तुझे मेरी वफाओं से शिकायत हो गयी होगी |
बहुत रोका था नज़रों को हिमायत हो गयी होगी ||
इन फिजाओं में भी, महकी है कोई कस्तूरी |
किसी फतबे के साए में हिदायत दी गयी होगी ||
किसी पाजेब की घुघुरू की खनक रात भर आयी |
किसी की शाम पे नज़रें इनायत हो गयी होगी ||
चाँद आया था तेरे बज्म में शरमाया सा |
बड़े बेमोल लम्हों में रियायत हो गयी होगी ||
- नवीन
tripathi ji
जवाब देंहटाएंsadhuvaad
aesi ras mayi rachna ke liye.
main sahityakar to nahi par ek prashanshak ke roop me main kah raha hoon ki aapki kavitae jabardast hain
sadhuvaad fir se
ashutosh jha
बड़े बेमोल लम्हों में रियायत हो गयी होगी ||
जवाब देंहटाएंjitni satik utni hi prabhavi ....kalam ka anubhav jhalak raha hai !! sundar se bhi kuch aur jyada !!
अच्छी है गज़ल.. बहुत आसानी से गाई जा सकती है.. भाव खुलकर व्यक्त हुए हैं!!
जवाब देंहटाएंआपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल...