2212 2212 2212
दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए ।
तुम बेखुदी में बस जफ़ा पढ़ते गए ।।
पूछा किया वो आईने से रात भर ।
आवारगी में हुस्न क्यूँ ढलते गए ।।
आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।
देखा चिराग़े अश्क भी जलते गए ।।
नादानियों में फासलो से बेखबर ।
बस जिंदगी भर हाथ को मलते गए ।।
तालीम ले बैठा था जब इन्साफ की ।
क्यूँ मुज़रिमो के फैसले रुकते गए ।।
जिसकी बेबाकी के चर्चे थे बहुत ।
तहज़ीब को अक्सर वही छलते गए ।।
लफ्जों की रंगत दर्द से फीकी लगी ।
पर्दे में आए नाग जब डसते गए ।।
नाज़ो नफ़स के साथ था महफ़िल गया ।
शिकवे गिले सब रात भर सुनते गए ।।
आई हुई है तिश्नगी जिस रोज से ।
बहकी नज़र की धार में बहते गए ।।
काटे गए जंगल थे जिसकी खौफ में ।
वो भेड़िये फिर गाँव में पलते गए ।।
आबाद हो जाती मुकम्मल तीरगी ।
बुझती शमा के हौसले बढ़ते गए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए ।
तुम बेखुदी में बस जफ़ा पढ़ते गए ।।
पूछा किया वो आईने से रात भर ।
आवारगी में हुस्न क्यूँ ढलते गए ।।
आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।
देखा चिराग़े अश्क भी जलते गए ।।
नादानियों में फासलो से बेखबर ।
बस जिंदगी भर हाथ को मलते गए ।।
तालीम ले बैठा था जब इन्साफ की ।
क्यूँ मुज़रिमो के फैसले रुकते गए ।।
जिसकी बेबाकी के चर्चे थे बहुत ।
तहज़ीब को अक्सर वही छलते गए ।।
लफ्जों की रंगत दर्द से फीकी लगी ।
पर्दे में आए नाग जब डसते गए ।।
नाज़ो नफ़स के साथ था महफ़िल गया ।
शिकवे गिले सब रात भर सुनते गए ।।
आई हुई है तिश्नगी जिस रोज से ।
बहकी नज़र की धार में बहते गए ।।
काटे गए जंगल थे जिसकी खौफ में ।
वो भेड़िये फिर गाँव में पलते गए ।।
आबाद हो जाती मुकम्मल तीरगी ।
बुझती शमा के हौसले बढ़ते गए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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