दों में सबको बता दिया था बेटी नाच गाना नही
सीखेगी । स्कूल जायेगी और साहब बनेगी । गाव का वह माहौल जिसमे पढाई से कोई
लेना देना ही नही था । अंत में माँ ने सरकारी स्कूल के छात्रावास में रखकर
पढ़ने का अवसर दिलाया ।
सचमुच में नैना का त्याग और बलिदान गांव वालों के लिए एक मिशाल से कम नही था ।
गाँव के लोग एक एक कर आ रहे थे । आखिर दुर्गा पतुरियन
के पुरवा का गौरव जो बन चुकी थी । ढेर सारी बधाइयां ढेर सारे लोगों की
दुआए नैना की ख़ुशी में चार चाँद लगा रहे थे ।
चर्चा कई गांव तक पहुँच चुकी थी । खास बात यह नही थी कि
दुर्गा ने परीक्षा पास कर ली है बल्कि खास तो यह था कि एक पतुरिया की बेटी
ने यह परीक्षा पास की है । दूसरे दिन अख़बार में जिले के पेज पर दुर्गा की
खबर प्रमुखता से छपी । हर गली मुहल्ले चौराहे पर सिर्फ दुर्गा की ही चर्चा ।
दुर्गा आज समाज का बदला हुआ रूप देख कर हैरान थी । यह
वही समाज है जब दुर्गा सौरभ के साथ उसके घर गयी थी तो सौरभ की माँ ने उसके
बारे में पूछा था । सौरभ ने बताया था मेरे स्कूल में पढ़ती है मेरी पिछले
साल की कक्षा पांच की किताबें पढ़ने के लिए मांगने आयी है । पतुरियन के टोला
में रहती है ।
सौरभ की बात सुनकर सौरभ की माँ ने कहा था
" हाय राम ! ई पतुरिया की बेटी का घर मा घुसा लिहला । इका जल्दी घर से पाहिले बाहर निकाला ।
जा उई जा पेड़ के नीचे बैठ ...... ऐ लइकी ...........घर से बाहर निकल पाहिले
। तोके कउनो तमीज न सिखौली तोर माई बाप का ? जा.....जा...."
सौरभ को बात बहुत बुरी लगी थी और माँ से लड़ने लगा था तो
माँ ने सौरभ की गाल पर दो चार तमाचे भी जड़ दिए थे । बेचारा सौरभ दूसरे दिन
चोरी से उसे सारी किताबें दे गया था । बाद में वही सौरभ दुर्गा का सबसे
अच्छा दोस्त साबित हुआ । और वह दोस्ती आज भी पूरी तरह कायम है ।
उपेक्षा तिरस्कार से रूबरू होते होते दुर्गा की इच्छा
शक्ति दृढ होती गयी थी । इसी दृढ़ इच्छा शक्ति से उसने वह लक्ष्य हासिल कर
लिया जिससे आज वही समाज उसका गुणगान करता नज़र आ रहा था ।
गाँव वाले दबी जुबान से यह भी कहते थे दुर्गा तो माधव
की बेटी ही नहीं है । यह तो माधव के मरने के साढ़े दस महीने बाद पैदा हुई थी
। पतुरियन के पुरवा के लिए यह बात कोई खास मायने नही रखती थी । सबके इज्जत
में कालिख की कमी नही थी । सबके अपने अपने अफ़साने थे ।
दिन के दस बजे थे । दुर्गा के घर के सामने हेलमेट लगाए एक मोटर सायकिल सवार नौजवान ने अपनी बाइक रोकी ।
" आंटी जी दुर्गा का घर यही है न ?
" हाँ बिटवा घर तो यही है । हाँ ऊ बइठी बा पेड़वा के नीचे "
"जी दुर्गा को बधाई देने आया हूँ । "
हेलमेट लगाये युवक ने दुर्गा को देखकर आवाज दिया ।
"बधाई हो दुर्गा !"
अरी तुम ? .......कैसे हो सौरभ ?
दुर्गा का चेहरा खिल उठा था ।
ऐसा लगा जैसे सौरभ से मिलकर जाने क्या पा गयी हो । शायद उसकी ख़ुशी दो गुना हो गयी थी ।
"अख़बार में पढ़ा तो रहा ही नही गया और आज पहली बार तुम्हारे घर भी आ गया ।" सौरभ ने कहा ।
" हाँ सौरभ यह सारी तपस्या तो बस तुम्हारी वजह से पूरी हो
गयी । एक तुम ही तो थे जिसकी गाइड लाइन से मैं यह मुकाम हासिल कर सकी ।
चोरी चोरी तुम्हारे भेजे गए पैसों की मैं बहुत कर्जदार हूँ । आज तुम मेरे
घर आ गए समझो भगवान् ने मेरी सारी मुराद पूरी कर दी । "
"और सुनाओ क्या हो रहा है आजकल ?"
