मुक्तक
एक नारी का जीवन भी अभिशाप है ।
जन्म लेना बना क्यों महापाप है ।।
भेडियों के लिए ,जिन्दगी क्यों बनी ।
हे विधाता तेरा ,कैसा संताप है ।।
अब तो जाएँ तो जाएँ कहाँ बेटियां ।
सर को अपने छिपायें कहाँ बेटियां ।।
इस ज़माने की नजरों को क्या हो गया।
घर में लूटी गयीं , बेजुबां बेटियां ।।
जुर्म की दास्ताँ भी लिखी ना गयी ।
लाश देखो जली-अधजली रह गयी।।
जब दरिंदों ने बारिस की तेजाब की।
वो तड़पती विलखती पडी रह गयी।।
माँ की ममता भी, कैसी पराई हुई ।
आफतें जान पर , उसकी आई हुई।।
कोख में जिन्दगी , माँगती बेटियां ।
दहशते मौत से , वो सताई हुई ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
एक नारी का जीवन भी अभिशाप है ।
जन्म लेना बना क्यों महापाप है ।।
भेडियों के लिए ,जिन्दगी क्यों बनी ।
हे विधाता तेरा ,कैसा संताप है ।।
अब तो जाएँ तो जाएँ कहाँ बेटियां ।
सर को अपने छिपायें कहाँ बेटियां ।।
इस ज़माने की नजरों को क्या हो गया।
घर में लूटी गयीं , बेजुबां बेटियां ।।
जुर्म की दास्ताँ भी लिखी ना गयी ।
लाश देखो जली-अधजली रह गयी।।
जब दरिंदों ने बारिस की तेजाब की।
वो तड़पती विलखती पडी रह गयी।।
माँ की ममता भी, कैसी पराई हुई ।
आफतें जान पर , उसकी आई हुई।।
कोख में जिन्दगी , माँगती बेटियां ।
दहशते मौत से , वो सताई हुई ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-09-2014) को "जिसकी तारीफ की वो खुदा हो गया" (चर्चा मंच 1744) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना , सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
खुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहकीकत लिखी ही जमाने की हर छंद में ...
जवाब देंहटाएंगहरे दर्द को उकेरा है आपने. वाकई बहुत भयावह स्थति बनती जा रही है अपने देश में.
जवाब देंहटाएंKatu saty hai naari ke jivan ka.... Bahut sunder abhivyakti marmsparshi !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं