तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 28 मई 2014

तीन सौ सत्तर मिटाना मुल्क की आवाज है


अब जिधर देखो उधर उठने लगी अल्फाज है ।
तीन सौ सत्तर मिटाना , मुल्क की आवाज है ।।



लुट गया है ये वतन कानून के परदे में खूब ।
ठग रहे वो देश को हैं जब से उनका राज है ।।



धमकियाँ गद्दार ने दी टुकड़े होगी भारती ।
लद गये दिन अब तेरे कश्मीर मेरा ताज है ।।



अब तुम्हारी हैसियत पे ला दिया जनता ने है।
हर तरफ बजने लगा है ये बिगुल का साज है ।।



जेब भर कर खूं को चूसा रो गया कश्मीर है ।
हिसाब लेगे अब वही कश्मीर जिसका नाज है।।
नवीन

रविवार, 18 मई 2014

गजल


बजती   रही   करीब   में   शहनाई   रात   भर ।
बेदर्द   तेरी   याद    बहुत   आयी    रात   भर ।।

तन्हाइयों   की   जिन्दगी   मुझको   कबूल  थी ।
कसमें   हजार   प्यार   की  वो  खाई  रात भर ।।


दिल की जुबाँ से दिल के तसउअर की बात की ।
कुछ  तो  जरुर  था  जो   वो  शरमाई  रात भर ।।


जब  लफ़्ज  थे  खामोश  व  जज्बात  थे  बयां ।
वो  छत  पे  बार  बार  नजर  आयी  रात  भर ।।

मेरी   गजल   के  शेर  बदलने   लगे  मिजाज ।
जब   दास्ताने   इश्क   वो   सुनायी   रात  भर ।।

                          नवीन

रविवार, 11 मई 2014

गज़ल





भूंख के मंजर से जलती लाश को देखा करो ।
अब धुँआ गहरा उठा ,अहसाह को देखा करो ।।


बिक रहा इंसान है , कोहराम भी खामोश है ।
अब मुकम्मल धड़कने व साँस को देखा करो ।।


वह तिजोरी भर गयी है , हुक्मरां के हुक्म से ।
फिर  लुटेंगी  दौलतें , अय्यास  को देखा करो ।।


जलजला की आहटें चर्चा बनी सबकी यहाँ ।
थम ना जाए जिन्दगी , आभास को देखा करो ।


सब मुनासिब हो गया है हसरतो की ख्वाब में ।
शक की नजरों से कभी तुम ख़ास को देखा करो।।


हश्र उनका भी जुदा है मौत भी होगी जुदा ।
बददुआ का है  समंदर प्यास को देखा करो ।।


नफरते नश्तर चुभोया , जिसने तेरे मुल्क को ।
हो गया आबाद वह इतिहास को देखा करो ।।


ये नकाबों का शहर है , फितरतें जालिम यहाँ । 
वक्त के चश्मे से अब , लिबास को देखा करो ।।


इस इमारत की इबारत लिख चुके  पहले खुदा ।
ढह रहे पत्ते हों जैसे ,तास को देखा करो ।।


मंदिर -  मस्जिद बैठने वाले , परिंदे उड़ गये ।
कौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।।

           नवीन

सोमवार, 5 मई 2014

वर्तमान परिभाषा धर्म निरपेक्ष की





जब किसी बहु संख्यक की
दंगों में मौत हो जाए ।
उस पर नेता का कोई बयान  ना आए ।
और जब किसी अल्प संख्यक को
कोई आँख भर दिखाए
और नेता उसके लिए वर्षों चिल्लाये ।
वर्ग विशेष के सारे मुकदमे हटाये ।
अपराध करने की मौन स्वीकृति दिलाये ।
फिर चुनाव जीत कर आता है ।
तो वह नेता धर्म निरपेक्ष कहलाता है ।।


जब कोई मंदिर नही बनाने की बात करे ।
मस्जिद और कब्रस्तान को अनुदान करे।
ट्रेन की बोगियों में जल कर मरे श्रधालुओं की बात
जुबान पर ना लाये ।
सिर्फ एक पक्षीय अत्याचार का डंका बजाए ।
वोटों के लिए दंगे कराये ।
ऐसा कह कर स्वार्थ सिद्ध कर जाता है
 जी हाँ ,वही नेता धर्म निरपेक्ष कहलाता है ।।


जिसमे आतंकियों के प्रति गहरी सद्भावना हो ।
देश को तोड़ने की कामना हो ।
भरपूर जाती पाति की भवना हो ।
विष बमन करके जो समाज को खंड खंड करे ।
नफरत की अग्नि को प्रचंड करे ।
साम्प्रदायिक बन के अल्प संख्यक को अखंड करे ।
जो अल्प संख्यक के सापेक्ष बहता है ।
हाँ वही धर्म निरपेक्ष कहलाता है ।।


जो सर पर सम्प्रदाय विशेष की टोपी पहने ।
बहुसंख्यक धार्मिक आस्था पर
लगे उल्टा सीधा बकने ।
देश की स्मिता कारगिल को सम्प्रदाय से जोड़े ।
देश में घुसपैठियों पर संवेदना की राग छोड़े ।
कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचार से
मुह मोड़े ।
ऊपर से उन पर साम्प्रदायिकता का बम फोड़े ।
जब सच मौन देश के परिप्रेक्ष्य होता है ।
मानो तो सही
अब वही धर्म निरपेक्ष होता है ।

              नवीन