अदा ए जुल्फ से अंजाम दिया करते हैं |
वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं ||
झुकी निगाह उठाई तो जल जला आया |
वो ज़माने से इंतकाम लिया करते हैं ||
कली गुलाब की शरमाई उनकी रंगत से |
शबाब ए हुश्न का पैगाम दिया करते हैं ||
सुर्ख लब पर हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
वो मोहब्बत को भी नीलाम किया करते है ||
मैं तो साहिल था लहर आयी और छू के गयी |
याद हम भी वही मुकाम किया करते हैं ||
बेवफा तुझको , मुहब्बत का सलीका ही नहीं |
तमाम उम्र , ये इल्जाम लिया करते हैं ||
जब दबे पांव तू आयी उसी महुआ के तले |
उसी शजर से तेरा नाम लिया करते हैं ||
वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं ||
झुकी निगाह उठाई तो जल जला आया |
वो ज़माने से इंतकाम लिया करते हैं ||
कली गुलाब की शरमाई उनकी रंगत से |
शबाब ए हुश्न का पैगाम दिया करते हैं ||
सुर्ख लब पर हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
वो मोहब्बत को भी नीलाम किया करते है ||
मैं तो साहिल था लहर आयी और छू के गयी |
याद हम भी वही मुकाम किया करते हैं ||
बेवफा तुझको , मुहब्बत का सलीका ही नहीं |
तमाम उम्र , ये इल्जाम लिया करते हैं ||
जब दबे पांव तू आयी उसी महुआ के तले |
उसी शजर से तेरा नाम लिया करते हैं ||