212 212 212 212
याद आता रहा सिलसिला आपका ।
बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।
आपकी सादगी यूं असर कर गई ।
रेत पर नाम मैंने लिखा आपका ।।
इश्क़ की जाने कैसी वो तहरीर थी ।
रातभर इक वही खत पढ़ा आपका ।।
है सलामत अभी तक वो खुशबू यहां ।
गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।
वक्त की भीड़ में खो गया इस कदर ।
पूछता रह गया बस पता आपका ।।
इक ख़ता जो हुई भूल पाया कहाँ ।
यूं अदा से बहुत रूठना आपका ।।
बात शब् भर चली हिज्र तक आ गई ।
फर्ज था वस्ल तक जोड़ना आपका ।।
टूट कर सब बिखरते गए हौसले ।
था ज़माना गज़ब था खुदा आपका ।।
जख़्म गहरा हुआ ,हो गया फिर सितम ।
इस तरह हाल फिर पूछना आपका ।।
होश खोने गया मैकदे में तभी ।
दे गया कोई फिर वास्ता आपका ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
याद आता रहा सिलसिला आपका ।
बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।
आपकी सादगी यूं असर कर गई ।
रेत पर नाम मैंने लिखा आपका ।।
इश्क़ की जाने कैसी वो तहरीर थी ।
रातभर इक वही खत पढ़ा आपका ।।
है सलामत अभी तक वो खुशबू यहां ।
गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।
वक्त की भीड़ में खो गया इस कदर ।
पूछता रह गया बस पता आपका ।।
इक ख़ता जो हुई भूल पाया कहाँ ।
यूं अदा से बहुत रूठना आपका ।।
बात शब् भर चली हिज्र तक आ गई ।
फर्ज था वस्ल तक जोड़ना आपका ।।
टूट कर सब बिखरते गए हौसले ।
था ज़माना गज़ब था खुदा आपका ।।
जख़्म गहरा हुआ ,हो गया फिर सितम ।
इस तरह हाल फिर पूछना आपका ।।
होश खोने गया मैकदे में तभी ।
दे गया कोई फिर वास्ता आपका ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी