वह मुकद्दर से मिट गया काफी।
जिसके हिस्से में थी दुआ काफी ।।
जुबाँ से जब भी लफ़्ज है फिसले ।
हुआ शहर में तर्जुमा काफी ।।
बहुत बेफिक्र सितमगर से हूँ ।
मेरी खातिर मेरा खुदा काफी ।।
बाद मुद्दत के कब्र पर आया ।
आ रही है तेरी सदा काफी ।।
गिरफ़्त में है इश्क़ की मुजरिम ।
गाँव में फिर उड़ी हवा काफी ।।
फिर मुहब्बत की बात छेड़ गयी।
कल तलक थी जो बेवफा काफी ।।
अब उसे रोकना हुआ मुश्किल ।
है अदाओं पे वो फ़िदा काफी ।।
मुस्कुरा कर गले मिला लेकिन ।
बात पहले से है जुदा काफी ।।
नूर चेहरे का कह गया उसके ।
रात भर वह रही ख़फ़ा काफी ।।
है बरक्कत में जुर्म का धंधा ।
तू है कातिल तेरी फ़िज़ा काफी ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
जिसके हिस्से में थी दुआ काफी ।।
जुबाँ से जब भी लफ़्ज है फिसले ।
हुआ शहर में तर्जुमा काफी ।।
बहुत बेफिक्र सितमगर से हूँ ।
मेरी खातिर मेरा खुदा काफी ।।
बाद मुद्दत के कब्र पर आया ।
आ रही है तेरी सदा काफी ।।
गिरफ़्त में है इश्क़ की मुजरिम ।
गाँव में फिर उड़ी हवा काफी ।।
फिर मुहब्बत की बात छेड़ गयी।
कल तलक थी जो बेवफा काफी ।।
अब उसे रोकना हुआ मुश्किल ।
है अदाओं पे वो फ़िदा काफी ।।
मुस्कुरा कर गले मिला लेकिन ।
बात पहले से है जुदा काफी ।।
नूर चेहरे का कह गया उसके ।
रात भर वह रही ख़फ़ा काफी ।।
है बरक्कत में जुर्म का धंधा ।
तू है कातिल तेरी फ़िज़ा काफी ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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