सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ....
नवीन
इस मुल्क के अमन का तकाजा कुछ और है |
सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ||
बूढा फ़कीर देश की तश्वीर क्या बदले |
खुदगर्ज ज़माने का शिगूफा कुछ और है ||
ढहने लगे मकान क्यों ईमानदार के |
शक को यकीन ने भी तराशा कुछ और है ||
ढूढ़ा था एक नूर उम्मीदों के वास्ते |
पर वक्त पर लगा की तलाशा कुछ और है ||
ख़त लिख रहे हैं रोज रियाया के लिए खूब |
मजबून है तो खास ,लिफाफा कुछ और है ||
दूकान चल रही है यहाँ हक़ खरीद कर |
धंधे का हकीकत में मुनाफा कुछ और है ||
कागज में हैसियत का है वो आम आदमी |
देखा चुनाव में तो सराफा कुछ और है ||
इंशानियत की कद्र से वाकिफ नहीं थे जो |
उनको जम्हूरियत ने नवाजा कुछ और है ||
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
मजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||
इस मुल्क के अमन का तकाजा कुछ और है |
सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ||
बूढा फ़कीर देश की तश्वीर क्या बदले |
खुदगर्ज ज़माने का शिगूफा कुछ और है ||
ढहने लगे मकान क्यों ईमानदार के |
शक को यकीन ने भी तराशा कुछ और है ||
ढूढ़ा था एक नूर उम्मीदों के वास्ते |
पर वक्त पर लगा की तलाशा कुछ और है ||
ख़त लिख रहे हैं रोज रियाया के लिए खूब |
मजबून है तो खास ,लिफाफा कुछ और है ||
दूकान चल रही है यहाँ हक़ खरीद कर |
धंधे का हकीकत में मुनाफा कुछ और है ||
कागज में हैसियत का है वो आम आदमी |
देखा चुनाव में तो सराफा कुछ और है ||
इंशानियत की कद्र से वाकिफ नहीं थे जो |
उनको जम्हूरियत ने नवाजा कुछ और है ||
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
मजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||
ढहने लगे मकान क्यों ईमानदार के |
जवाब देंहटाएंशक को यकीन ने भी तराशा कुछ और है ||
waah
"दूकान चल रही है यहाँ हक़ खरीद कर |
जवाब देंहटाएंधंधे का हकीकत में मुनाफा कुछ और है ||"
बहुत खूब !
बहुत सार्थक सटीक प्रस्तुति, सुंदर नज्म बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएंnew post...वाह रे मंहगाई...
पहली दफा आना हुआ आपके ब्लॉग पे.. सच में तीखी सच्चाई का चित्रण कर दिया.. बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंनमस्कार त्रिपाठी जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...सच्चाई बयां करती हुयी आज के प्रष्ठ को दर्शाती हुई रचना ..बेहतरीन चित्रण .बधाई स्वीकारे .दूकान चल रही है यहाँ हक़ खरीद कर |
धंधे का हकीकत में मुनाफा कुछ और है ||
कागज में हैसियत का है वो आम आदमी |
देखा चुनाव में तो सराफा कुछ और है ||
इंशानियत की कद्र से वाकिफ नहीं थे जो |
उनको जम्हूरियत ने नवाजा कुछ और है ||
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
मजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||
....................bahut umda .
बेहतरीन और सन्नाट झोंका
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
मज़मून कुछ हो न हो, लिफ़ाफ़ा तो मज़बूत होना ही चाहिए :)
जवाब देंहटाएंढूढ़ा था एक नूर उम्मीदों के वास्ते |
जवाब देंहटाएंपर वक्त पर लगा की तलाशा कुछ और है ||
नवीन जी, आपकी गज़ल बिल्कुल सम-सामयिक है. खास तौर पर आपका उपरोक्त शेर मुखे बेहद पसंद आया, जिसे काफी देर से गुनगुना भी रहा हूँ.
//दूकान चल रही है यहाँ हक़ खरीद कर |
जवाब देंहटाएंधंधे का हकीकत में मुनाफा कुछ और है ||
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
मजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||//
kamaal sirji.. ek ek sher kamaal.. waah..
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा।
जवाब देंहटाएंसंसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर ।
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ।।
क्या बात है...!
वर्तमान हालात की सच्ची तस्वीर ।
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
वाह भाई साहब क्या खूब लिखा है आपने अनुभूतियाँ हैं ये सबकी अलफ़ाज़ आपके .
gantantr par bhrashtantr haavee ho gayaa
जवाब देंहटाएंsateek,rachnaa
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआज के वक्त का सत्य
यही है दीप तले अँधेरा !सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंThank you for reviewing my work :)
जवाब देंहटाएंसंसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर ।
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ।।
क्या बात है...!
