भ्रष्टाचार के निमित्त कुछ छंद
-- नवीन मणि त्रिपाठी
गाँधी तेरे देश में विडम्बना का हाल ये है ,भ्रष्टता परंपरा की रीत बन जाएगी |.
आधी अर्थ शक्ति तो विदेशियों के हाथ में है ,उग्रता तो जनता की प्रीत बन जाएगी ||.
लाज शर्म घोल के पिया है जननायकों ने ,लोकपालवादियों की नीद उड़ जाएगी |
कली है कमाई अब देश के प्रशासकों , की अब तो लुटेरों वाली नीति बन जाएगी ||
हो रहा अवैध है खनन इस देश में तो भट्टा परसौल की मिसाल मिल जाएगी |
टू जी का घोटाला है तो खेलों में भी घाल-मेल ,ऐसे जननायकों की चाल दिख जाएगी||
हत्यारे हैं जेलों के करेंगे क्या सुरक्षा वो , जाँच की मजाल की जुबान सिल जाएगी |
कौन से भरोसे से तू वोट मांग पायेगा रे , चोर सी निगाह तेरी उठ नहीं पायेगी ||.
होड़ सी लगी है आज देश को खंगालने की ,देश में विषमता की खाई खुद जाएगी |
रोटी दाल थाली मजदूर से भी दूर चली ,महगाई मौत की कहानी लिख जाएगी ||
टूट रही देश भक्ति टूट रहा आत्मबल , और क्या व्यथाओं की निशानी चुभ जाएँगी |
लोकतंत्र का मजाक बन गया देश आज , वन्दे मातरम वाली वाणी उठ जाएगी||
अर्थ के गुलाम बन जिन्दगी जियेंगे नही , दूसरी आजादी की लडाई छिड़ जाएगी |
काले कारोबारियों को देश से उखाड़ फेंक , देश में प्रसन्नता की फिर घडी आएगी ||
धैर्य की परीक्षा अब देंगे नही देश वासी, अर्थतंत्र वाली बलि- बेदी चढी जाएगी |
बांध के कफ़न आज युद्ध में तो कूद कर , भ्रष्टाचारी ताज पर मौत जड़ी जाएगी ||
--नवीन मणि त्रिपाठी
जी १ / २८ अरमापुर कानपुर
फोन - ९८३९६२६६८६
गाँधी तेरे देश में विडम्बना का हाल ये है ,भ्रष्टता परंपरा की रीत बन जाएगी |.
आधी अर्थ शक्ति तो विदेशियों के हाथ में है ,उग्रता तो जनता की प्रीत बन जाएगी ||.
लाज शर्म घोल के पिया है जननायकों ने ,लोकपालवादियों की नीद उड़ जाएगी |
कली है कमाई अब देश के प्रशासकों , की अब तो लुटेरों वाली नीति बन जाएगी ||
हो रहा अवैध है खनन इस देश में तो भट्टा परसौल की मिसाल मिल जाएगी |
टू जी का घोटाला है तो खेलों में भी घाल-मेल ,ऐसे जननायकों की चाल दिख जाएगी||
हत्यारे हैं जेलों के करेंगे क्या सुरक्षा वो , जाँच की मजाल की जुबान सिल जाएगी |
कौन से भरोसे से तू वोट मांग पायेगा रे , चोर सी निगाह तेरी उठ नहीं पायेगी ||.
होड़ सी लगी है आज देश को खंगालने की ,देश में विषमता की खाई खुद जाएगी |
रोटी दाल थाली मजदूर से भी दूर चली ,महगाई मौत की कहानी लिख जाएगी ||
टूट रही देश भक्ति टूट रहा आत्मबल , और क्या व्यथाओं की निशानी चुभ जाएँगी |
लोकतंत्र का मजाक बन गया देश आज , वन्दे मातरम वाली वाणी उठ जाएगी||
अर्थ के गुलाम बन जिन्दगी जियेंगे नही , दूसरी आजादी की लडाई छिड़ जाएगी |
काले कारोबारियों को देश से उखाड़ फेंक , देश में प्रसन्नता की फिर घडी आएगी ||
धैर्य की परीक्षा अब देंगे नही देश वासी, अर्थतंत्र वाली बलि- बेदी चढी जाएगी |
बांध के कफ़न आज युद्ध में तो कूद कर , भ्रष्टाचारी ताज पर मौत जड़ी जाएगी ||
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