--------------***गीत***-------------
जो प्रणय दीप ले कंटको पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नहीं ।
स्वार्थ का दाग जब भी लगेगा तुम्हे ,
तुम धुलोगी बहुत पर मिटेगा नहीं।
बन के जोगन कहानी लिखी ना गयी ,
मन की भाषा भी तुमसे पढी ना गयी।
प्रेम अट्टालिका खूब सजती रही ,
नीव की ईट पावन रखी ना गयी।।
प्रीति की रोशनाई कलम में ना हो ,
तुम ह्रदय पर लिखोगे लिखेगा नही।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले
राह में वह मुशफिर मिलेगा नहीं ।।
चांदनी चाँद से जब मिलन को चली
बादलों को कहाँ ये गवारा हुआ।
जब किनारों की बाहों में लहरें चली ,
खीच सागर लिया ये नजारा हुआ।।
छीन लेने की साजिश वो रचने लगे ,
इस ज़माने से कोई बचेगा नहीं ।।
जो प्रणय दीप ले कंटको पर चले
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नही ।।
बन के समिधा जलोगी सदा उम्र भर,
ये है ज्वाला हवाओं में उठती हुई ।
बन के आहुति सुलगती रही जिन्दगी,
जान पहचान से भी मुकरती रही ।।
इस हवन कुण्ड तो बिरह अग्नि है ,
सब जलेगा धुँआ कुछ उठेगा नहीं।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नही ।।
दृष्टि चितवन पे जब मेरी रुकने लगी ,
एक उलझी हुई सी कहानी लगी ।
जब नयन ने नयन की व्यथा देख ली ,
एक बहकी हुई सी सुनामी लगी।।
आँधियों में दिवाली मनाने चले
इन हवाओं में दीपक जलेगा नहीं।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नहीं ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
जो प्रणय दीप ले कंटको पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नहीं ।
स्वार्थ का दाग जब भी लगेगा तुम्हे ,
तुम धुलोगी बहुत पर मिटेगा नहीं।
बन के जोगन कहानी लिखी ना गयी ,
मन की भाषा भी तुमसे पढी ना गयी।
प्रेम अट्टालिका खूब सजती रही ,
नीव की ईट पावन रखी ना गयी।।
प्रीति की रोशनाई कलम में ना हो ,
तुम ह्रदय पर लिखोगे लिखेगा नही।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले
राह में वह मुशफिर मिलेगा नहीं ।।
चांदनी चाँद से जब मिलन को चली
बादलों को कहाँ ये गवारा हुआ।
जब किनारों की बाहों में लहरें चली ,
खीच सागर लिया ये नजारा हुआ।।
छीन लेने की साजिश वो रचने लगे ,
इस ज़माने से कोई बचेगा नहीं ।।
जो प्रणय दीप ले कंटको पर चले
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नही ।।
बन के समिधा जलोगी सदा उम्र भर,
ये है ज्वाला हवाओं में उठती हुई ।
बन के आहुति सुलगती रही जिन्दगी,
जान पहचान से भी मुकरती रही ।।
इस हवन कुण्ड तो बिरह अग्नि है ,
सब जलेगा धुँआ कुछ उठेगा नहीं।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नही ।।
दृष्टि चितवन पे जब मेरी रुकने लगी ,
एक उलझी हुई सी कहानी लगी ।
जब नयन ने नयन की व्यथा देख ली ,
एक बहकी हुई सी सुनामी लगी।।
आँधियों में दिवाली मनाने चले
इन हवाओं में दीपक जलेगा नहीं।
जो प्रणय दीप ले कंटकों पर चले ,
राह में वह मुशाफिर मिलेगा नहीं ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
Behad khubsurat rachna ....!
जवाब देंहटाएंबन के समिधा जलोगी सदा उम्र भर,
जवाब देंहटाएंये है ज्वाला हवाओं में उठती हुई ।
बन के आहुति सुलगती रही जिन्दगी,
जान पहचान से भी मुकरती रही ।।.............बेहद उम्दा,,, बधाई स्वीकारें नवीन जी
बहुत उम्दा रचना है ....
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