तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 27 अप्रैल 2014

मुक्तक


मुक्तक


वो  सहादत  को  फरेबी  करार  कर  देंगे ।
अब शहीदों को भी वो  दागदार  कर देंगे ।।
सारी तहजीब डस गयी है सियासी नागिन ।
वतन  की शाख को  वो तार तार  कर देंगे ।।


उनके  ऐलान  पे वो  ईद मानाने  निकले ।
सजा ए रेप को वो दिल से भुलाने निकले ।।
वो  दरिंदो  के देवता  का  असर रखते हैं ।।
हादसे  होंगे नहीं  !अब वो ज़माने निकले ।।


ये तो दीवार का  ,रश्मो -रिवाज रखते हैं ।
नफरतो के लिए बेहतर मिजाज रखते है ।।
कैसे  इन्सान को इन्सान  से काटा  जाए ।
मुहब्बतों  को मिटाने  में  नाज  रखते हैं ।।


ये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
एक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
अमन -शुकूँ  का  कलेजा निकाल लेते हैं ।।

                      नवीन

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
    एक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
    कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
    अमन -शुकूँ का कलेजा निकाल लेते हैं ।।..
    बहुत खूब ... सही नब्ज़ पकड़ी है आपने इन नेताओं की ... पर जनता ये बात कभी नहीं समझ पाती ... या समझ कर भी निहित स्वार्थ हावी हो जाता है ...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-04-2014) को "संघर्ष अब भी जारी" (चर्चा मंच-1597) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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