तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 30 नवंबर 2011

मीत बन के कहानी बुनो तो सही

मीत बन  के  कहानी  बुनो   तो   सही |
तुम हृदय से हृदय  में  घुलो  तो  सही || 

स्वर जगा दूंगा होठों से सरगम  का मै|
बांसुरी बन के मुझको मिलो  तो  सही ||

पुष्प    राहों   में   तेरे   बिखर   जायेंगे |
दो  कदम   साथ   मेरे  चलो  तो  सही ||

तार   उलझे   हुए  जो   सुलझ  जायेंगे |
जिन्दगी  की  लिए  तुम ढलो तो सही ||

कब  तलक  बर्फ  बन  के जमोगे यहाँ ?
इस प्रणय अग्नि में कुछ गलो तो सही ||


जिन्दगी   के  अंधेरों  से  लड़  लूँगा  मैं |
एक  बाती  की  लव  बन जलो तो सही ||
                                                            -नवीन

तुझे मेरी वफाओं से ....

तुझे  मेरी  वफाओं  से  शिकायत  हो  गयी होगी |
बहुत रोका था नज़रों को हिमायत हो गयी होगी ||

इन  फिजाओं  में  भी,  महकी  है कोई  कस्तूरी |
किसी फतबे के  साए में हिदायत  दी गयी होगी ||


किसी पाजेब की घुघुरू की खनक रात भर आयी |
किसी की शाम  पे नज़रें इनायत  हो गयी होगी ||
   
चाँद   आया   था   तेरे   बज्म  में  शरमाया  सा |
बड़े  बेमोल  लम्हों  में  रियायत  हो  गयी होगी ||
                                                            - नवीन

छेड़ी जो ग़ज़ल

छेड़ी जो ग़ज़ल  रात  उसकी  याद  आ गयी |
पलकों में टिप टिपाती सी बरसात आ गयी ||

खुद को छिपा लिया  था  ज़माने इस  कदर |
परदे   हज़ार   फेंक  के   जज्बात  आ  गयी ||

मैंने  सुना  था  जख्म को भरता है वक्त भी |
हर वक्त  से  जख्मों  में नयी जान आ गयी ||

 गैरों   के  क़त्ल   होने  की  चर्चाएँ  आम  हैं |
अपनों के क़त्ल होने  की फरियाद आ गयी ||

उन  कांपते  होठों  ने जो  पूछा था मेरा हाल |
खामोसियाँ    लबों   पे   सरेआम  आ  गयी ||

अश्कों  ने  भिगोया  है  किसी कब्र की चादर |
नम  होती  हवाओं  से  ये  आवाज  आ गयी || 
                                                                       -नवीन

सोमवार, 28 नवंबर 2011

शंखनाद

             शंखनाद

                                  -नवीन मणि त्रिपाठी


      आज अपने खेत से आसमान में टकटकी लगाये गोखले के मन में बार बार यही खयाल आ रहा था कि कब दिखेंगे वे पानी वाले बादल ? मानो गोखले की फसल ही नहीं झुलस रही थी ,बल्कि उसके अन्तर मन में कल्पनाओं की लहलहाती फसल में जैसे आग सी लगी हुई थी । बेटी की शादी का रिश्ता तो पहले से ही तय कर चुका था। इसी वर्ष तो उसे शादी भी करनी थी। पिछले साल बेटी की पढाई, कापी किताब का इन्तजाम नहीं हो पाने की वजह से रोक दी थी । रोकता भी क्यों ना बेेटे की पढ़ाई उसे ज्यादा जरूरी लगी थी । दोनों का खर्चा चला पाना गोखले के बस की बात नहीं थी। प्राइवेट बैंक वालों ने बड़े मॅहगे दर पर कर्ज दिया था। फसल आने से पहले ही किसी किसी गिद्ध की तरह घर पर मडराने लगे थे । कमाई का ज्यादातर हिस्सा तो वही लोग वसूल ले गये थे। फिर इधर उधर की गणित लगाकर जैसे तैसे परिवार की गाड़ी तो चलानी ही थी।


      खयालों की तन्द्रा टूटते ही जानवरों के चारे के इन्तजाम लग गया तभी गॉव में एक हलचल का आभास उसे पलट कर गॉव की ओर देखने के लिए विवश कर दिया। जोर जोर से चीखने रोने की आवाजें बीच गॉव से आ रहीं थीं ं।गोखले के पैरों में गजब की ऊर्जा आ गयी और तेज गति से दौड़ते हुए गॉव की ओर चल पड़ा। आवाजें रमेश बोडालकर के घर से आ रहीें थीं । गोखले को समझते देर ना लगी कि शायद बहुत दिनों से टी0बी0की बीमारी झेल रहे बोडालकर अब नहीं रहे । बोडालकर ठीक भी कैसे होता कर्जा भरते भरते वह तो खोखला हो चुका था। पिछले साल उसकी फसल खराब हो गयी थी मगर वे गिद्ध मडराने से कहॉ बाज आये थे ?आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपइया की हालात को झेल पाना सबके बस की बात तो थी नहीं । सुरसा जैसी मुॅह फैलाए महॅगायी की मार सबसे अधिक बोडालकर ही झेला था। आये दिन इन प्राइवेट बैंकों के एजेंट लोगों ने उसका जीना मुहाल कर रखा था। रोज रोज जमीन हड़पने की धमकी भी तो यही एजेंट ही देकर जाते थे। आखिर कैसे चुकता करता वह अपना कर्ज ? घर में खाने तक के लाले पड़े हुए थे । भुखमरी की कगार पर आ बैठा था बोडालकर का परिवार । नहीं हो पाई दवाई , और अन्त में उसे मरना ही पड़ा। सोचते सोचते गोखले बोडालकर के दरवाजे तक पहुॅच गया।


   ‘‘मार डाला रे ........मार डाला रे .....‘‘छाती पीट पीट कर सन्नो बाई रो रहीं थीं।बेटे बेटियां हर कोई जोर जोर से चाीख चीख कर रो रहे थे। पूरे गॉव का मजमा लगा था। हर कोई आवाक था। बीमार बोडालकर की मौत स्वाभाविक नहीं थी । बोडालकर ने फॉसी लगा कर आत्महत्या की थी। लोगों ने बतााया बोडालकर के खेत की कुड़की की नोटिस उसे अभी कल ही मिली थी।खेतिहर जमीन तो किसान की आत्मा होती है। जी हॉ वही किसान जो सबका अन्नदाता है। अगर जमीन ही चली जाएगी तो किसान के जिन्दा रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर बोडालकर भी तो एक किसान ही था। आखिर किस आत्मशक्ति के सहारे वह जीवन जीता । उसे तो मरना ही था।
      थोड़ी देर मे पुलिस की जीप आयी ।थानेदार ने बोडालकर के लाश की तलाशी ली । जेब से सोसाइट नोट की पर्ची निकली उसमें लिखा था -‘‘जिसके सहारे मैं जी रहा था वह मेरी जमीन थी।जमीान जाने के बाद मैं अपने परिवार की बेबसी नहीं देख सकूंगा । मै जा रहा हूॅ। मेरे परिवार को परेशान मत किया जाए।‘‘लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गयी । गॉव वालो का गुस्सा उबाल पर था। सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगने लगे । विपक्षी पार्टियों को मुद्दा मिल गया। अखबारों में किसान रमेश बोडालकर की आत्महत्या की खबर पहले पेज पर छापी गयी। माधवपुर गॉव के रमेश बोडालकर की आत्महत्या पर विपक्षी दलों ने विधानसभा में हंगामा करके वाक आउट किया। चुनाव का माहौल था।  माधवपुर गॉव में नेताओं का जमावड़ा शुरू हो गया। किसान यूनियन ने माधवपुर गॉव में रैली की घोषाणा की।


       सरकार की भ्रष्टनीतियां किसानों को आत्महत्या के लिए प्ररित कर रही हैं। इस तरह के पोस्टर जिले भर में लगाये जाने लगे। प्रशासन की ओर से आनन फानन में जिला अधिकारी महोदय का स्थानान्तरण किया गया।जॉच के लिए कमेटी का गठन किया गया परन्तु विपक्षी इस मुद्दे को कहॉ शाान्त होने देना चाहते थे। विपक्षी दलों ने रमेश बोडालकर की आत्महत्या को जन आन्दोलन बनाने के लिए शंखनाद कर दिया था। अन्ततः मुख्यमंत्री ने भी माधवपुर गॉव के दौरे की तारीख को  सुनिश्चित कर दिया था।

      
        आज माधवपुर गॉव प्रदेश का महत्वपूर्ण गॉव बन चुका था। रमेश बोडालकर की मृत्यु हुए पन्द्रह दिन बीत चुके थे। गॉव की निहायत कच्ची सड़के खो चुकी थीं । गॉव के सभी गली कूचों में खड़न्जे की सड़के बना दी गयीं थीं।गॉव को पिच रोड से जोड़ दिया गया था। वर्षो से बन्द पड़े ट्यूबेल को चालू कर दिया गया था। किसान सेवा केन्द्र व सहकारी समितियों मे रौनक आ चुकी थी। खाद ,बीज, व दवाएं पूरे गॉव के किसानों को वितरित किया गया था। प्राइमरी स्कूल की रगाई पुताई हो चुकी थी। गॉव के कुॅए और बन्द पड़े इण्डिया मार्का नल सब कुछ बेहतर कर दिये गये थे। विद्युत विभाग ने दस दिन के अन्दर ही गॉव का विद्युतीकरण करा दिया था। सभी पोलों पर लाइटें लगा दी गयाीं थीं।ऐसा लग रहा था जैसे बोडालकर की मौत ने गॉव में विकास की गंगा बहा दी हो। आज तो गॉव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। ढेरों लाल नीली बत्ती वाली गाड़ियां गॉव में आ चुकी थीं।गणेश धापोडकर के खेत में हेली पैड बनाया गया था। पूरे गॉव में हजारों की भीड़ उपस्थित थी। डी0एम0साहब, डी0एस0पी0साहब वायरलेस सेट पर पल पल की खबर से वाकिफ हो रहे थे। किसी पर्व की भॉति माधवपुर गॉव सज गया था।मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर थोड़ी ही देर में पहुॅचने वाला था। मुख्यमंत्री जी के सवालों का जबाब कैसे देना है इसकी ट्रेनिंग गॉव के हर परिवार को प्रशासन की ओर से दे गयी थी।

    
     तेज हरहराहट की आवाज गॉव के पश्चिम दिशा की ओर आयी और देखते ही देखते मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर धापोडकर के खेत में उतर गया। मुख्यमंत्री व उनकी पार्टी के जिन्दाबाद के नारे से पूरा गॉव गूंज उठा। डी0एम0साहब , डी0एस0पी0साहब व क्षेत्र के विधायक व अन्य नेताओं ने उनकी अगवानी की । कुछ ही पलों में मुख्यमंत्री जी का काफिला रमेश बोडालकर के घर पहुॅच गया। मुख्यमंत्री जी ने स्वयं उनके परिवार का कुशल क्षेम पूॅछा। सन्नो बाई उन्हें देख कर रोने लगीं । मुख्यमंत्री जी ने उन्हें पॉच लाख रूपये का चेक भेंट किया,साथ ही उनका सारा सरकारी कर्जा माफ करने का आदेश दिया।एक बार फिर मुख्यमंत्री जी के जयकारों व जिन्दाबाद के नारों से पूरा गॉव गूंज उठा। गॉव के सभी किसानों के सरकारी कर्जे पचास प्रतिशत माफ कर दिये गये। रमेश बोडालकर की मौत को जन आन्दोलन का रूप देने के लिए विपक्षी दलों के द्वारा किये गये शंखनाद से पूरा गॉव का रूप तो वाकई बदल चुका था।कृषि यंत्रों ,खाद बीज  आदि पर भी पचास प्रतिशत के सरकारी अनुदान की घोषणा की गयी थी।विपक्षियों का मुॅह बन्द हो गया था।मुख्यमंत्री जी का यह कार्य अखबारों में सुर्खियां बटोर रहा था। कुछ महीनों बाद चुनाव आया मुख्यमंत्री जी की पार्टी का क्षेत्रीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया । मुख्यमंत्री जी पुनः अपने पद पर आसीन हुए।


       आज बोडालकर की मौत के दो वर्ष बीत चुके थे। लोगों सरकारी कर्जा माफ होने से थोड़ी राहत जरूर मिली थी । कुछ ही महीनों के बाद सारे अनुदान समाप्त हो गये थे। गॉव का बिजली वाला ट्रांसफारमर महीनों से जला पड़ा था। नया लगाने के लिए इंजीनियर घूस मॉगता था। गॉव के सड़कों की ईट उधड़ चुकी थी। सड़कों में बड़े बड़े गड्ढे नजर आने लगे थे। बोडालकर के बेटे खेती करना छोड़ चुके थे।अब वे अपनी दूकान चलाते थे। अब कर्ज लेकर खेती नहीं करना चाहते थे। उन्हें समझ में आ चुका था कि किसानी करके जीवन यापन नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री की सहायता राशि से उनका जीवन स्तर बदल चुका था। उन्हें अब खेती किसानी में अब घाटे का सौदा नजर आने लगा थां । गॉव का किसान एक बार फिर बेहाल था। सूखा पड़ने की स्थिति बन चुकी थी। जुलाई अपनी समाप्ति ओर थी । दूर दर तक मानसूनी बादलों का काई अता पता तक नहीं । खेतों की मॅहगी सिचाई कमर तोड़ रही थी । सरकारी कर्जा भी मिलना मुश्किल होता जा रहा था। कर्जा दिलाने वाले दलालों के रेट बढ़े हुए थे। प्राइवेट बैंकों से कर्ज लेना तो और भी खतरनाक था। महाजन की चॉदी थी वहॉ से कर्जे मिल जाते मागर समय से वापसी ना कर पाने पर इज्जत धन और जान की आफत मोाल लेना था। किसान सेवा केन्द्रो के बीज ,खाद सब कुछ महाजनों के नाम हो जाता था। फिर वही ब्लैक में खरीदा जा रहा था।


         गोखले तो बेटी की शादी कर चुका था। शादी में भी उसे कर्ज लेना पड़ा थां। खेतों की जुताई के लिए महाजन का ट्रैक्टर बुलाने गया था। पिछले दो दिनों से खेत में ट्रैक्टर का इन्तजार करके घर वापस चला आता। महाजन ने ट्रैक्टर नहीं भेजा उसे ट्रैक्टर नहीं भेजने की वजह मालूम थी, मगर खेत की जुताई अगर समय से हो जाए तो उसके बहुत फायदे थे। गरज अपनी थी इसलिए उसे फिर महाजन के यहॉ जाना ही पड़-
‘‘बाबू जी नमस्ते ।‘‘
‘‘ हॉ गोखले ! ट्रैक्टर के लिए आए हो ना तुम ?‘‘
‘‘जी बाबू जी बड़ी मुश्किल से सिचाई हो पायी है। समय निकल जाने पर बड़ा नुकसान हो जायेगा।‘‘
‘‘गोखले सही कहते हो तुम ! अपना नुकसान बहुत दिखता है तुम्हें। कभी मेरे नुकसान के बारे में भी सोचते हो। पिछले धन का ब्याज तक नहीं चुकता किया है तुमने । मैं तुम्हें कब तक ढोता रहूंगा। मैं कोई टाटा बिड़ला हॅू क्या ? अरे मेरे भी बाल बच्चे है अगर ऐसा ही करता रहा तो तुम मुझे भी रोड पर ला दोगे ं। ट्रैक्टर पहले नगद वालो के काम के लिए है ना कि उधार वालों के लिए।‘‘
‘‘बाबू जी फसल काटने के बाद अदा कर दूगा। आप ही के सहारे तो जिन्दा हूॅ , अब आप भी ऐसा कहेंगे तो कहॉ जाउंगा ?सरकारी बैंक वाले का भी अभी बाकी है । तीन नोटिस आ चुकी है । प्राइवेट बैंक वाले का पॉच हजार रूपया दस हजार में बदल चुका है। उसके लोग अलग से धमकी देकर जाते हैं । ‘‘
‘‘गोखले हमें तो लगता है बोडालकर की तरह तू भी एक दिन झूल जा। जीते जी तो कुछ कर नहीं पाया हॉ मरने के बाद तेरे भी घर का कायाकलप जरूर हो जायेगा। ......या फिर...............अपनी दो बीघे जमीन मुझे लिख दे । ‘‘
जमीन लिखने की बात सुनकर गोखले का मस्तिष्क सुन्न सा हो गया ।
‘‘ बाबू जी जमीन ही तो मेरी पूॅजी है,जिसके सहारे चल रहा हूॅ। ‘‘
‘‘देख गोखले ! मक्कारीपना हमसे मत करना ।कभी कहता है कि बाबू जी आपके ही सहारे चल रहा हूॅ और अब जुबान पलट के कहता है कि जमीन के सहारे ..............। गोखले तेरी नीयत खराब है.....जा चला जा यहॉ से मैं तेरी कोई मदत नहीं कर सकता । और हां जो पैसा बकाया है उसके एवज में जो कुछ भी तेरे पास गहना जेवर बरतन  है उसे मेरे पास रख जाना समझे ? वरना तुम्हारी खाल खिंचवा लूंगा । साला...बड़ा आया जमीन वाला ।‘‘

गेाखले काफी निराश होकर लौट रहा था। तभी एक जीप बगल मे आकर रूक गयी । शायद तहसीलदार साहब की थी ।
‘‘ क्या नाम है तेरा ?‘‘
‘‘सर संजय गोखले।‘‘
‘‘चल गाड़ी में बैठ। तेरे जैसे लोंगों को नोटिस भेजने  से कोई असर नहीं पड़ता है।‘‘
‘‘सर आपके पैर पकड़ता हूॅ ,जुताई का समय चल रहा है। मैं बरबाद हो जाऊॅगा ।बहुत मुफलिसी में जी रहा हूॅ.......साहब। इन्तजाम होते ही पहुॅचा दूॅगा। साहब मैंने पैसा उड़ाया नहीं था। इन्हीं खेतों में ही लगाया था। क्या करूं साहब ...........नहीं कमा पाया.....। मजबूर हो गया साहब। साहब आपकी थोड़ी दया हो जाए साहब .........जी साहब .......मैं अदा करूंगा साहब। ‘‘
‘‘अबे गाड़ी में बैठ चुपचाप बकवास बाद में करना। चल चौदह दिन तक जेल की हवा खायेगा तो तेरी सारी मजबूरी ठीक हो जायेगी ।‘‘

      तहसीलदार साहब के इतना कहते ही गाड़ी में बैठे सिपाही और अमीन ने धक्का देकर गोखले को जीप के अन्दर ठेल दिया।
 
       गेाखले को  जेल जाने की चिन्ता कम मगर बरबाद हो रही खेती और रोज जुगाड़ के सहारे चल रही रोटियों की चिन्ता अधिक थी । फीस जमा नहीं कर पाने से बेटे का नाम भी स्कूल से काट दिया गया था।

   गेाखले के जेल जाने से पत्नी रमा बाई बहुत दुखी हो गयीं थीं। घर में कुछ भी नहीं कैसे छुड़ाएं गोखले को ?कुछ सोच कर एक बार फिर महाजन के अलाव कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।रमा बाई महाजन के घर पहुॅच गयीं ।
 ‘‘बाबू जी मेरा गोखले जेल चला गया है। बाबू जी उसे छुड़ा लीजिए। जब गोखले आयेगा इन्तजाम करके दे दूंगी। ‘‘
‘‘ऐसा है रमा बाई मेरा पैसा जो बाकी है उसका तो तुमने कोई नाम ही नहीं लिया। कुछ जेवर जेवरात तो होंगे ही........ ले आओ........फिर सोचते हैं । ‘‘
‘‘बाबू जी हम जेवर कहॉ से लायेंगे ?घर में पहनने के लिए ढ़ंग के कपड़े तक तो हैं नहीं ।‘‘
महाजन का लहजा कड़क हो गया। ‘‘रमा बाई पैसे कमाने के हजारों रास्ते हैं । सड़क वाले ढाबे पर देखो रोज शाम को ट्रकों पर चढ़ती हैं और सबेरे पॉच छः सौ लेकर लौटतीं हैं । लेकिन तुम बेवकूफों को कौन समझाए ।जब तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो मेरे पास कौन सा खजाना रखा है? ‘‘
      रमा बाई का चेहरा लाल हो चुका था। अचानक ही आपे से बाहर हो गयीं । -‘‘ बाबू जी ट्रकों पर जिसकेा जाना होगा वह जाए । मैं इसी गॉव में मर जाऊॅगी और कहीं नहीं जाऊॅगी ...........समझे ? ये जो तुम्हारी कार कोठी है , ये सब मेरे मरद के खून पसीने की कमाई से चूसी गयी है। मुझको ट्रकों पर भेजने की सलाह देने वाले तुम कौन होते हो ? अपने घर वाालों कों ट्रकों पर क्यों नहीं भेजते............. ?‘‘
‘‘ रमा !................तुमको ज्यादा बदतमीजी आ गयी है। अगर एक शब्द भी बाहर निकाला तो तेरी जुबान काट लूंगा। .........साली ......कमीनी.....। जा भाग मेरे दरवाजे से नही ंतो  अभी कुत्ते बुला कर नोचवाउंगा। ‘‘
    रमा बाई की ऑखों में ऑशू आ गये और खामोशी के साथ अपने घर की ओर लौट पड़ी। घर लौट कर खाना का इन्तजाम भी करना था। कल रात में खाना नहीं बना था। सबेरे पड़ोसी के यहॉ से आटा उधार लेना था। बोडालकर के बच्चों की दूकान ठीक चलती थी,मगर अब वह भी उधार नहीं देता था। पड़ोसियों के यहॉ से भी कुछ खास सहयोग नहीं मिल पाता था। दोनों वक्त खाना बनना मुश्किल हो गया था। पिछले एक माह से एक बार ही बन पाता था। थोड़ी बहुत मेहरबानी धापोडकर के परिवार वालों कीे थी ।उनके यहॉ से पन्द्रह किलो आटा उधार मिल गया था। हॉ इस बीच जिन्दगी जीने कीे एक किरण जरूर नजर आ रही थी । घर पर बधी भैंस दस बारह दिनो में बच्चा देने वाली थी। दूध बेच कर घर के दाल रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा। डूबते घर को बचाने के लिए रमा बाई अपने नाबालिक बेटे को काम्टे के ईंट वाले भट्ठे पर काम करने के लिए भेजनें लगीं थीं।

