अब कैराना और मथुरा से उसे पहचान ले ।
इस रियासत की सराफत को यहीं से मान ले ।।
घाव गहरे हैं मुजफ्फर के दिलों में आज भी ।
कातिलों के हर मसीहा की इनायत जान ले ।।
वक्त आया है शिकस्तों का इसे जाया न कर ।
कुछ सबक के वास्ते बेहतर इरादा ठान ले ।।
हैं बहुत जालिम मुखौटा डाल के बैठे यहाँ ।
फिर लुटी हैं बस्तियां उनसे नया फरमान ले ।।
है ठगा सा फिर खड़ा अदना बहुत मायूस है ।
वोट देकर जो गया था घर बहुत अरमान ले ।।
जब खुदा की ही नज़र से गिर गयी सरकार ये ।
मौलवी निकले दुआ करने यहां लोबान ले ।।
खो के अस्मत शाख पर हैं झूलती यह बेटियां ।
आज तक रोता बदायूं दाग का अपमान ले ।।
कब तरक्की क्या तरक्की हो गयी ढूढो जरा ।
गाँव जलता ही मिला अक्सर कोई तूफ़ान ले ।।
जात के हमदर्द वो उनकी सियासत जात की ।
बिक रही है नौकरी चलती हुई दूकान ले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
इस रियासत की सराफत को यहीं से मान ले ।।
घाव गहरे हैं मुजफ्फर के दिलों में आज भी ।
कातिलों के हर मसीहा की इनायत जान ले ।।
वक्त आया है शिकस्तों का इसे जाया न कर ।
कुछ सबक के वास्ते बेहतर इरादा ठान ले ।।
हैं बहुत जालिम मुखौटा डाल के बैठे यहाँ ।
फिर लुटी हैं बस्तियां उनसे नया फरमान ले ।।
है ठगा सा फिर खड़ा अदना बहुत मायूस है ।
वोट देकर जो गया था घर बहुत अरमान ले ।।
जब खुदा की ही नज़र से गिर गयी सरकार ये ।
मौलवी निकले दुआ करने यहां लोबान ले ।।
खो के अस्मत शाख पर हैं झूलती यह बेटियां ।
आज तक रोता बदायूं दाग का अपमान ले ।।
कब तरक्की क्या तरक्की हो गयी ढूढो जरा ।
गाँव जलता ही मिला अक्सर कोई तूफ़ान ले ।।
जात के हमदर्द वो उनकी सियासत जात की ।
बिक रही है नौकरी चलती हुई दूकान ले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी