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बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।
फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।
आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।
दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।
बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।
गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।
कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।
शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।
माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।
उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।
तेरा वजूद है तो सलामत है ये शहर ।
वरना मेरी किसी से क़ोई बन्दगी नहीं ।।
मुझको मिले हैं दर्द वफ़ा की तलाश में ।
जाती तेरे मिजाज से क्यूँ बेरुखी नहीं ।।
मुमकिन है मैकदों में रकीबों की शाम हो ।।
यह बात सच नही कि वहां मयकशी नही ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।
फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।
आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।
दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।
बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।
गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।
कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।
शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।
माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।
उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।
तेरा वजूद है तो सलामत है ये शहर ।
वरना मेरी किसी से क़ोई बन्दगी नहीं ।।
मुझको मिले हैं दर्द वफ़ा की तलाश में ।
जाती तेरे मिजाज से क्यूँ बेरुखी नहीं ।।
मुमकिन है मैकदों में रकीबों की शाम हो ।।
यह बात सच नही कि वहां मयकशी नही ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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