    गोखले आज रिहा होकर घर आ चुका था। उसके घर आने की खबर प्राइवेट बैंक वालों को लग चुकी थी । रात आठ बजे बैंक के एजेंट लोग घर पर आ धमके ।
‘‘..गोखले !...........गोखले !.......।‘‘
‘‘हॉ साहब बताओ ?‘‘ गोखले ने सहमें हुए अन्दाज में पूॅछा।
‘‘ क्यों मेरी नौकरी खाने पर तुले हो?मेरा मैनेजर अब मुझे नहीं बख्सेगा। या तो पैसा दो या फिर अपना खेत दो। अगर कोर्ट  कचहरी से देना चाहते हो तो वह भी बताओ। तुम्हारी जमीन तो जायेगी ही ऊपर से जेल भी जााना पड़ेगा। ;;
एक बार फिर गोखले के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
‘‘नहीं साहब......... जेल नहीं जाऊॅगा। क्या करूं पन्द्रह दिन तक जेल में रहने से मेरी खेती खराब हो गयी है। मैं बहुत परेशान हूॅ साहब। थोड़ मोहलत जरूर चाहिए। आपका एक एक पाई अदा कर दूंगा। ‘‘
‘‘नहीं गोखले तुम गलत बोलते हो।आज मुझे हर हालत में रकम चाहिए।
 ‘‘आज तो मेरे पास कुछ भी नहीं है साहब।‘‘
‘‘है क्यों नहीं ,तुम्हारा खेत तो कुछ हम कुछ सरकारी बैंक वाले लेंगे। मगर अभी तो तुम्हारी भैंस तो है ही इसे ले जाऊंगा । बोली लगने पर जो भी कीमत वसूल होगी वह तुम्हारे खाते में जमा हो जायेगी ।‘‘
‘‘नहीं साहब भैंस तो नहीं दे पाउंगा।‘‘
‘‘तुम्हारी औकात है जो तुम हमें रोक लोगे । जाओ तुम थाने में बताओ मैं तो ले जा रहा हूॅ।‘‘
       गेाखले जानता था कि ये लोग एजेंट कम गुण्डे अधिक हैं। मुॅह लगने का मतलब था मार पीट होना। देखते  देखते उन लोगों ने भैस खोल लिया । बार बार मुड़ मुड़ कर गोखले की भैंस गोखले और रमा बाई को निहार रही थी।रमा और गोखले का कलेजा फटा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गोखले और रमा बाई के मुॅह पर पट्टी बॉधकर उनके बच्चे का अपहरण कर रहा हो।शायद भगवान ने उनकी ओर से मुॅह फेर लिया हो। अब तो कोई चारा भी नहीं है। जमीन की कुड़की आज नहीं तो कुछ महीनों तक में जरूर हो जायेगी ।जेल जाने से फसल तो खराब हो ही चुकी है। महाजन अब मदत नहीं करेगा । कैसे चलेगी जिन्दगी। अखिर ऐसे किसानों को कौन मदत करता है। सब मतलब के प्यारे हैं।

         रात दो बज चुके थे । गोखले की नींद गायब थी । आज वह बहुत भावुक हो चुका था। उसकी ऑखों से ऑशू बन्द होने का नाम नहीं ले रहे थे। रमा बाई ने बहुत समझाया , बेटे ने बहुत समझाया पर वह नहीं सो सका । धीरे धीरे रमाबाई और बच्चे को सवेरे की ठंढ़ी हवाओं ने झपकी दे दी थी । अब भी गोखले की ऑखों से नीद कोसों दूर थी।

        सवेरे पॉच बजे रमा की ऑख खुल गयी । गोखले बिस्तर से गायब था। रमा ने सोचा शायद खेत की तरफ गये होंगे । थोड़ देर बाद धापोडकर के लड़के ने खबर दी -
‘‘चाची !............ चाची! ....दौड़ो ...दौड़ो ...गजब हो गया।‘‘
‘‘क्या हो गया रे ?‘‘ रमा बाई ने पूछा।
‘‘गोखले चाचा पीछे वाली बाग में रस्सी से झूल गये हैं । ‘‘
रमा बाई के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी । एक लम्बी सी चीख के साथ बेहोश हो गयीं । लोगों ने पानी का छींटा मार कर होश में लाया । मॉ बेटे का चीखना चिल्लाना रोना जारी था। दस बजे तक थानेदार साहब आ गये । लाश उतारी गयी जेब से कोई सोसाइट नोट नहीं मिला । गॉव वाले सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे । महाजन जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि तहसीलदार ने जेल भेजा था इस लिए उसने आत्महत्या कर ली है। गॉव वाले अन्दर ही अन्दर खुश भी हो रहे थे । उन्हें फिर उम्मीद थी कि विपक्षी दल जन आन्दोलन के लिए शंखनाद करेंगे। फिर गॉव में विकास की गंगा बहेगी। सबके कर्जे माफ होंगे। लेकिन इस बार सब कुछ अलग था। कोई विपक्षी दल नहीं आया। चुनाव का माहौल नहीं था। नहीं हो सका कोई शंखनाद। नेताओं के लिए यह एक सामान्य घटना के अतिरिक्त कुछ नहीं था।



                                      प्रस्तुति।

                                              नवीन मणि त्रिपाठी
                                                 जी0वन0/28
                                           अरमापुर इस्टेट कानपुर
                                                 उ0प्र0




     

             

शनिवार, 26 नवंबर 2011

बाल दिवस पर .....नेहरु चाचा तुझे नमन है

बाल   हृदय   में   वास   है तेरा | 
नैतिकता   का   पाठ   है  तेरा ||
देश    प्रेम  का   राग   है  तेरा |
भारत    से  अनुराग  है   तेरा ||

बाल  दिवस  के इस   अवसर  पर |
श्रद्धा   के   संग   दिया   सुमन है ||
नेहरु चाचा ......................|
नेहरु चाचा ......................||

हम    बच्चे   भोले    भाले    हैं  |
तेरे    स्वर   के    मतवाले    हैं ||
हम   नहीं   हृदय   के   काले हैं |
हम   भारत   के   रखवाले   हैं ||

राष्ट्र सृजन   के   नये   दीप पर |
न्यौछावर मेरा  तन   मन   है ||
नेहरु चाचा ......   ..............  |
नेहरु चाचा .........      ..........||



हम सपथ आप   की   लेते   हैं |
आगे   की प्रगति सजोते     है ||
हम   राष्ट्र   भावना   बुनते   हैं |
उन्नति   देश   हित   करते हैं ||

हम    नन्हें   प्रेम   प्रतीकों से |
बुझती कलुषित यहाँ तपन है ||
नेहरु चाचा .........................|
नेहरु चाचा .........................|


तुम    भारत   के    नेता  हो |
तुम    परतंत्र    विजेता   हो ||
 बच्चों   के   प्रेम  प्रणेता   हो |
इस  लोक  तन्त्र के वेत्ता  हो ||

