तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

आँसू

--**"आँसू"**--
आँसू अनंत रूप में बिखर जाते हैं ....

गम के आँसू

ख़ुशी के आँसू
बनावटी आँसू 
घडियाली आँसू
रक्त के आँसू 
मुफ्त के आँसू
महंगे आंसू
सस्ते आँसू...................................।

 आंसू प्रतीक बन जाते हैं ........


मनोभावों के 

अदृश्य यातनाओं के 
अतृप्त इच्छाओं के 
अंतस के घावों के 
खंडित अभिलाषाओं के 
अनंत संवेदनाओं के 
तीखी व्यथाओं के ....................।

 आँसू छलक जाते हैं ......................।


मीत के मिलने पर 

या फिर बिछड़ने पर 
आशा के खोने पर
टूटे से सपने पर 
पीड़ा के डसने पर 
मृत्यु के हसने पर 
पर नैना  बहने पर 
ग्लानि के बसने पर.................

आँसू कभी नहीं आते 


दुष्ट अहंकारी को 

जीवन व्यापारी को
बिकी ईमानदारी को 
लिपटी गद्दारी को 
शोषक व्यभिचारी को
दंडाधिकारी को
सत्ता प्रभारी को 
भ्रष्टतम अधिकारी को

आँसू सूख जाते है .................


तानाशाही सरकार में 

निठारी सम अत्याचार में 
दामिनी बलात्कार में 
सैनिको के सर कलम कायराना संहार में
रोज लाखो बच्चियों की भ्रूण हत्या के ज्वार में 
देश बेचते भ्रष्टाचारी उपहार में ।
निर्दोषो की हत्यारी आतंकी तलवार में ...........

                          नवीन

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

गीत

--------------***गीत***-------------


जो   प्रणय   दीप    ले   कंटको    पर   चले , 
राह   में    वह   मुशाफिर    मिलेगा     नहीं ।
स्वार्थ   का   दाग    जब   भी   लगेगा   तुम्हे ,
तुम    धुलोगी     बहुत     पर   मिटेगा  नहीं।

बन  के  जोगन   कहानी    लिखी   ना  गयी ,
मन  की  भाषा  भी  तुमसे   पढी   ना   गयी।
प्रेम     अट्टालिका     खूब      सजती     रही , 
नीव   की    ईट    पावन    रखी   ना   गयी।।

प्रीति   की     रोशनाई    कलम   में  ना  हो , 
तुम  ह्रदय   पर     लिखोगे   लिखेगा   नही।
जो   प्रणय   दीप   ले    कंटकों    पर   चले  
राह    में   वह    मुशफिर    मिलेगा   नहीं ।।

चांदनी   चाँद   से   जब    मिलन   को  चली 
बादलों    को     कहाँ     ये     गवारा   हुआ।
जब   किनारों    की     बाहों   में  लहरें  चली ,
खीच    सागर    लिया    ये    नजारा   हुआ।।

छीन   लेने   की   साजिश   वो   रचने   लगे , 
इस    ज़माने    से    कोई     बचेगा   नहीं ।।
जो   प्रणय   दीप   ले   कंटको     पर   चले  
राह   में   वह   मुशाफिर    मिलेगा     नही ।।

बन   के  समिधा   जलोगी   सदा  उम्र  भर, 
ये   है     ज्वाला   हवाओं   में   उठती  हुई ।
बन   के  आहुति   सुलगती  रही   जिन्दगी, 
जान   पहचान    से  भी    मुकरती    रही ।।

इस   हवन   कुण्ड   तो   बिरह   अग्नि   है , 
सब    जलेगा   धुँआ   कुछ   उठेगा   नहीं। 
जो  प्रणय  दीप    ले    कंटकों   पर   चले ,
राह   में    वह   मुशाफिर   मिलेगा   नही ।।

दृष्टि   चितवन   पे   जब   मेरी  रुकने  लगी ,
एक    उलझी    हुई    सी    कहानी   लगी ।
जब   नयन   ने   नयन  की  व्यथा  देख  ली , 
एक    बहकी    हुई     सी   सुनामी    लगी।।

आँधियों       में     दिवाली    मनाने     चले  
इन   हवाओं    में    दीपक    जलेगा   नहीं।
जो   प्रणय   दीप   ले    कंटकों    पर   चले , 
राह  में   वह    मुशाफिर     मिलेगा    नहीं ।।


             -नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

"लिख के जले हैं खत बहुत तेरे जबाब में "

-----------------**गज़ल**-----------------

मिटने    लगी   हैं   हस्तियाँ ,तेरे   गुलाब    में ।
मुझको  दिखा  है ईश्क भी ,अपने  रुआब  में।।

पीने की  बात  कर  ना  पिलाने  की  बातकर।
डूबा  है  बार  -बार   वो  हुश्न   ए  शराब  में ।।

जिनको  यकीं  है अपने  तजुर्बे  पे आज  भी।
ढूँढा  है   कोहिनूर  वही  दिन  के  ख्वाब  में ।।

उड़ती  सी   रंगतें   ये  असर   का   सबूत  हैं ।
छिपता  कहाँ  ये  ईश्क  किसी  के हिजाब में।।

ढूँढा    तमाम   उम्र    नूर   अहले   चमन   में ।
दिखने   लगा   है   चाँद    तुम्हारे  नकाब   में।।

निकले थे  लफ्ज  दिल से जुबाँ पे  हुए कतल ।
लिख  के  जले हैं  खत  बहुत  तेरे  जबाब में ।।

बदली  हुई   सी  कलियाँ  बदले  हुए  से  भौरे।
जब  भी  बहारें  आयी  थीं  अपने  शबाब  में।।

तक़रीर  जन्नतों  की ,सुनाने  से  क्या  मिला ।
बदली  नियत  कहाँ  है ,खाना ए  ख़राब  में ।। 

उम्मीद की थी जिस पे ,मुशीबत में होंगे साथ ।
अक्सर  दिखे  वो ,हड्डियाँ बन के कबाब  में ।।

                                   --  नवीन