दुर्गा ने पूछा ।
"दुर्गा मैं दो बार आई ए एस के लिए ट्राई किया । एक बार तो
प्री ही नही निकाल पाया दूसरी बार में प्री और मेन दोनों क्वालीफाई करने
के बाद इंटरव्यू से आउट हो गया ...............। "
"इस बीच यू पी एस सी से कस्टम इंस्पेक्टर के लिए क्वालीफाई हो गया हूँ । "
"बधाई हो सौरभ । अब तो नौकरी भी तुम्हे मिल गयी । अब तो शादी में कोई बाधा नहीं । "
"हाँ दुर्गा तुम ठीक कह रही हो ,
अम्मा भी यही कहती हैं जल्दी से जोड़ी ढूढ़ नहीं तो मैं अपने पसंद की कर दूँगी । "
"तो ढूंढी कोई जोड़ी ?"
"सच बताऊँ क्या ?"
"हाँ हाँ बताओ न ? "
"जोड़ी तो वर्षों पहले से ही ढूढ़ चुका हूँ । लेकिन अब वह शादी होगी या नहीं भगवान् ही जाने ......"
दुर्गा के मन में उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी ।
कैसी है वो ?
बिलकुल तुम्हारे जैसी ?
अरी यार साफ साफ बताओ न ?
क्या तुम्हारे ही कास्ट में है ?
"नहीं जी इंटर कास्ट ।"
दुर्गा की धड़कने तेज हो गयीं थी । जिसे वह वर्षो से
चाहती आ रही थी लेकिन जाति के कठोर नियम के आगे सौरभ से शादी के बारे में
सोच तक नही सकी थी आज वही सौरभ इंटरकास्ट मैरिज की बात कर रहा है । दुर्गा
के मन में जो मुहब्बत वर्षो से दबी पड़ी थी आज वह तेजी से हिलोरे मारने लगी ।
क्या सोचने लग गयी दुर्गा ?
"कुछ नही सौरभ । बस यही सोच रही हूँ वो भाग्यवान आखिर है कौन ।
मैं तो तुम्हारे घर के जाति अनुशासन से अच्छी तरह परिचित हूँ । मुझे बचपन
की वह बात आज भी याद है । मुझे नही लगता तुम्हारे खानदान के लोग उसे
स्वीकार कर लेंगे । "
सच बताओ सौरभ कौन है वो ।
दुर्गा तुम्हे क्या लगता है ? मेरा सबसे अजीज कौन है । वो
चिट्ठियां वो बात चीत का दौर ......जो भी चलता था क्या वह तुम्हे याद नहीं
.......और फिर कैरियर के लिए .......सब कुछ बन्द कर देना क्या वह भी तुम्हे
याद नहीं ?
"क्या मतलब .......तुम्हारा इशारा कहीं मेरी ओर तो नहीं ......."
नहीं नहीं सोचो .......खुद सोचो ....और बताओ ?
दुर्गा अपनी जिंदगी में मित्र के रूप में सिर्फ सौरभ को
चुनी थी लेकिन इतने दिनों के बाद भी यह सम्बन्ध सिर्फ दोस्ती के लिबास में
जिन्दा रहा । उसने कभी कल्पना भी नही की थी कि उसका सपना कभी यथार्थ के
धरातल पर भी साकार हो सकता था । आज सौरभ की बातो से उसे जो संकेत मिल रहा
था वह अकल्पनीय था । उत्सुक्ताएं अपने चरम को छू रही थी ।
"कौन है सौरभ प्लीज .....बताओ न । "
सौरभ ने एक झटके में ही कह दिया ।
"तुम हो दुर्गा ।"
अरे यह क्या कह दिया सौरभ तुमने ।
मैं एक पतुरिया की बेटी हूँ । पता है न तुम्हें ।
कौन स्वीकार करेगा मुझे ? अपने परिवार और समाज से बहिष्कृत हो जाओगे ।
दुर्गा तुमने मुझसे कभी नही कहा कि मैं तुमसे प्यार करती
हूँ । लेकिन मुझे तुम्हारे प्यार का एहसास हमेशा रहा है । यह अलग बात है
कि अब तुम पी सी एस अधिकारी बन जाओगी ........
"बस बस सौरभ अब एक शब्द भी बाहर मत निकालना ..........."
