तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

ग़ज़ल -- ये बात और है तेरा ख़याल आज भी है

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किसी की याद में जलती मशाल आज भी है ।
इन आँसुओं में सुलगता सवाल आज भी है ।।

न पूछ मुझसे मुहब्बत के दौर का वो सफर ।
ये बात और  है  तेरा  ख़याल आज भी है । 

वो इश्क बेच  के आया  है रात  भर के लिए ।
तेरे  दयार  में  रहता  दलाल  आज  भी  है ।।

तमाम दर्द का  लिक्खा  पयाम पढ़ तो सही ।
खतों के साथ में जिन्दा मिशाल आज भी है ।।

यहाँ खुली  हैं  दुकानें   तिज़ारतों  की  मगर ।
नई  बज़ार   में  देखा  उछाल  आज  भी  है ।।

शरीफ़   लोग  हैं  इनको  न  बे  इमान  कहो  ।
शराफ़तों  में   ठहरता  मज़ाल आज  भी  है ।।

नज़र  नज़र  की  वो  रंगीनियाँ  न  भूल  सके ।
वो  रंगतों  की  निशानी  गुलाल आज भी  है ।।

बहुत  जुदा है इबादत  की  रौशनी  का असर।
बड़ा यतीम था  कायम  धमाल आज  भी  है ।।

हरेक जख़्म को   मैंने  ग़ज़ल के साथ पढ़ा ।
अदा अदा में कशिश है कमाल आज भी है ।।

पड़ी  जो   एक   नज़र  हुस्न  वो  शराब  हुई ।
ये होश खो के वो  होता हलाल आज भी है ।।

सबूत   माँग   न  मुझ  से   मेरे  हबीब  ठहर ।
मेरे  नसीब में  भीगी  रुमाल  आज   भी  है ।।

वो मैंक़दों  का  चलन  तिश्नगी के साथ चलो ।
अजीब  इश्क़ था  मुझको मलाल आज भी है ।।

             -- नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-10-2016) के चर्चा मंच "उम्मीदों का संसार" {चर्चा अंक- 2496} पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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