राष्ट्र पुष्प  की इस   क्यारी से |
तेरा शत शत अभिनन्दन है ||
नेहरु  चाचा तुझे    नमन    है |
नेहरु  चाचा   तुझे    नमन है ||

चाइना से सावधान .... अपना तिरंगा तुम पेइचिंग गाड दो

नोच नोच खाने को तैयार बैठा ड्रैगन आज ,भारती के पूत तुम भारती को शान दो |
स्वाभिमान रोज रोज रौंद रहा चीन आज ,देश की अखंडता को फिर से  उकार दो ||
आँख जो उठा के देश की प्रचंडता को , अपना   तिरंगा  तुम    पेइचिंग में गाड दो |
छदम वेष धारी बन बैठा है नीच दुष्ट ,लालची  को  आज  तुम  शेर  सा  दहाड़   दो ||

कारगिल युद्ध का प्रणेता बन बैठा था वो, चोर जैसे मुखड़े  पे  जोर  सा   प्रहार   दो |
खिसियानी बिल्ली जैसा  आचरण  करता है खंड खंड कर के  घमंड  को सूधार  दो ||
ईर्ष्यालु देश  है  तुम्हारी  ही प्रगति  से  वो , अपनी  प्रगति  कर  उसको  उजाड़  दो |
लोक तंत्र बीज के ही  अस्त्र  से करो प्रहार ,चाइना के एक एक प्रान्त को भी फाड़ दो ||

छदम युद्ध कश्मीर में ही लड़ता रहा  वो  ,.ऐसे  धूर्त  वादियों को  विश्व  में  उछल  दो |
बाल भी ना बांका कर पाया है वहन पे आज,ऐसे नीच राष्ट्र को तुम हर की मिशाल दो ||
दृष्टि जो उठाये माता भारती की लाज पर, भीम बन दुशाशन की आँख भी निकल लो |
बन्दर जैसी घुड़की दिखाए किसी और को वो ,शक्ति देश हो तुम शक्ति का प्रमाण दो ||

ताना शाही देश का प्रतीक  बन  बैठा  है वह , विस्तारवादी की  प्रपंचना को काट दो |
सारे ही पड़ोसियों का शत्रु बन बैठा  है  वह ,कूटनीतिवादियों  के  पंख  को उखाड़ दो ||
परमाणु  बम  से  भी डरते  नहीं  हैं  हम  अग्नि  के  शोलों  का ना कोई इम्तहान लो |
राख हो भी जायेगा तुम्हारा राष्ट्र  याद रखो , भारतीय शक्ति को ना कोई शंखनाद दो ||

अग्नि परीक्षा है  आयुधों  के  पूत  आज ,आपने  जवान  को भी  शस्त्र विकराल   दो |
अपनी परम्परा को टूटने ना देना कभी , जज्बा  है  जीत  का  ये  इसको  मसाल दो ||
इतना बनना गोले राष्ट्र के लिए तुम आज बीजिंग जैसे शहर को गोलों  से  ही पट दो |
आयुध  निर्माणी  का पताका कर दो अमर ,आयुधों के पूत आज देश को सम्हाल लो ||

मैंने ग़ज़ल लिखी है

मैंने   ग़ज़ल   लिखी    है  तेरे    यादगार    की |
तश्वीर     पुरानी     है   ,  खिजांए   बहार    की ||

मौसम ने गुलिस्तां को भिगोया था बहुत खूब |
साजिस    रची   गयी   तेरे   पुरवा   बयार  की ||

दिल थाम के  रोया न  मैं आशिक मिजाज था |
अश्कों   ने   कहानी   लिखी  थी  तेरे प्यार की ||

लिक्खा   जो   नाम रेत  पे  पहचान की  खातिर|
लहरें    बहा   के  ले   गईं    अरमान   यार   की  ||

दिल    के  बाज़ार  में  तो  मैं  आया  था शान से |
कीमत   लगाई    तू    ने    मेरे   बे    करार   की ||
                                                                             -नवीन

नव सृजन दीप बनना होगा (दोनों पुत्रों को समर्पित )

नव सृजन  दीप बनना होगा |
जीवन पथ पर चलना होगा ||


                            दो  अंकुर  ह्रदय   वाटिका   के |
                            पोषित   तुन  रक्त  कर्णिका के ||
                            तुम   हो  भविष्य  मेरे  घर   के |
                            सहयोगी   हो   जीवन   भर  के ||
                            तुम   मीत  रहोगे   पल  पल  के |
                            लाठी   हो   तुम   मेरे   कल  के ||


कर्मों  की  उच्य  श्रृंखला  से |
उर  अंधकार   हरना   होगा ||
नव सृजन दीप बनाना होगा |
जीवन पथ पर चलना होगा ||



                           जब व्यथित हृदय हो जाये कभी |
                           मन  की  क्यारी  मुरझाये  कभी ||
                          जब   तेज  रुग्ण  हो  जाये  कभी |
                          सांसों  का  स्वर  खो जाये  कभी ||
                          नीरसता   मन   में  छाये   कभी |
                          जब  राह  नहीं  मिल पाए कभी ||


उस पवन जगत  नियंता  से |
तब आत्म शक्ति भरना होगा ||
नव सृजन  दीप  बनना होगा |
जीवन  पथ  पर  चलना होगा ||


                            कुछ  कंटक   मय  पथ  आएंगे |
                            नित    अनुभव  नया   कराएँगे ||
                            कुछ   दृष्टिकोण  मिल   जायेंगे |
                            बल   आत्म   सदा  दे   जायेंगे ||
                            कल     के     प्रभात   लहरायेंगे |
                            तम   तुमको   छू   ना    पाएंगे ||


उन     संघर्षों    की   धारा   के |
प्रतिकूल   तुम्हें   बहना  होगा ||
नव   सृजन   दीप  बनना होगा |
जीवन   पथ  पर  चलना  होगा |


                             अभिलाषाओं    का   मान   रहे |
                             सुन्दर   कर्मों   का   ध्यान रहे ||
                             आध्यात्म    चेतना   ज्ञान  रहे |
                             मानवता    का    सम्मान   रहे ||
                             उत्कृष्ट     लक्ष्य    संज्ञान    रहे |
                             सर्वथा    दूर    मद    पान    रहे ||



चारित्रिक   मर्म   कसौटी    पर |
सोना   बन   कर   ढलना  होगा ||
नव   सृजन   दीप  बनना  होगा |
जीवन  पथ  पर   चलाना  होगा ||


                          यह सत्य यथावत निश्चित है |
                          जीवन मृत्यु चिर परिचित है ||
                         शंसय इसमें   ना  किंचित   है |
                         आत्मा तो उस  से  सिंचित है ||
                         वह भला कहाँ  कब  खंडित  है |
                         नव  जीवन  पुन:  सुनिश्चित है ||


मृत्यु     के    विश्रामालय     से |
नव  वस्त्र   पहन  चलना  होगा ||
नव  सृजन  दीप   बनना  होगा |
जीवन  पथ  पर   चलना  होगा ||
                                                    - नवीन

                            

बुधवार, 23 नवंबर 2011

दो गज़लें

                                           दो गज़लें 

                          - नवीन मणि त्रिपाठी 
                                     G1/28 अर्मापुर इस्टेट
                                         कानपुर-०९८३९६२६६८६

यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी, यहाँ तो  नाम बिकता है |
तुम्हारे  जहाँ   का  ईमान , तो  बेदाम  बिकता  है || 

सिसकती माँ के आँचल से तड़प कर भूख से रोया |
मिला कर दूध में पानी, तो  सुबहो शाम बिकता है ||  

वो  लज्जा है ,हया  है ,शर्म  है ,आँखों  का  पानी है |
शहर में आबरू अस्मत भी  खुले आम  बिकता है ||
उसे बिकता हुआ देखा तो  अश्कों ने  भिगो डाला |
करूं क्या  एक  की चर्चा, यहाँ  आवाम बिकता है ||
बाप  मजबूर  था , बेटी  का दूल्हा  ला नहीं पाया |
मंडी  में  यहाँ  दूल्हा  भी   एक  दाम  बिकता  है ||

मौत   की   खातिर  शुकूं  ढूढ़ा   इसी  बाज़ार  में  |
 क्या  खबर  थी  अब  यहाँ  कोहराम  बिकता  है ||

वो  शातिर है  वो झूठा है जमाना  खूब वाकिफ है |
उसी   ताज  है  हासिल  यहाँ   ईनाम  बिकता  है ||

बेचने  वालों  ने  छोड़ा  नहीं  कुछ  भी  यहाँ  यारों  |
कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||


                     २


वतन   की  आबरू  को  दागदार  मत करना |
चमन की खुशबुओं को शर्मशार मत करना ||

वो   परिंदा  है    कहीं  उसका    बसेरा   होगा |
इसी   दरख्त  पे  तुम  इंतजार  मत  करना ||

साजिशों  का  है  चलन  अब  तेरे मैखाने में |
किसी  पैमाने  का  तुम  ऐतबार मत करना ||

कभी मंदिर कभी मस्जिद से पुकारा तुमने |
वही  तो  एक  है   उसमें  दरार  मत  करना ||

ये  गोलियां  ये  धमाके  हैं  कायरों के करम|
बे  कसूरों  पे  कभी  दर्दे  वार   मत   करना ||

आज फिर भूख ने मांगी है जिन्दगी उसकी |
किसी की रोटियों  को  यूँ  फरार मत करना ||

भारती  माँ  है  रोज़  इसकी  इबादत  करना |
माँ  के आंशू  को  कभी नागवार मत करना || 

मेरा भारत महान है

             मेरा भारत महान है

                                          नवीन मणि त्रिपाठी 
                                            जी १/२८ अर्मापुर इस्टेट
                                              कानपुर 09839626686

देश की बहुरंगी आकृति .                                              
निरूपति करती है हमारी संस्कृति .                                
हमारी सभ्यता,                                                                 
 विश्व की श्रेष्ठ सभ्यताओं में से एक है .            
हमारी भाषा वेश भूषा ,
सब कुछ अनेक है .
अनेकता में एकता है .
यही तो विशेषता है .
गत वर्षों में हमने ,
अनेक सभ्यताओं व संस्कृति का विकास किया है .
इस दर से किसी देश ने ,
कहाँ सभ्यता का विकास किया है ?
हमारे प्राचीन परिवेश बदल चुके हैं .
हम नूतन मौलिकता में प्रखर हो चुके हैं .
हमारी चेतना संयुक्त के बजाय ,
एकाकी जीवन की ओर उन्मुख है .
आधुनिकता का धरातल हमारे सन्मुख है .
संवेदनशीलता ...
हमारी  प्रगति में बाधक है .
देश की उन्नति में अवरोधक है .
संवेदनाओं को हमने ,
धुएं में उड़ना सीख लिया है .
हो रही किसानों की आत्म हत्त्याओं पर ,
मुस्कुराना सीख लिया है .
हमने सीख लिया है ,
बहू बेटियों को जलाना.
शोषण के सेज पर नारियों को लिटाना .
संस्कारों के क्षेत्र  में हमने ,
अभूत पूर्व परिवर्तन किया है .
बूढ़े माँ बाप को दूर किया है .
अब वे हमें अनावश्यक  भार लगते हैं .
इसलिए उन्हें घर के बजाय आश्रम में रखते हैं .
जाति धर्म की विलुप्तप्राय खाइयों का ,
 जीर्नोध्वार किया है .
धर्म निरपेक्षता पर भी करारा वार किया है .
भ्रष्टाचार का आधुनिकतम रूप ,
हमारा नया अनुसंधान है .
हमारी नयी तकनीक से पूरा विश्व हैरान है .
आनर किलिंग का पेटेंट कराने का हमें ,
पूरा अधिकार है .
क्यों की यह
हमारे तुच्छ जनमानस को स्वीकार है .
हमारी तकनीक से जाँच एजेंसियों को ,
सुबूत नहीं मिलता है .
इससे हमारी योग्यता को बल मिलता है .
हम आतंक वाद उग्रवाद नक्सलवाद को ,
हासिल कर चुके हैं .
अदभुद राष्ट्र भावना के अंतर्राष्ट्रीय पुरष्कारों की दौड़ ,
में शामिल हों चुके हैं .
जाति वाद क्षेत्रवाद की भावना को ,
विकृत रूप दिया जाये .
थोडा सा जहर और घोल दिया जाये .
तो सम्भव है .......
गिरी राष्ट्र भावना का अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ,
तुम्हारा देश पा जाये .
इक्कीसवीं सदी का प्रथम चरण .
प्रगति का हो चुका है अनावरण .
हर तरफ घोटालों का भरमार .
टूट रहा अर्थ शक्ति द्वार .
अपराध जगत के चक्रवात में ,
जन नायकों का योगदान है .
सोचो .....................
कितना सुरक्षित देश का स्वाभिमान है ?
शदी के प्रथम चरण का ,
यही सोपान है .
मानवता की अवनति ,
संवेदनाओं का बलिदान है .
जी हाँ तुम गर्व से कहो ..........
और खूब कहो ......
मेरा भारत महान है .
मेरा भारत महान है .

वतन की आबरू का ये तमाशा और कब तक है

बेटियों   को जलाने  का यहाँ  पर  दौर कब तक  है |
वतन  की  आबरू  का ये  तमाशा  और कब तक है ||

साजिसों  का चलन है देश को  बेचेंगे  वो इक दिन |
तुम्हारे   डूबते   ईमान  में  अब  जोर  कब  तक  है ||

रोया  है  यहाँ   जंगल  भी  जलते   आशियाने   पर |
भरोसा  कुछ नहीं अब तो यहाँ पर मोर कब तक है ||

 टूटती     साँस    में   नाब्जों   को    ढूढ़ते  क्यूँ   हो |
जिन्दगी बुलबुला है जिन्दगी की डोर कब तक है ||

 रात   गुजरेगी    भला   कैसे    इस    तन्हाई    में |
जिगर  ने  वक्त  से  पूछा बताओ भोर कब तक है ||
हर  तरफ  खौफ   है   बरबादियों   के   मंजर  का |
उड़ा क्र नीद शहरों की  छिपा ये चोर कब तक है ||

बादलों  से  भी  क्या  शिकवा  करूं  उम्मीदों  का |
सूखती आँख से बरसात ये घनघोर  कब  तक है ||

किसी आतंक  के  साये  में  बेचीं  जिन्दगी  उसने |
यहाँ कुनबों के कत्ले आम का ये शोर कब तक है ||

वतन को बेचने वालों वतन  को   खूब  बेचो  तुम |
सोच लेना  ज़माने  में  तुम्हारा  ठौर कब तक है ||
                                                                                -नवीन




 

