---***ग़ज़ल***---
दो कदम मैं भी चला दो कदम तू भी चली ।
वक्त मेरा भी ढला उम्र तेरी भी ढली ।।
सुनी थी दूर तलक तेरे घुंघरू की खनक ।
रात भर मैं भी जला रात भर तू भी जली ।।
ये ख्वाहिशें न मिटी जिंदगी यूँ ही लुटी ।
मैं अमानत में पला तू तिजारत में पली ।।
उस ज़माने का जहर दिखा गया था असर ।
गया था मैं भी छला गयी थी तू भी छली ।।
हम इशारों में गए तुम नजाकत में गयीं ।
थोडा मैं भी न खुला थोड़ी तुम भी ना खुली ।।
मेरे गुलशन की महक मेरे ख्वाबो की चमक ।
जुबां से मैं भी टला वफ़ा से तू भी टली ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
दो कदम मैं भी चला दो कदम तू भी चली ।
वक्त मेरा भी ढला उम्र तेरी भी ढली ।।
सुनी थी दूर तलक तेरे घुंघरू की खनक ।
रात भर मैं भी जला रात भर तू भी जली ।।
ये ख्वाहिशें न मिटी जिंदगी यूँ ही लुटी ।
मैं अमानत में पला तू तिजारत में पली ।।
उस ज़माने का जहर दिखा गया था असर ।
गया था मैं भी छला गयी थी तू भी छली ।।
हम इशारों में गए तुम नजाकत में गयीं ।
थोडा मैं भी न खुला थोड़ी तुम भी ना खुली ।।
मेरे गुलशन की महक मेरे ख्वाबो की चमक ।
जुबां से मैं भी टला वफ़ा से तू भी टली ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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