दर्द
जब दरिंदों ने उसको आग लगाई होगी ।
उंगलियाँ लोगों ने उस पे ही उठाई होगी ।।
खास अंदाज में थिरके थे उसके पाँव बहुत ।
काँच के टुकड़ों पे घुघरू को बजाई होगी ।।
जिस्म मजबूरियों के नाम बिका करती है ।
बड़ी मुश्किल से दुपट्टे को हटाई होगी ।।
जार के गोश्त को खाए सफ़ेद पोश फकत ।
वो तो दातों तले ऊँगली को दबाई होगी ।।
यहाँ इन्सान को इन्सान खा गया देखो ।
दावते अस्मते गिद्धों ने उडाई होगी ।।
इस तिजारत सी जिन्दगी को जी रही अबला ।
किसको फुरसत यहाँ मुद्दों की लडाई होगी ।।
मौत का सौदा कुर्सियों से कर गये नेता ।
कैसे कह दूं कि उसके साथ भलाई होगी ।।
बयान जब सुना कातिल के रहनुमाओं का ।
वह तो बेबस खड़ी आंसू से नहाई होगी ।।
ये हैं शैतान द्रौपदी का चीर खींच गये ।
मुल्क में जंग बड़ी फिर से बुलाई होगी ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावों कि लड़ियाँ लाज़वाब
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी हार्दिक आभार । चर्चा मंच में मेरी रचना को शामिल करना मेरे लिए निश्चय ही महत्वपूर्ण है ।
जवाब देंहटाएंयहाँ इन्सान को इन्सान खा गया देखो ।
जवाब देंहटाएंदावते अस्मते गिद्धों ने उडाई होगी ।,...
हर शेवर जैसे कडुवे सच कि बयानी है ... बहुत ही उम्दा सोचने को मजबूर करती गज़ल ...
बहुत खूब ... एक शिकवा है .... बड़े ही चटख रंग में लिखी गयी है ... शब्द दिल में और फॉण्ट आँखों में चुभते हैं |
जवाब देंहटाएंखास अंदाज में थिरके थे उसके पाँव बहुत ।
जवाब देंहटाएंकाँच के टुकड़ों पे घुघरू को बजाई होगी ।।
वाह बहुत खूब
तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं. क्या जोरदार ग़ज़ल कही है आपने.
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