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है




भिक्षा के सहारे ,जिन्दगी की आस |
सदियों से उसका इतिहास |
कुछ मिल गया तो खाया ,
वरना भूखा ही सोया |
सदैव लक्ष्मी को दुत्कारा |
सरस्वती को पुकारा |
विद्या का पुजारी बन
जीवन बिताया |
विद्या का दान कर समाज को उठाया |
सात्विकता का पाठ पढाया |
नीति -अनीति का ज्ञान कराया |
भारतीय समाज को सभ्य बनाया |
नहीं बनना चाहा  ऐश्वर्य का प्रतीक |
विलासिता से नहीं कर सका प्रीति |
सर्वत्र जीवन मानव कल्याण में लगाता रहा |
वेद,पुराण ,ज्योतिष ,खगोल को
सजोता रहा |
वैज्ञानिकता को धर्म में पिरोता रहा |
पवित्रता की गंगा से सबको भिगोता रहा |
नहीं टूटा वह मुगलिया भायाक्रंतों से |
नहीं डिगा वह आपने सिद्धांतों से |
कभी दधीची तो कभी परशुराम बन
अनीति का दमन किया |
कभी मंगल तो कभी आजाद बन ,
गुलामी को दफ़न किया |
राष्ट्र हित में उसकी असंख्य कुर्बानियां |
भारतीय गौरव की अनगिनत निशानियाँ |
आखिर क्या दिया उसको इस देश ने ?
तुच्छ राजनीती के गंदे परिवेश ने |
आज वह मौन है |
अब उसकी सुनता ही कौन है |
अब उसका अस्तित्व खतरे में है |
जातीय संघर्ष के कचरे में है |
योग्यता के बाद भी अब वह अयोग्य है |
अपमान तिरष्कार व आभाव ही
उसका भोग्य है |
आज उसकी प्रतिभाएं कुंद हो रही हैं |
जीवन की आशाएं धुंध हो रहीं हैं |
भारतीय राजनीती की ओछी मानसिकता
की शिकार है |
गरीबी के दंस से ,
टूटता बिखरता उसका परिवार है |
दो वक्त की रोटी में बदहवास .....
पेट की आग में जलता अहसास......
बच्चों को पढ़ाना..|
अपने पैरों पर चलाना ...
कितना दूर हो गया है |
आरक्षण की तलवार से ,
सब कुछ चकना चूर हो गया है |
अब उसके बच्चे होटलों पर मिलते |
वे वहाँ कप प्लेट धुलते |
अब उसके घर की महिलाएं,
ब्यूटी पार्लर चलती हैं |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको सजातीं हैं |
अब वह भी शहर में रिक्शा चलाते मिलता है |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको वह ढोता है |
मजदूरी करके पाल रहा है पेट
उसके चरित्र का भी लग रहा है रेट |
ऐसे लोकतंत्र को बारम्बार धिक्कार है |
जहाँ योग्यता नहीं जाति आधार है |
आरक्षण
प्राकृतिक सिद्धांतो के बिरुद्ध है |
प्रकृति में
अयोग्यता का मार्ग अवरुद्ध है |
वैसाखी के सहारे राष्ट्र का विकास ,
एक कोरी कल्पना है |
टूट रहा लोकतंत्र का विश्वास ,
ये कैसी विडम्बना है |
हे भारतीय नेताओं !
अपने निहित स्वार्थों के खातिर |
सामाजिक समरसता को विषाक्त ,
कर ही दिया आखिर |
कब तक सेकोगे
जातिवाद की आग पर रोटियां ?
तुम्हारे मत -लोभ से,
देश टूट जायेगा |
वक्त तुम्हारी करतूतों पर ,
कालिख पोत जायेगा |
अब भी समय है ,
जागो और देश बचाओ |
अमूल्य प्रतिभाओं को पहचानो ,
और देश में सजाओ |
तुम्हारी करनी का परिणाम ,
परिलक्षित हो गया है |
सामाजिक विघटन
से वह विचलित हो गया है |
वह तुम्हारे देश की सम्पदा है ,
उसे डूबने से बचाओ |
उसकी योग्यता को सम्मान दिलाओ |
जाति आधारित आरक्षण को मिटाओ |
तुम्हारी छुद्रता से राष्ट्र कलंकित हो गया है |
हाँ यही सच है |
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||



आज का पंडित ,महा दलित हो गया है

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है




भिक्षा के सहारे ,जिन्दगी की आस |
सदियों से उसका इतिहास |
कुछ मिल गया तो खाया ,
वरना भूखा ही सोया |
सदैव लक्ष्मी को दुत्कारा |
सरस्वती को पुकारा |
विद्या का पुजारी बन
जीवन बिताया |
विद्या का दान कर समाज को उठाया |
सात्विकता का पाठ पढाया |
नीति -अनीति का ज्ञान कराया |
भारतीय समाज को सभ्य बनाया |
नहीं बनना चाहा  ऐश्वर्य का प्रतीक |
विलासिता से नहीं कर सका प्रीति |
सर्वत्र जीवन मानव कल्याण में लगाता रहा |
वेद,पुराण ,ज्योतिष ,खगोल को
सजोता रहा |
वैज्ञानिकता को धर्म में पिरोता रहा |
पवित्रता की गंगा से सबको भिगोता रहा |
नहीं टूटा वह मुगलिया भायाक्रंतों से |
नहीं डिगा वह आपने सिद्धांतों से |
कभी दधीची तो कभी परशुराम बन
अनीति का दमन किया |
कभी मंगल तो कभी आजाद बन ,
गुलामी को दफ़न किया |
राष्ट्र हित में उसकी असंख्य कुर्बानियां |
भारतीय गौरव की अनगिनत निशानियाँ |
आखिर क्या दिया उसको इस देश ने ?
तुच्छ राजनीती के गंदे परिवेश ने |
आज वह मौन है |
अब उसकी सुनता ही कौन है |
अब उसका अस्तित्व खतरे में है |
जातीय संघर्ष के कचरे में है |
योग्यता के बाद भी अब वह अयोग्य है |
अपमान तिरष्कार व आभाव ही
उसका भोग्य है |
आज उसकी प्रतिभाएं कुंद हो रही हैं |
जीवन की आशाएं धुंध हो रहीं हैं |
भारतीय राजनीती की ओछी मानसिकता
की शिकार है |
गरीबी के दंस से ,
टूटता बिखरता उसका परिवार है |
दो वक्त की रोटी में बदहवास .....
पेट की आग में जलता अहसास......
बच्चों को पढ़ाना..|
अपने पैरों पर चलाना ...
कितना दूर हो गया है |
आरक्षण की तलवार से ,
सब कुछ चकना चूर हो गया है |
अब उसके बच्चे होटलों पर मिलते |
वे वहाँ कप प्लेट धुलते |
अब उसके घर की महिलाएं,
ब्यूटी पार्लर चलती हैं |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको सजातीं हैं |
अब वह भी शहर में रिक्शा चलाते मिलता है |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको वह ढोता है |
मजदूरी करके पाल रहा है पेट
उसके चरित्र का भी लग रहा है रेट |
ऐसे लोकतंत्र को बारम्बार धिक्कार है |
जहाँ योग्यता नहीं जाति आधार है |
आरक्षण
प्राकृतिक सिद्धांतो के बिरुद्ध है |
प्रकृति में
अयोग्यता का मार्ग अवरुद्ध है |
वैसाखी के सहारे राष्ट्र का विकास ,
एक कोरी कल्पना है |
टूट रहा लोकतंत्र का विश्वास ,
ये कैसी विडम्बना है |
हे भारतीय नेताओं !
अपने निहित स्वार्थों के खातिर |
सामाजिक समरसता को विषाक्त ,
कर ही दिया आखिर |
कब तक सेकोगे
जातिवाद की आग पर रोटियां ?
तुम्हारे मत -लोभ से,
देश टूट जायेगा |
वक्त तुम्हारी करतूतों पर ,
कालिख पोत जायेगा |
अब भी समय है ,
जागो और देश बचाओ |
अमूल्य प्रतिभाओं को पहचानो ,
और देश में सजाओ |
तुम्हारी करनी का परिणाम ,
परिलक्षित हो गया है |
सामाजिक विघटन
से वह विचलित हो गया है |
वह तुम्हारे देश की सम्पदा है ,
उसे डूबने से बचाओ |
उसकी योग्यता को सम्मान दिलाओ |
जाति आधारित आरक्षण को मिटाओ |
तुम्हारी छुद्रता से राष्ट्र कलंकित हो गया है |
हाँ यही सच है |
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||

