तीखी कलम से

रविवार, 23 अक्टूबर 2016

तुम बेखुदी में बस ज़फ़ा पढ़ते गए

‌2212  2212 2212 
दीवानगी   में  हम  वफ़ा   लिखते  गए । 
तुम बेखुदी  में  बस  जफ़ा  पढ़ते  गए ।।

पूछा   किया  वो  आईने   से   रात  भर ।
आवारगी  में   हुस्न   क्यूँ  ढलते   गए ।।

आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।
देखा  चिराग़े  अश्क  भी  जलते  गए ।।

नादानियों   में   फासलो   से  बेखबर ।
बस जिंदगी भर  हाथ  को  मलते गए ।।

तालीम  ले  बैठा था जब  इन्साफ  की ।
क्यूँ   मुज़रिमो  के  फैसले  रुकते गए ।।

जिसकी    बेबाकी   के  चर्चे  थे   बहुत ।
तहज़ीब  को  अक्सर  वही  छलते  गए ।।

लफ्जों  की  रंगत  दर्द  से  फीकी  लगी ।
पर्दे   में  आए   नाग  जब   डसते   गए ।।

नाज़ो नफ़स के साथ था महफ़िल गया ।
शिकवे  गिले  सब रात भर सुनते गए ।।

आई   हुई   है  तिश्नगी   जिस  रोज  से ।
बहकी  नज़र  की  धार  में  बहते  गए ।।

काटे  गए  जंगल थे  जिसकी  खौफ  में ।
वो  भेड़िये   फिर  गाँव  में  पलते  गए ।।

आबाद  हो   जाती   मुकम्मल   तीरगी ।
बुझती  शमा   के   हौसले  बढ़ते   गए ।।

         नवीन मणि त्रिपाठी

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