वर्तमान हालात की सच्ची तस्वीर ।
aapka shukriya mere blog par aane ke liye .sadsyta bhi len to aabhar .meri post junoon par aapka svagat hae .
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
जवाब देंहटाएंइस मुल्क के अमन का तकाजा कुछ और है |
बूढा फ़कीर देश की तश्वीर क्या बदले |
पर वक्त पर लगा की तलाशा कुछ और है ||
हमेशा की तरह बहुत ही शानदार प्रस्तुति ! और साथ ही दर्द बाया कर रही है कविता मेरी माँ का ...एक ज्वालामुखी की तरह जैसे बरसों से दबी हुयी भावनाएं उभरी है !!
हर शब्द सच्चाई की पृष्टभूमि अपनी आँखों में शोला लिए कुछ कह रहा है !! की शायद इस देश के बेटों को जिन बुजुर्गों के आशीष के तले हक़ की लड़ाई लड़नी चाहिए वो उन्हें ही आगे कर खुद पीछे हट जाते है !!
जनता के नायक खलनायक सिद्ध हो रहे है ;
जहा देश का भविष्य बनता है उस संसद में खड़े होकर रंगमच के संवाद बोलते नजर आते है !!
शायद इसीलिए आपकी कलम बोल पड़ी "सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ...."
बहुत प्यासे है ये नवीन जी . दौलत ही नहीं खून pee रहे है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति. आपके लेखन में बहुत ताज़गी है.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
ढहने लगे मकान क्यों ईमानदार के |
जवाब देंहटाएंशक को यकीन ने भी तराशा कुछ और है ||
बारहा पढने लायक हर अश आर ..
आज के देश समाज की तस्वीर!
जवाब देंहटाएंधारदार ढंग से अपनी बात कहने के लिए के लिए आपको हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंजय जय सुभाष !
आज के देश समाज की तस्वीर को बहुत खूबसूरती से गज़ल मे उतारा है...शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत हैं सारे शेर|
जवाब देंहटाएंबूढा फ़कीर देश की तश्वीर क्या बदले |
जवाब देंहटाएंखुदगर्ज ज़माने का शिगूफा कुछ और है ||
Bahut Khoob. Behtarin gazal. Achha Vyangya jo wastwikta ko abhivyakt karti hai. Is rachna ki jitani bhi prasansa ki jay kam hai.
बूढा फ़कीर देश की तश्वीर क्या बदले |
जवाब देंहटाएंखुदगर्ज ज़माने का शिगूफा कुछ और है ||
...बहुत खूब! सभी शेर लाज़वाब...
इंशानियत की कद्र से वाकिफ नहीं थे जो |
जवाब देंहटाएंउनको जम्हूरियत ने नवाजा कुछ और है ||
बहुत खूब
सत्य इतनी शालीनता और सुन्दरता से चित्रित किया सटीक
जवाब देंहटाएंसंसद में कसम खाते हैं हर कौम की खातिर,
जवाब देंहटाएंमजहब के लिये उनका तमाशा कुछ और है।
कुर्सी पे बैठ पी गये दौलत वो मुल्क की,
लगता है जमाने को प्यासा वो कुछ और है।
अति सुन्दर, कुछ इसी तरह की मेरी भी कविता....
क्या यही गणतंत्र है
सच को बहुत खूबी से कहा है ..सुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंlajabaab....lajabaab jitni tareef karen kum hai.bahut umda ghazal.
जवाब देंहटाएंगण निरपेक्ष तंत्र मुबारक .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक..
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
जवाब देंहटाएंलगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||...........देश के मौजूदा हालात पर बहुत अच्छा व्यंग्य किया है ...
har sher daad ke kaabil, badhai.
जवाब देंहटाएंबात को इतने प्रभावी ढंग से कहने के लिये हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण शेर अच्छे लगे,......
जवाब देंहटाएंWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
कुर्सी पे बैठ पी गए दौलत वो मुल्क की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है .....bahut hi umda rachna, bdhai aap ko
संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
बहुत खुबसूरत रचना
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज के यथार्थ को बेहद खुबसूरत और सहज तरीके से प्रस्तुत किया आपने.......
जवाब देंहटाएंयही आज का सच है,जिसे पूरे ज़ोरसे सामने रखा आपने !
जवाब देंहटाएंसंसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
जवाब देंहटाएंमजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||
सही कहा ....सुन्दर रचना
सत्य का आइना दिखाती,बहुत सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएं