बंदिश से निकल आयी बेबाक मुहब्बत है|
करने लगी है सबको आदाब मुहब्बत है ||
ठहरे हुए हैं लम्हें नजरों का कहर बरपा |
बिखरी सी चांदनी कि महताब मुहब्बत है ||
पहरे हजार होंगे , परदे हजार होंगे |
हसरत का फूल ले के वो बेक़रार होंगे ||
लहरें तो साहिलों से लिपटेगी आज खुलकर |
हलचल है समंदर में बेख़ौफ़ ज्वार होंगे ||
कलियों ने गंध छोड़ी भौरे मचल पड़े हैं |
बरसात कि छुवन से दादुर उछल पड़े हैं ||
मौसम है आशिकाना जज्बात बह न जाए |
तुम भी वहीँ खड़ी हो हम भी यहीं खड़े हैं ||
स्वाती का बूँद लेकर मैं सीप ढूँढता हूँ |
बादल के लिए धरती की चीख ढूँढता हूँ ||
संवेदना के स्वर से वाकिफ हुई वो जब से |
पायल की घुंघरुओं में संगीत ढूँढता हूँ ||
खुद की कलम से खास ,इश्तिहार भेजता हूँ |
नदियों को समंदर का मैं प्यार भेजता हूँ ||
इजहारे मुहब्बत का झंडा बुलंद रखना |
होगा मुकाम हासिल करार भेजता हूँ ||
ये शरबते इश्क़ है पीना बहुत संभल के |
तासीरे आग है ये कुर्बान न हो जल के ||
जब जब शमा से यारी कर ली है पतंगों ने |
खोया है पंख अक्सर आये थे जब निकल के ||
करने लगी है सबको आदाब मुहब्बत है ||
ठहरे हुए हैं लम्हें नजरों का कहर बरपा |
बिखरी सी चांदनी कि महताब मुहब्बत है ||
पहरे हजार होंगे , परदे हजार होंगे |
हसरत का फूल ले के वो बेक़रार होंगे ||
लहरें तो साहिलों से लिपटेगी आज खुलकर |
हलचल है समंदर में बेख़ौफ़ ज्वार होंगे ||
कलियों ने गंध छोड़ी भौरे मचल पड़े हैं |
बरसात कि छुवन से दादुर उछल पड़े हैं ||
मौसम है आशिकाना जज्बात बह न जाए |
तुम भी वहीँ खड़ी हो हम भी यहीं खड़े हैं ||
स्वाती का बूँद लेकर मैं सीप ढूँढता हूँ |
बादल के लिए धरती की चीख ढूँढता हूँ ||
संवेदना के स्वर से वाकिफ हुई वो जब से |
पायल की घुंघरुओं में संगीत ढूँढता हूँ ||
खुद की कलम से खास ,इश्तिहार भेजता हूँ |
नदियों को समंदर का मैं प्यार भेजता हूँ ||
इजहारे मुहब्बत का झंडा बुलंद रखना |
होगा मुकाम हासिल करार भेजता हूँ ||
ये शरबते इश्क़ है पीना बहुत संभल के |
तासीरे आग है ये कुर्बान न हो जल के ||
जब जब शमा से यारी कर ली है पतंगों ने |
खोया है पंख अक्सर आये थे जब निकल के ||
प्रेम के ऊपर प्रभावी मुक्तक
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत मुक्तक वसंत पर
हार्दिक शुभकामनायें
भाव और प्रस्तुति दोनों के रंग ने मन भा गए. बहुत अच्छी रचना त्रिपाठी जी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों से सजी सभी मुक्तक बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंNEW POST बनो धरती का हमराज !
प्रेम दिवस पर लाजबाब मुक्तक ,बधाई त्रिपाठी जी..!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
उम्दा लिखा है..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंस्वाती का बूँद लेकर मैं सीप ढूँढता हूँ |
बादल के लिए धरती की चीख ढूँढता हूँ ||
संवेदना के स्वर से वाकिफ हुई वो जब से |
पायल की घुंघरुओं में संगीत ढूँढता हूँ ||. waah bahut sundar muqtak , sabhi ek se badhkar ek anand aa gaya padhkar hardik badhai naveen jii
aabhar Yashoda ji
जवाब देंहटाएंसभी मुक्तक बहुत सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंस्वाती का बूँद लेकर मैं सीप ढूँढता हूँ |
जवाब देंहटाएंबादल के लिए धरती की चीख ढूँढता हूँ ||
संवेदना के स्वर से वाकिफ हुई वो जब से |
पायल की घुंघरुओं में संगीत ढूँढता हूँ ||
- गहरी पुकार !
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बहुत सुंदर मुक्तक.....
जवाब देंहटाएंनए अंदाज़ में प्रेम को लिखा है ... नए एर्थ दिए हैं प्रेमाभाव को ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ...
Naswa ji bahut bahut aabhar apka
हटाएंसुन्दर सार्थक संदेशपरक प्रस्तुति स्वार्थ तत्व पर कटाक्ष करती हुई /मरना है इश्क पर तो ,मरना संभल सम्भल के /जालिम है ये ज़माना चलना सम्भल संभलके
जवाब देंहटाएंप्रेम दिवस पर बेहतरीन गज़ल
ये शरबते इश्क़ है पीना बहुत संभल के |
तासीरे आग है ये कुर्बान न हो जल के ||
जब जब शमा से यारी कर ली है पतंगों ने |
खोया है पंख अक्सर आये थे जब निकल के ||
bahut bahut aabhar sharma ji
हटाएंप्रभावशाली रचना !!
जवाब देंहटाएंबधाई !!
लाज़वाब मुक्तक...
जवाब देंहटाएंachha likha hai
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर खूबसूरत कथ्य...
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