मुक्तक
-- नवीन मणि त्रिपाठी
जी -१/२८ अर्मापुर इस्टेट
कानपुर
दूरभाष :- ०९८३९६२६६८६
तेरे पाजेब की घुघरू ने, दिल से कुछ कहा होगा .
लबों ने बंदिशों के शख्त पहरों ,को सहा होगा ..
यहाँ गुजरी हैं रातें किस कदर पूछो न तुम मुझसे .
तसुव्वर में तेरी तस्वीर का हाले बयां होगा ..
यहाँ ढूढा वहां ढूँढा , ना जाने किस जहाँ ढूँढा .
किसी बेदर्द हाकिम से , गुनाहों की सजा ढूँढा ..
वफाओं के परिंदे उड़ गए हैं , इस जहाँ से अब.
जालिमों के चमन में , मैंने कातिल का पता ढूँढा..
शमां रंगीन है फिर से गुले गुलफाम हो जाओ .
मोहब्बत के लिए दिल से , कभी बदनाम हो जाओ ..
चुभन का दर्द कैसा है , जवानी जख्म दे देगी.
वक्त की इस अदा पर तुम भी ,कत्लेआम हो जाओ ..
ये साकी की सराफत थी, जाम को कम दिया होगा .
तुम्हारी आँख की लाली को , उसने पढ़ लिया होगा..
बहुत खामोशियों से मत पियो, ऐसी शराबों को .
छलकती हैं ये आँखों से , कलेजा जल गया होगा ..
-- नवीन मणि त्रिपाठी
तेरे पाजेब की घुघरू ने, दिल से कुछ कहा होगा .
लबों ने बंदिशों के शख्त पहरों ,को सहा होगा ..
यहाँ गुजरी हैं रातें किस कदर पूछो न तुम मुझसे .
तसुव्वर में तेरी तस्वीर का हाले बयां होगा ..
यहाँ ढूढा वहां ढूँढा , ना जाने किस जहाँ ढूँढा .
किसी बेदर्द हाकिम से , गुनाहों की सजा ढूँढा ..
वफाओं के परिंदे उड़ गए हैं , इस जहाँ से अब.
जालिमों के चमन में , मैंने कातिल का पता ढूँढा..
शमां रंगीन है फिर से गुले गुलफाम हो जाओ .
मोहब्बत के लिए दिल से , कभी बदनाम हो जाओ ..
चुभन का दर्द कैसा है , जवानी जख्म दे देगी.
वक्त की इस अदा पर तुम भी ,कत्लेआम हो जाओ ..
ये साकी की सराफत थी, जाम को कम दिया होगा .
तुम्हारी आँख की लाली को , उसने पढ़ लिया होगा..
बहुत खामोशियों से मत पियो, ऐसी शराबों को .
छलकती हैं ये आँखों से , कलेजा जल गया होगा ..
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