2122 1122 1122 22
सच पे लटका हुआ ख़ंजर है कई सदियों से ।
कैसे ज़िन्दा ये सुख़नवर है कई सदियों से ।।
लूट जाते हैं यहाँ देश को कुर्सी वाले ।
देश का ये ही मुक़द्दर है कई सदियों से ।।
क्या बताएंगे मियाँ आप तरक्क़ी मुझको ।
शह्र में भूख का मंजर है कई सदियों से ।।
आप भी ढूढ़ नहीं पाए ख़ुदा की रहमत ।
आपके साथ तो रहबर है कई सदियों से ।।
दौलतें हो गईं लिल्लाह न जानें कितनीं ।
घर सभी को न मयस्सर है कई सदियों से ।।
बढ़ न पाया है मुहब्बत का शजर आज तलक ।
ये जमीं देखिए बंजर है कई सदियों. से ।।
ऐ मुसाफ़िर तू जरा सोच समझकर चलना ।
अम्न की राह में पत्थर है कई सदियों से ।।
दाम उनका भी लगाते हैं खरीदार यहाँ ।
जिनका ईमान तो कट्टर है कई सदियों से ।।
पीते हैं लोग यहाँ ज़ह्र भी मज़बूरी. में ।
ज़िंदगी .मौत .से बद्तर है कई सदियों से ।।
बाद मरने के उन्हें मिल सकी है जन्नत क्या ?
प्रश्न यह भी तो निरुत्तर है कई सदियों से ।।
ख़ास किरदार से हासिल तो करें कुछ साहब ।
दास्तानों में सिकन्दर . है कई सदियों से ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
सच पे लटका हुआ ख़ंजर है कई सदियों से ।
कैसे ज़िन्दा ये सुख़नवर है कई सदियों से ।।
लूट जाते हैं यहाँ देश को कुर्सी वाले ।
देश का ये ही मुक़द्दर है कई सदियों से ।।
क्या बताएंगे मियाँ आप तरक्क़ी मुझको ।
शह्र में भूख का मंजर है कई सदियों से ।।
आप भी ढूढ़ नहीं पाए ख़ुदा की रहमत ।
आपके साथ तो रहबर है कई सदियों से ।।
दौलतें हो गईं लिल्लाह न जानें कितनीं ।
घर सभी को न मयस्सर है कई सदियों से ।।
बढ़ न पाया है मुहब्बत का शजर आज तलक ।
ये जमीं देखिए बंजर है कई सदियों. से ।।
ऐ मुसाफ़िर तू जरा सोच समझकर चलना ।
अम्न की राह में पत्थर है कई सदियों से ।।
दाम उनका भी लगाते हैं खरीदार यहाँ ।
जिनका ईमान तो कट्टर है कई सदियों से ।।
पीते हैं लोग यहाँ ज़ह्र भी मज़बूरी. में ।
ज़िंदगी .मौत .से बद्तर है कई सदियों से ।।
बाद मरने के उन्हें मिल सकी है जन्नत क्या ?
प्रश्न यह भी तो निरुत्तर है कई सदियों से ।।
ख़ास किरदार से हासिल तो करें कुछ साहब ।
दास्तानों में सिकन्दर . है कई सदियों से ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी