दृष्टि , ईमानदारी,
निगाह , नियति,
इरादा.....
मित्रता से पूर्व ही किये जाने लगे
ये परीक्षण ।
अब बहुत गहराई से
होने लगा है निरीक्षण।
लेन देन, सौदे बाजी,
सम्बन्धों की बद मिजाजी ।
तीखे सवालों का व्यूह,
प्रस्तर की भाति मौन.... ।
प्रत्युतर दे कौन ?
सवालों से आवाक् !
कैसे कह दूं ......बेबाक।
सच निकलेगा नहीं ।
झूठ की फितरत नहीं ।
फिर तनाव की खरीदारी।
बे मेल यारी ।
उत्पन्न अनुराग,
आकर्षण-प्रतिकर्षण
वैचारिक संघर्षण ।
दुविधा पूर्ण .....
मित्रता की मनोविकृति
कहाँ से आएगी ?
सामाजिक परिष्कृति।।
मत जाओ , मत स्वीकारो
कभी मत पुकारो
जो आपके आचरण को
मर्यादित संबंधो के व्याकरण को।
तराजू पर अक्सर
कई बार तोले ।
फिर हौले से शब्द बोलें ।
सा री .............सॉरी।
ये है अविश्वास की रेखाओं वाली
अजीब बीमारी।
संवेदनाये धिक्कारती हैं।
अंतरात्मा कचोटती है ।
सबको मित्र कहना जरूरी नहीं होता ।
वैचारिक समानता के बिना
कोई मित्र नहीं होता ।।
हां मतलब परस्त तो मिलेंगे ।
पर मित्र नहीं होता ।।
पर मित्र नहीं होता।।
नवीन
निगाह , नियति,
इरादा.....
मित्रता से पूर्व ही किये जाने लगे
ये परीक्षण ।
अब बहुत गहराई से
होने लगा है निरीक्षण।
लेन देन, सौदे बाजी,
सम्बन्धों की बद मिजाजी ।
तीखे सवालों का व्यूह,
प्रस्तर की भाति मौन.... ।
प्रत्युतर दे कौन ?
सवालों से आवाक् !
कैसे कह दूं ......बेबाक।
सच निकलेगा नहीं ।
झूठ की फितरत नहीं ।
फिर तनाव की खरीदारी।
बे मेल यारी ।
उत्पन्न अनुराग,
आकर्षण-प्रतिकर्षण
वैचारिक संघर्षण ।
दुविधा पूर्ण .....
मित्रता की मनोविकृति
कहाँ से आएगी ?
सामाजिक परिष्कृति।।
मत जाओ , मत स्वीकारो
कभी मत पुकारो
जो आपके आचरण को
मर्यादित संबंधो के व्याकरण को।
तराजू पर अक्सर
कई बार तोले ।
फिर हौले से शब्द बोलें ।
सा री .............सॉरी।
ये है अविश्वास की रेखाओं वाली
अजीब बीमारी।
संवेदनाये धिक्कारती हैं।
अंतरात्मा कचोटती है ।
सबको मित्र कहना जरूरी नहीं होता ।
वैचारिक समानता के बिना
कोई मित्र नहीं होता ।।
हां मतलब परस्त तो मिलेंगे ।
पर मित्र नहीं होता ।।
पर मित्र नहीं होता।।
नवीन
मतलब के लिए मित्र मित्र नही होते ... सच कहा है ...
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
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