दुर्गा की आँख में आँसू आ गए ।
"हाँ मैं सच में तुमसे बेपनाह मुहब्वत करती थी और आज भी करती
हूँ । तुम्हारे अलावा जिंदगी में मैंने कभी किसी को स्थान नही दिया ।
दुनिया की सबसे कीमती वस्तु के रूप में तुम्ही हो मेरे लिए ।
लेकिन शादी करके मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी तबाह हो जाए यह मुझे
मंजूर नहीं । मैं कुआरी ही रहकर तुम्हारे प्यार के सहारे जिंदगी जीने की
क्षमता रखती हूँ । "
"बस कह लिया न तुमने दुर्गा "
यह तुम्हारी निराशा है । मैं सारी स्थितियां संभाल लूँगा तुम
अपनी अम्मा के बारे में सोचो । मैं सन्डे को फिर आऊंगा । मुझे उम्मीद है
अम्मा तैयार हो जाएँगी । जो सच होगा वही बताना ........और हाँ मैंने फैसला
कर लिया है अपने मन में । शादी सिर्फ तुम्ही से ही करूँगा । अब हम बड़े हो
चुके हैं । "
इतना कहते कहते सौरभ बाइक स्टार्ट करके चला गया ।
दुर्गा को जैसे सब कुछ मिल गया हो । भला अम्मा को क्या एतराज होगा सब
कुछ दुर्गा की हाँ में ही छुपा है । पहले ही दिन दुर्गा के मन में हजारों
तरह की कल्पनायें आती रही । पतुरियन के पुरवा की सबसे खूबसूरत लड़की दुर्गा
ही थी । लेकिन माँ की वजह से गांव के माहौल से बिलकुल जुदा थी । माँ ने कभी
नही चाहा था कि दुर्गा उसकी जैसी जिंदगी जिए । सब कुछ बेटी के अच्छे
भविष्य के लिए न्यौछावर कर दिया था । दुर्गा को आज अपने सपने का राजकुमार
बिलकुल सामने दिखाई दे रहा था । रात भर दुर्गा ख़ुशी से सो नही पायी ।
भोर का समय । नैना चाय बनाकर दुर्गा के पास आयी ।
"का बात है बिटिया आज तोर ई अंखिया लाल काहे भइल बा । आज निदिया न आइल का ?
न अम्मा । सचमुच मा निदिया ना आइल बड़ा उलझन मा रहली ।
काहे का उलझन रे ।
"एगो लइका हमसे प्यार करेला और हमहू वो के
बहुत चाहीला ।"
दुर्गा की बात सुनकर नैना चौंक पड़ी
"अरे दुर्गा पढ़ लिखि के बेवकूफ न बना । ई सब आजकल के लइके
बहुत चालू होले । तोहपे न तोरी नौकरी पर कौनो दाना डारत बा । इहाँ पतुरिया
की लइकी से कौनो शरीफजादा शादी करी का । अरे जा पाहिले नौकरी करा फिर कौनो
साहब लइका से शादी करिहा । ई दुनिया बहुत चालू बा दुर्गा ।"
माँ की बात काटते हुए दुर्गा झट से बोल पड़ी -
"अम्मा लइका बहुत शरीफ बा । बचपन से ऊ के हम जानीला । हमरे साथे ऊ पढ़त रहल । उ हो साहब बनि गइल बा ।
अम्मा बड़ी जाति के है ऊ । "
कौन गांव के है ऊ । नैना ने पूछा ।
अम्मा बेनीपुर का ठाकुर हो वे ऊ ।
बेनी पुर !............!!!!!!!
अरे ऊ गुंडन के गाव है । छोड़ा छोड़ा नाम मत लिहा । पूरा गांव लोफर बा हम
सबके जानीला । बहुत बार ऊ गांव मा नाचे गइली हम । पूरा गांव अय्यास और
शराबी बा । ऊ गाव मा तो हम तोर शादी कबहू न होये देबे रे ।"
दुर्गा का चेहरा लटक गया । कुछ देर सोचने के बाद माँ से बोली ।
"अम्मा इतवार के लइका फिर आयी । उ हे जो कल आइल रहल । देखि
ला बात बात चीत कइके तब रिजेक्ट करा तू । बहुत सुन्दर और अच्छा लइका बा
अम्मा । ऊ लोफर अय्यास ना बा ।
"ठीक बा जब आई तब देखल जाइ । चला दाना पानी करा । " नैना ने कहा ।
नही अम्मा पाहिले बतावा न ? तैयार हो जइबू ना ?
पगला गइल बाटू का दुर्गा ? बेनीपुर के सब ठाकुरवे खानदानी बनैले । पतुरिया
के बिटिया के गाव माँ न घुसे देइहें । नजदीक के बात बा छुपी ना ,.......
सबके पता हो जाइ । तोर जिनगिया सब बेकार कर देइहें ।"
दुर्गा ने फिर माँ को समझाना चाहा ।
ना अम्मा ऐसा ना बा ऊ । हम वो के बचपन से जानीला ।हमके सबसे ज्यादा चाहेला । पहिले देखा ऊ के फिर बतैहा ।
इतवार के ऊ लइका आई सवेरे ।"
"ठीक बा देखल जाई । अब चला चाय पानी पिया ।" नैना ने कहा ।
अम्मा की बाते सुनकर दुर्गा को अब चिंता होने लगी थी ।
कही ऐसा न हो अम्मा सौरभ को पसंद ही ना करें । अब तो एक एक रात भी पहाड़ हो
जायेगी ... तरह तरह की चिंताए ।
नैना भी बेटी की बातें सुनकर कम परेशान नहीं थी । परेशान होती भी क्यों ना ? बेनी पुर से उनकी बहुत गहरी यादें जो जुडी थी ।