तुम्हारे पल्लू की खुशबुओं से मैं रफ्ता रफ्ता निकल रहा हूँ ।
हुश्न की मलिका बज्म में तेरे तिरे लबों से फिसल रहा हूँ ।।
तेज हवाओं के झोकों में उड़े थे तेरे जहाँ दुपट्टे ।
तुम्हारी जुल्फों का ख्वाब लेकर कूचा कूचा टहल रहा हूँ ।।
मेरे नशे का न राज पूछो बिना नशे के मैं जी सका न ।
शराब आधी शबाब आधा मिला के दोनों मचल रहा हूँ ।।
जन्नत के उस हूर से ज्यादा मस्त अदाएं तुम रखती हो ।
तेरी निगाहों के जादू से नियत से मैं भी बदल रहा हूँ।।
लफ्ज लफ्ज यूं ठहरे ठहरे दर्द बहुत है बिखरा बिखरा ।
गर्म सांस की तपिश से जालिम मैं भी तो कुछ पिघल रहा हूँ ।।
जुर्म हुआ इजहारे मुहब्बत हुश्न की ताना शाही भी है ।
कातिल के हर फरमानों से जज्बातों संग सम्भल रहा हूँ ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
फ़ैजाबाद अयोध्या से 6 AM
हुश्न की मलिका बज्म में तेरे तिरे लबों से फिसल रहा हूँ ।।
तेज हवाओं के झोकों में उड़े थे तेरे जहाँ दुपट्टे ।
तुम्हारी जुल्फों का ख्वाब लेकर कूचा कूचा टहल रहा हूँ ।।
मेरे नशे का न राज पूछो बिना नशे के मैं जी सका न ।
शराब आधी शबाब आधा मिला के दोनों मचल रहा हूँ ।।
जन्नत के उस हूर से ज्यादा मस्त अदाएं तुम रखती हो ।
तेरी निगाहों के जादू से नियत से मैं भी बदल रहा हूँ।।
लफ्ज लफ्ज यूं ठहरे ठहरे दर्द बहुत है बिखरा बिखरा ।
गर्म सांस की तपिश से जालिम मैं भी तो कुछ पिघल रहा हूँ ।।
जुर्म हुआ इजहारे मुहब्बत हुश्न की ताना शाही भी है ।
कातिल के हर फरमानों से जज्बातों संग सम्भल रहा हूँ ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
फ़ैजाबाद अयोध्या से 6 AM