अरुणा शानबाग को श्रद्धांजलि
---****गीत****---
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
मानव सेवा का ब्रत लेकर ।
उत्साहों को नव मुखरित कर।
पावन संकल्पो पर चलकर ।
फिर कदम बढे जीवन पथ पर ।
उन विश्वासो के आँचल पर ।
नारी मर्यादा में रह कर ।।
इस नृशंस क्रूर मानवता की ,
तुम मौन साक्ष्य की बानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो।
आँखों से बहता पानी हो ।।
जब काल क्रूरता लिए नियत ।
कर गया तार तार इज्जत ।
वह जंजीरो को जकड गया।
स्वासों का चलना उखड गया।
वह नर पिसाच आचरण लिए।
प्राणों की हिंसा वरण किये ।।
तुम संस्कृति के पाखण्डों को
ज्वाला बनकर पहचानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
वर्षों तक मृत्यु वेदना से ।
लड़ती तुम पूर्ण चेतना से ।
पीड़ा की ज्वालामुखी फटी।
अवचेतन में यह उम्र कटी ।
निर्दोष प्राण का बलि होना ।
अपराध मात्र नारी होना ।।
जो सुलग सुलग कर रोज जली
वह समिधा बड़ी पुरानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
बस सात वर्ष की कैद उसे ।
इतना ही न्याय तेरे हिस्से ।।
सब छोड़ गए तुझको अपने ।
यह दर्द सहा कैसे तुमने।
है मुल्क यहां मुजरिम तेरा।
तेरे कातिल से मुह फेरा ।
इस संविधान के पन्नों पर
कालिख से पुती निशानी हो ।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो।
आँखों से बहता पानी हो ।।
-नवीन मणि त्रिपाठीटी
---****गीत****---
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
मानव सेवा का ब्रत लेकर ।
उत्साहों को नव मुखरित कर।
पावन संकल्पो पर चलकर ।
फिर कदम बढे जीवन पथ पर ।
उन विश्वासो के आँचल पर ।
नारी मर्यादा में रह कर ।।
इस नृशंस क्रूर मानवता की ,
तुम मौन साक्ष्य की बानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो।
आँखों से बहता पानी हो ।।
जब काल क्रूरता लिए नियत ।
कर गया तार तार इज्जत ।
वह जंजीरो को जकड गया।
स्वासों का चलना उखड गया।
वह नर पिसाच आचरण लिए।
प्राणों की हिंसा वरण किये ।।
तुम संस्कृति के पाखण्डों को
ज्वाला बनकर पहचानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
वर्षों तक मृत्यु वेदना से ।
लड़ती तुम पूर्ण चेतना से ।
पीड़ा की ज्वालामुखी फटी।
अवचेतन में यह उम्र कटी ।
निर्दोष प्राण का बलि होना ।
अपराध मात्र नारी होना ।।
जो सुलग सुलग कर रोज जली
वह समिधा बड़ी पुरानी हो ।।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो ।
आँखों से बहता पानी हो ।।
बस सात वर्ष की कैद उसे ।
इतना ही न्याय तेरे हिस्से ।।
सब छोड़ गए तुझको अपने ।
यह दर्द सहा कैसे तुमने।
है मुल्क यहां मुजरिम तेरा।
तेरे कातिल से मुह फेरा ।
इस संविधान के पन्नों पर
कालिख से पुती निशानी हो ।
अरुणा तुम व्यथित कहानी हो।
आँखों से बहता पानी हो ।।
-नवीन मणि त्रिपाठीटी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें