इस मुफलिसी के दौर का, जबाब चाहिए।
जुर्मो सितम का अब हमें, हिसाब चाहिए॥
बे खौफ हो गया है यहाँ आम आदमी ।
शायद सियासतों में इंकलाब चाहिए ॥
इंसान मर रहा यहाँ रोटी के वास्ते ।
सरकार है उनकी उन्हें शराब चाहिए ॥
ईमान डर गया है ज़माने से इस कदर । जुर्मो सितम का अब हमें, हिसाब चाहिए॥
बे खौफ हो गया है यहाँ आम आदमी ।
शायद सियासतों में इंकलाब चाहिए ॥
इंसान मर रहा यहाँ रोटी के वास्ते ।
सरकार है उनकी उन्हें शराब चाहिए ॥
ईमानदार को भी अब नकाब चाहिए ॥
काँटों के बिस्तरों पे अब सोने लगे हैं लोग ।
नेता है, उसे बिस्तर ए गुलाब चाहिए ॥
हिन्दू या मुसलमा के खैर ख्वाह नहीं वो ।
उनको यहाँ अमन बहुत ख़राब चाहिए ॥
क्यूँ लोकपाल से उन्हे दहशत हुई है आज।
कहते हैं लोग, अब उन्हें जुलाब चाहिए॥
दंगो ने दी शिकस्त है इंसानियत को आज ।
कुर्सी का बेहतरीन , उसे ख्वाब चाहिए ॥
वह हुक्मरान है, उसे दावत कबूल है ।
उसको गरीब खाने से, कबाब चाहिए॥
हिन्दोस्ताँ कि लाज बचाने के लिए अब।
हर शख्स के सीने में, नयी आग चाहिए ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंसार्थक...
सादर
अनु
बढ़िया विषय-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
नकारात्मक गुण छिपा, ले ईमान की आड़ ।
व्यवहारिकता की कमी, दुविधा रही बिगाड़ ।
दुविधा रही बिगाड़, तर्क-अभिव्यक्ति जरुरी ।
आपेक्षा अब आप, करो दिल्ली की पूरी ।
पानी बिजली सहित, प्रशासन स्वच्छ सकारा ।
वायदे करिये पूर, अन्यथा कहूं नकारा ॥
बहुत ही बढ़िया सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति... सच्चाई का आईना दिखती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंईमान डर गया है ज़माने से इस कदर ।
जवाब देंहटाएंईमानदार को भी अब नकाब चाहिए ॥
काँटों के बिस्तरों पे अब सोने लगे हैं लोग ।
नेता है, उसे बिस्तर ए गुलाब चाहिए ॥
बहुत बढ़िया ग़ज़ल | लाजवाब पंक्तियाँ
नई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंनीचे दिया हुआ चर्चा मंच की पोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
aabhar shastri ji
हटाएंहिन्दोस्ताँ कि लाज बचाने के लिए अब।
जवाब देंहटाएंहर शख्स के सीने में, नयी आग चाहिए ॥ ...वाह बहुत सटीक पंक्तियां लाजवाब
भावपूर्ण सुन्दर गजल ...! क्या बात है ....
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया , बेहतरीन शब्दों से अलंकृत आपकी बेहतरीन रचना , नवीन भाई धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: घरेलू उपचार( नुस्खे ) भाग - ६
गहरा व्यंग्य प्रस्तुत करती शानदार रचना।।।
जवाब देंहटाएंक्या जोरदार ग़ज़ल कही है आपने त्रिपाठी जी. मज़ा आ गया.
जवाब देंहटाएंआवश्यकता इसी बात की ही है।
जवाब देंहटाएंकाँटों के बिस्तरों पे अब सोने लगे हैं लोग ।
जवाब देंहटाएंनेता है, उसे बिस्तर ए गुलाब चाहिए ...
वाह .. बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ... आज की हकीकत को बाखूबी बयाँ किया है ...
आज कि व्यवस्था पर व्यंग करती
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार गजल ....