कुछ मुहब्बत तो कुछ गिला देखा ।
क्या बता दूँ कि तुझमें क्या देखा ।।
अश्क आँखों से कुछ ढला देखा ।
दिल कहीं आपका फ़िदा देखा ।।
इक पुरानी किताब खोली तो ।
खत कोई आपका लिखा देखा ।।
तेरे चेहरे का नूर लौटा है ।
जब भी तूने वो आइना देखा ।।
बारहा पूँछता है वो मुझसे ।
आपने क्या बुरा भला देखा ।।
हट गया फिर यकीन कुदरत से ।
कोई तारा जो टूटता देखा ।।
जख्म जो थे मिले मुहब्बत में ।
घाव अब तक नहीं भरा देखा ।।
रात ये भी सियाह होगी अब ।
गेसुओं को तेरे खुला देखा ।।
इस तरह बेनकाब मत चलिए।
फिर दिलो से धुआं उठा देखा ।।
बात कुछ तो है हुस्न में तेरी ।
बारहा उनको घूरता देखा ।।
बेच देती है आबरू अपनी ।
भूख को मैंने बे हया देखा ।।
सारी दुनिया गुलाम है उनकी ।
हुस्न वालो को लूटता देखा ।।
मांग बैठा जो वफ़ा की कीमत।
आदमी को बहुत ख़फ़ा देखा।।
नवीन मणि त्रिपाठी
क्या बता दूँ कि तुझमें क्या देखा ।।
अश्क आँखों से कुछ ढला देखा ।
दिल कहीं आपका फ़िदा देखा ।।
इक पुरानी किताब खोली तो ।
खत कोई आपका लिखा देखा ।।
तेरे चेहरे का नूर लौटा है ।
जब भी तूने वो आइना देखा ।।
बारहा पूँछता है वो मुझसे ।
आपने क्या बुरा भला देखा ।।
हट गया फिर यकीन कुदरत से ।
कोई तारा जो टूटता देखा ।।
जख्म जो थे मिले मुहब्बत में ।
घाव अब तक नहीं भरा देखा ।।
रात ये भी सियाह होगी अब ।
गेसुओं को तेरे खुला देखा ।।
इस तरह बेनकाब मत चलिए।
फिर दिलो से धुआं उठा देखा ।।
बात कुछ तो है हुस्न में तेरी ।
बारहा उनको घूरता देखा ।।
बेच देती है आबरू अपनी ।
भूख को मैंने बे हया देखा ।।
सारी दुनिया गुलाम है उनकी ।
हुस्न वालो को लूटता देखा ।।
मांग बैठा जो वफ़ा की कीमत।
आदमी को बहुत ख़फ़ा देखा।।
नवीन मणि त्रिपाठी