ग़ज़ल
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चेहरे पे मुहब्बत की शिकन कम नहीं होती ।
माशूक़ की ख़ुशबू ए बदन कम नहीं होती ।।1
उल्फ़त की है ये ज़ुस्तज़ू दीवानगी का दौर ।
मौजों की जो साहिल से लगन कम नहीं होती ।।2
बढ़ती ही चली जाती है ये बोझ की माफ़िक ।
इस ज़िन्दगी की यार थकन कम नहीं होती ।।3
चाहत हो अगर दिल मे मुलाकात की साहब ।
साँसों की शबे वस्ल तपन कम नहीं होती ।।4
कह दीजिये जो मन में हो हर बात सरे बज़्म ।
ख़ामोशियों से मन की घुटन कम नहीं होती ।।5
मुश्किल है बहुत चलना सदाक़त की डगर पर ।
इस राह में काँटों की चुभन कम नहीं होती ।।6
नफ़रत के नगर में न करें प्यार की चर्चा ।
दुनिया को मुहब्बत से जलन कम नहीं होती ।।7
--नवीन मणि त्रिपाठी