----***ग़ज़ल***-----
चल नकाबो में जमाने की नज़र पाक नहीं ।
कीमती हुश्न ये हो जाए कही ख़ाक नहीं ।।
अजनबी बनके गली से यूँ गुजरना उसका ।
दिल जलाने की थी साजिश ये इत्तिफ़ाक नहीं ।।
ताल्लुक वक्त के साये में बदलते अक्सर ।
फितरते इश्क में जिन्दा कोई इख़लाक़ नहीं ।।
रियासत डूब न जाए लहू परस्ती में ।
है ढलानों पे आफताब ,यह मजाक नहीं ।।
मुन्तजिर हो के हैं गुजरी तमाम रात यहां ।
मेरी उम्मीद का दामन अभी हलाक नहीँ ।।
नाम लिखती रही वो रेत पर तन्हाई में ।
लोग कहते हैं जिसे वो तेरे फिराक नहीं।।
वो रकीबों के मुहब्बत पे बे हिचक बोली ।
ये तो रुसवाई थी मेरा कोई तलाक नहीं ।।
पसलियां गिन के आबरू न मिटा तू उसकी ।
मुद्दतों से उसे मिलती कोई खुराक नहीं ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी