बेटियों को जलाने का यहाँ पर दौर कब तक है |
वतन की आबरू का ये तमाशा और कब तक है ||
साजिसों का चलन है देश को बेचेंगे वो इक दिन |
तुम्हारे डूबते ईमान में अब जोर कब तक है ||
रोया है यहाँ जंगल भी जलते आशियाने पर |
भरोसा कुछ नहीं अब तो यहाँ पर मोर कब तक है ||
टूटती साँस में नाब्जों को ढूढ़ते क्यूँ हो |
जिन्दगी बुलबुला है जिन्दगी की डोर कब तक है ||
रात गुजरेगी भला कैसे इस तन्हाई में |
जिगर ने वक्त से पूछा बताओ भोर कब तक है ||
हर तरफ खौफ है बरबादियों के मंजर का |
उड़ा क्र नीद शहरों की छिपा ये चोर कब तक है ||
बादलों से भी क्या शिकवा करूं उम्मीदों का |
सूखती आँख से बरसात ये घनघोर कब तक है ||
किसी आतंक के साये में बेचीं जिन्दगी उसने |
यहाँ कुनबों के कत्ले आम का ये शोर कब तक है ||
वतन को बेचने वालों वतन को खूब बेचो तुम |
सोच लेना ज़माने में तुम्हारा ठौर कब तक है ||
-नवीन
वाह! बहुत ख़ूब
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