सोमवार, 21 नवंबर 2011

क्रिकेट बनाम देश

         क्रिकेट बनाम देश
                              
   -- नवीन मणि त्रिपाठी
                              
                              G 1 / 28 अरमापुर इस्टेट कानपुर
                              
                                  फोन - 09839626686

 भारत क्रिकेट के खेल में ,
विश्व चैम्पियन बना .
देश का सम्मान बढ़ा .
२८ वर्षों बाद पूरा हुआ सपना ,
वर्डकप  हुआ अपना .
पूरे देश में ऐतिहासिक जश्न मनाया गया .
उद्योग पति से लेकर मजदूर तक में ,
जागृती आयी ,
ख़ुशी के पल में पटाखों को जलाया गया .
रातों रत टीम इंडिया के सभी खिलाड़ी ,
देश के नायक बन गये .
देश की तकदीर के निर्णायक बन गये .
देश का हर नागरिक आत्म सम्मान से ओत प्रोत हो गया .
सचिन धोनी युवराज से अभिभूत हो गया .
हर गली कूचों व् चौराहों पर,
 विश्व विजेता का उफान देखा गया .
ढेरों मिठाइयों जोरदार जुलूस के नारों से,
 खिलाडियों का सम्मान देखा गया .
भारत की उन्नति का प्रतीक है क्रिकेट .
सभी ग्यारह खिलाडी हैं देश के विकेट .
देश की खिलाडी क्रीज पर जम कर मैच जीतते हैं ,
तो देश का सर ऊंचा हो जाता है .
यही विकेट जल्दी गिर कर मैच हारते हैं ,
तो देश का सर शर्म से झुक जाता है .
गाँधी सुभाष और भगत सिंह के देश के सर में ,
बी ० सी ० सी ० आई ० की स्प्रिंग लग गयी है .
देश की सोच बदल गयी है .
बी ० सी ० सी ० आई ० की टीम की जीत ,
से सर उठ जाता है .
और हार से सर झुक जाता है .
*        *        *         *         *       *           *        *

सर नहीं झुकता अब ,
देश में हो रही हजारों निर्दोषों की हत्त्याओं पर .
देश के भ्रष्टाचारियों के धन से लदे स्विस बैंकों पर .
हजारों किसानों की आत्म हत्याओं पर ,
पडोसी देशों द्वारा कब्ज़ा की हुई जमीनों पर .
हमारे करोड़ पति , अरबपति खिलाडियों ने,
 पसीना बहाया है.
देश का मनोरंजन कराया है .
हमारे मंत्री राष्ट्रपति ने मैदान में जाकर,
 हौसला बढ़ाया है .
हमारे सेना अध्यक्षों ने,
 कर्नल जैसा पद देकर सम्मान बढाया है .
देश की राष्ट्रपति ने उन्हें भोज पर बुलाया .
B.C.C.I. करोड़ों रुपया खिलाडियों पर बरसाया .
अनेक कंपनियों ने.
 खिलाडियों को पुरस्कारों से नवाजा .
सबने बनाया उन्हें ख्वाजा .
देश के नायकों ने जलाई ,
पवित्र भारतीय संस्कृति की होली .
महगी शराब शैम्पेन से .,
मैदान में खेली होली .
इन नायकों ने दिखाया ;
देश के युँवाओं को शैम्पेन का असर .
बोतल की ताकत की हो गयी बच्चों में खबर .
दीमक की तरह भारतीय मस्तिष्क को ,
चाट रहा है यह खेल .
बड़ी बड़ी कंपनियों का बढ़ा रहा है सेल .
सब कुछ भूल कर ,
चैन से मजा लेने की क्षमता देता है .
हमारे जननेताओं को ,
क्रिकेट का नशा स्टेडियम में बुला लेता है .
राष्ट्रीय खेल हाकी का तो बुरा हाल है .
कबड्डी कुस्ती  खोखो तैराकी सब कुछ बेहाल है .
भारतीय RASHTREEY   नेताओं को हम चुनौती दे सकते हैं .
हमे पता है वे क्रिकेट को छोड़ कर किसी अन्य ,
खेल के पाँच खिलाडियों के नाम भी ,
 नहीं बता सकते हैं .
राष्ट्रीय शहीदों के बेटों को,
 वे कर्नल नहीं बना सकते हैं ,
उनकी बिधवाओं को वे ,
पार्स एरिया बँगलें नहीं बनवा सकते हैं ,
वे भारतीय मुख्य मंत्री हैं .
देश के सन्तरी हैं .
वे क्रिकेट के खिलाडियों का सम्मान करते हैं .
मैदान पर पसीना बहाने वालों को लाखों,
 का दान करते हैं .
रोज जब किसी प्रदेश का जवान .
सजोता है भारत का सम्मान .
शहीद बन के ,
भारत माँ की गोदी में सो जाता है .
नहीं दे पाते हैं हम उन्हें ,
क्रिकेट के खिलाडियों जैसा सम्मान .
कहाँ चला जाता है ,
हमारा स्वाभिमान ?
कुछ ही दिनों में ,
हम उन्हें भूल जाते हैं .
बलिदानियों के लिए ,
 राष्ट्रीय धर्म का वसूल गवांते हैं ,
शहीदों की विधवाओं और अनाथ बच्चों का ,
कितना हो पता है सम्मान ?
अगर कुछ दे सकते हो ,
तो भारत माँ का मत करो अपमान .
शहीदों के बच्चों व् विधवाओं को ,
उचित सम्मान दिलाओ .
राष्ट्रपति भवन में ,
उन्हें भी भोज पर आमंत्रित कराओ .
अगर तुम मैदान के
शराब के नशेबाजों पर करोड़ों ,
लुटा सकते हो ,
तो देश के शहीदों को,
 कैसे भुला सकते हो ?
जाओ प्राश्चित करो ,
उनकी कुर्बानियों को,
 याद करो .
उनके परिवार को सम्मान दिलाओ
सचिन और धोनी के बदले ,
उन्हें भी कर्नल व् लेफ्टिनेंट बनाओ .
शायद इतिहास तुम्हें माफ़ कर देगा .
वरना एक बार फिर यही इतिहास,
 गुलामी की कालिख से .
 तुम्हारा नाम लिख देगा .
राज नीति व् प्रशासन के मेहमानों .
वास्तविक विजेता को पहचानों .
सोच नहीं बदली तो ,
भारत का ज्वलंत परिवेश हो जायेगा.
इस बार चुनाव का मुद्दा भी ,
क्रिकेट बनाम देश हो जायेगा .
क्रिकेट बनाम देश हो जायेगा .

                    -- नवीन मणि त्रिपाठी