तेरी जुल्फों से आज मैं भी कत्लेआम हुआ ।
तेरी चाहत में सनम दूर तक बदनाम हुआ।।
तू मुहब्बत है मेरे रूह के तस्सवुर की ।
ख़ास चर्चा तेरी महफ़िल में सुबहो शाम हुआ।।
मिटी है हस्तियां जब भी उठी नजर तेरी ।
झुकी पलक तो नजारो से इंतकाम हुआ ।।
आबनूसी है तेरे गेसुओं की यह रंगत ।
जहाँ बिखरे हैं वही शब् का इंतजाम हुआं ।।
ये नज़ाकत ये नफ़ासत ये हिमाक़त तुझमें ।
मेरे महबूब बता मुझ पे क्यों इल्जाम हुआ।।
तेरी अदा की खुशबुओं से मचलता है शहर ।
मेरा किस्सा मेरी खता पे क्यूँ तमाम हुआ ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी