अदा ए जुल्फ से अंजाम दिया करते हैं |
वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं ||
झुकी निगाह उठाई तो जल जला आया |
वो ज़माने से इंतकाम लिया करते हैं ||
कली गुलाब की शरमाई उनकी रंगत से |
शबाब ए हुश्न का पैगाम दिया करते हैं ||
सुर्ख लब पर हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
वो मोहब्बत को भी नीलाम किया करते है ||
मैं तो साहिल था लहर आयी और छू के गयी |
याद हम भी वही मुकाम किया करते हैं ||
बेवफा तुझको , मुहब्बत का सलीका ही नहीं |
तमाम उम्र , ये इल्जाम लिया करते हैं ||
जब दबे पांव तू आयी उसी महुआ के तले |
उसी शजर से तेरा नाम लिया करते हैं ||
वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं ||
झुकी निगाह उठाई तो जल जला आया |
वो ज़माने से इंतकाम लिया करते हैं ||
कली गुलाब की शरमाई उनकी रंगत से |
शबाब ए हुश्न का पैगाम दिया करते हैं ||
सुर्ख लब पर हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
वो मोहब्बत को भी नीलाम किया करते है ||
मैं तो साहिल था लहर आयी और छू के गयी |
याद हम भी वही मुकाम किया करते हैं ||
बेवफा तुझको , मुहब्बत का सलीका ही नहीं |
तमाम उम्र , ये इल्जाम लिया करते हैं ||
जब दबे पांव तू आयी उसी महुआ के तले |
उसी शजर से तेरा नाम लिया करते हैं ||
वाह....बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल......
जवाब देंहटाएंहर शेर बेहतरीन है.....बेहद पसंद आयी मुझे.
सादर
अनु
सुर्ख लब पर हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
जवाब देंहटाएंवो मोहब्बत को भी नीलाम किया करते है..
बहुत खूब .. लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ...
बहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़ल त्रिपाठी जी. प्रेम से लबरेज.
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachna
जवाब देंहटाएंवाह! बढ़िया है..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .
जवाब देंहटाएंamazingly impressive .............extraordinarily wonderful blog ....plz do visit my new post : http://swapniljewels.blogspot.in/2013/12/blog-post.html
जवाब देंहटाएंउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी