तीखी कलम से

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

है तो है

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मैं  सुख़नवर  हूँ मेरी ताक़त  सदाक़त  है तो  है ।

ऐ  ख़ुदा  तेरे   लिए  सच्ची  इबादत  है  तो  है ।। 1


हथकड़ी  में  भेजता   वो  देश  का  बेरोजगार ।

शर्म तुमको हो न हो मुझमें  हिक़ारत है तो है ।।2


कब तलक खामोशियों में जी सकेगी ये कलम।

ज़ुल्म को गर ज़ुल्म लिख देना बगावत है तो है ।।3


लोग  बेशक़  मानते  हैं सच तुम्हारी  बात  को ।

मुझको कोरी लन्तरानी से  शिकायत है तो है ।।4


आपके जुमले हैं साहब झूठ की बुनियाद पर ।

आपकी तक़रीर दिल पे एक आफ़त है तो है ।।5


आंधियों से है बहुत मुश्किल बुझा पाना  चिराग़ ।

अब  गुलामी की  हवाओ  से अदावत  है तो है ।।6


इंकलाबी    हौसले  जिंदा   हैं   मेरे69व2लाल   मुल्क   में ।

जिसमें तूफानों  से टकराने की हिम्मत है तो है ।।7


कर रहे कुछ लोग सौदा फिर  ज़मीरों  का यहाँ ।

आदमी में अब तलक बिकने की आदत है तो है ।।8


 कह  रही बेबाक होकर अब  कोई  तहरीर  यह ।

आपके  घर  मे  अभी आबाद  रिश्वत  है तो  है ।।9


                     - नवीन मणि ब9ओत्रिपाठी

घरों से उठीं अर्थियां कैसे कैसे

 ग़ज़ल


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न पूछो ये निकली है जाँ कैसे कैसे ।

चलीं अम्न पर गोलियां कैसे कैसे ।।


बताते हैं वो अश्क आंखों में लेकर 

गिराया गया ये मकां कैसे कैसे ।।


ख़बर ही नहीं है ये क़ातिल को शायद ।

घरों से उठीं अर्थियां कैसे कैसे ।।


पता है ज़माने को परदा न डालो ।

मिली तुमको ये कुर्सियां कैसे कैसे ।।


हकीक़त छुपाने की कोशिश तो देखो ।

बनाई  गईं   सुर्खियां   कैसे   कैसे ।।


उजाड़ा है किसने ये गुलशन हमारा 

लिखे ये कलम  दास्ताँ  कैसे  कैसे ।।


वो खा जाते हैं यार अरबो की रिश्वत

यहाँ  मुल्क  में  हुक्मरां  कैसे  कैसे ।।


लगे दाग़ ज्यादा हैं जमहूरियत पर ।

धुलेंगे भला हम निशां कैसे कैसे ।।


      डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

रात भर उसने मेरे ख़त को जलाया होगा

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हिज्र  के बाद  उसे  होश  तो आया  होगा ।

रात भर उसने मेरे  ख़त  को जलाया होगा ।। 1


बेसबब आती नहीं है ये तबाही की लहर ।

कुछ सितम आप ने दरिया पे तो ढाया होगा ।।2


चल सका जो न मेरे साथ बहुत दूर तलक ।

वो किसी और से रिश्ते को निभाया होगा ।।3


इक  मुलाकात  पे इतना  भी तसव्वुर न  करो ।

शख़्स फ़िर वक्त पे  इस दिल का रि'आया होगा ।।4


उसको रहना ही पड़ेगा यूँ अँधेरों में मियां ।

जो किसी  घर के चरागों को बुझाया होगा ।।5


मंजिलें ख़ुद ही बुलाएंगी उसी को यारो 

ख़ाब मंजिल के लिए जिसने सजाया होगा ।।6


बारहा उनके छुपाने  से नहीं छुप पाए ।

इश्क़ नजरों से सरे बज़्म नुमाया  होगा ।।7


 रि'आया- रियासत दार

नुमाया   -प्रदर्शित


       - नवीन मणि त्रिपाठी

लगने लगी हैं बोलियाँ

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क्या क्या ख़बर सुनाऊं तुम्हें इस जहान  की ।

लगने  लगी  हैं  बोलियां   मेरे  मकान   की ।।


महँगाई डँस रही हो जहाँ रोज सुबहो शाम  ।

हर आदमी को फ़िक्र है अपने लगान की ।।


राशन जो मुफ़्त खा रहे अस्सी करोड़ लोग ।

चर्चा  करें  तो  कैसे  करें स्वाभिमान की ।।


करना है जिसने सीखा ख़ुशामद का इक हुनर ।

छूते  बुलंदिया  हैं  वही  आसमान  की ।।


घर  होंगे जमीदोंज  वही आजकल  यहाँ ।

तिरछी  नज़र  पड़ेगी  जहाँ हुक्मरान की ।।


ऐ हमनवा न रोज़ तू जुमलो की बात कर ।

कीमत सियासतों में कहाँ है ज़ुबान की।।


आरोप उन पे ही लगे क्यूँ लूट पाट के ।

खाई थी जिसने कस्में कभी संविधान की ।।


             -- नवीन मणि त्रिपाठी

ख्वाब का इक सिलसिला मिल जाएगा

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ज़िन्दगी  जीने  का  शायद   फ़लसफ़ा  मिल  जाएगा ।

उनसे मिलकर ख़्वाब का इक सिलसिला  मिल जाएगा ।।


उसकी ज़िद है ख़त मुझे लिक्खेगा वो इस शर्त पर ।

जब  उसे दिल का मेरे लिक्खा पता मिल जाएगा ।।


ढूढता   ही   रह   गया   ताउम्र  यारो   हमनशीं ।

क्या ख़बर थी एक दिन इक बेवफ़ा मिल जाएगा ।।


कहकशाँ  से  इक  सितारा  टूटा  इस  उम्मीद  में ।

चाँद  मुझको   बेख़ुदी  में  घूमता  मिल  जाएगा ।।


इश्क़  में तू  डूब  कर तो देख  कुछ  दिन ऐ  बशर ।

राह ए उल्फ़त का तुझे भी तज़रिबा मिल जाएगा ।।


माँगिये दुनिया से मत कोई मदद इस दौर में ।

 सबकी दर से  इक बहाना फिर नया मिल जाएगा ।।


कुछ गिला शिकवा शिकायत और थोड़ी तोहमतें ।

इससे ज़्यादा उनसे मिलकर और क्या मिल जाएगा ।।


मन्दिर ओ मस्ज़िद में वो मिलता नहीं है आजकल ।

अपने अंदर ढूढ तू तुझको ख़ुदा मिल जाएगा ।।


              --नवीन मणि त्रिपाठी।