दो गज़लें
- नवीन मणि त्रिपाठी
G1/28 अर्मापुर इस्टेट
कानपुर-०९८३९६२६६८६
यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी, यहाँ तो नाम बिकता है |
तुम्हारे जहाँ का ईमान , तो बेदाम बिकता है ||
सिसकती माँ के आँचल से तड़प कर भूख से रोया |
मिला कर दूध में पानी, तो सुबहो शाम बिकता है ||
वो लज्जा है ,हया है ,शर्म है ,आँखों का पानी है |
शहर में आबरू अस्मत भी खुले आम बिकता है ||
उसे बिकता हुआ देखा तो अश्कों ने भिगो डाला |
करूं क्या एक की चर्चा, यहाँ आवाम बिकता है ||
बाप मजबूर था , बेटी का दूल्हा ला नहीं पाया |
मंडी में यहाँ दूल्हा भी एक दाम बिकता है ||
मौत की खातिर शुकूं ढूढ़ा इसी बाज़ार में |
क्या खबर थी अब यहाँ कोहराम बिकता है ||
वो शातिर है वो झूठा है जमाना खूब वाकिफ है |
उसी ताज है हासिल यहाँ ईनाम बिकता है ||
बेचने वालों ने छोड़ा नहीं कुछ भी यहाँ यारों |
कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||
२
वतन की आबरू को दागदार मत करना |
चमन की खुशबुओं को शर्मशार मत करना ||
वो परिंदा है कहीं उसका बसेरा होगा |
इसी दरख्त पे तुम इंतजार मत करना ||
साजिशों का है चलन अब तेरे मैखाने में |
किसी पैमाने का तुम ऐतबार मत करना ||
कभी मंदिर कभी मस्जिद से पुकारा तुमने |
वही तो एक है उसमें दरार मत करना ||
ये गोलियां ये धमाके हैं कायरों के करम|
बे कसूरों पे कभी दर्दे वार मत करना ||
आज फिर भूख ने मांगी है जिन्दगी उसकी |
किसी की रोटियों को यूँ फरार मत करना ||
भारती माँ है रोज़ इसकी इबादत करना |
माँ के आंशू को कभी नागवार मत करना ||
वाह! क्या बात है? वैसे एक मसयने में यहां सबकुछ सस्ता है जैसे इज्जत, मान मर्यादा अस्मत आदि क्या नहीं सस्ता है? जब चाहो ख़रीद लो, जब चाहो बेच दो।
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