मुक्तक
वो सहादत को फरेबी करार कर देंगे ।
अब शहीदों को भी वो दागदार कर देंगे ।।
सारी तहजीब डस गयी है सियासी नागिन ।
वतन की शाख को वो तार तार कर देंगे ।।
उनके ऐलान पे वो ईद मानाने निकले ।
सजा ए रेप को वो दिल से भुलाने निकले ।।
वो दरिंदो के देवता का असर रखते हैं ।।
हादसे होंगे नहीं !अब वो ज़माने निकले ।।
ये तो दीवार का ,रश्मो -रिवाज रखते हैं ।
नफरतो के लिए बेहतर मिजाज रखते है ।।
कैसे इन्सान को इन्सान से काटा जाए ।
मुहब्बतों को मिटाने में नाज रखते हैं ।।
ये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
एक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
अमन -शुकूँ का कलेजा निकाल लेते हैं ।।
नवीन
Aabhar Yashoda Agrwal ji jarur aauga.
जवाब देंहटाएंये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
जवाब देंहटाएंएक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
अमन -शुकूँ का कलेजा निकाल लेते हैं ।।..
बहुत खूब ... सही नब्ज़ पकड़ी है आपने इन नेताओं की ... पर जनता ये बात कभी नहीं समझ पाती ... या समझ कर भी निहित स्वार्थ हावी हो जाता है ...
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-04-2014) को "संघर्ष अब भी जारी" (चर्चा मंच-1597) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व सुन्दर लेखन , रचना , नवीन भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
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