तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 25 अगस्त 2012

दो कवितायेँ

     शान्ति
वह मिलती है क्या ?
अरबों रुपयों के गोल मॉल में ,?
उद्योगपतियों  के 

वैभवशाली परिवार में ?
दूरदर्शन पर प्रायोजित 

महत्माओं की दूकान में ?
शायद वह वहाँ   नहीं |
गलत है तलाश की दिशा !
अनंत अंधकार युक्त निशा |
तुम्हारी असंख्य इच्छाओं ने ,
जीवन की कुटिल धाराओं में |
कार कोठी बंगला ,
जिसे चाहा दिल से पुकारा |
वह सब कुछ मिल गया |
कामनाओं का कमल खिल गया |
.......तुमने !
एक बार भी उसे नहीं पुकारा !
......असीम
आनंद का कलश लिए
तुम्हारी निकटता पाने के लिए
बेचैन .......
प्रतीक्षारत नैन .....
उसकी ओर अपना मुँह 

फेरो तो सही |
उसकी भावनाओं को 
समझो तो सही |
लेकर जीवन के 
नव सृजन के कांति ,
मिलेगी तुम्हे
 मिलन की व्याकुलता लिए ,
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति ||
 

           प्रतीक्षा




चिर परिचित आँखें
अब वे धंस चुकी हैं
उनके गुलाबी होठों की लालिमा
अब बदल चुकी है |
काली कालिमा में
तेजहीन आकृति ,
और झुलसा रही हैं उसे
पश्चाताप की अग्नि |
एक गलती ....................
एच आई वी की एंट्री
विवश हो गयी अब
उत्सुकता के साथ साथ
अंत की प्रतीक्षा ||

        नवीन 

       

19 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद

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  2. दोनों कवितायेँ बहुत बढ़िया हैं दूसरी कविता प्रतीक्षा तो दिल को विव्हल कर गई

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  3. दोनों ही कवितायें बहुत ही सुन्दर हैं..

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  4. दोनों ही कवितायें बहुत ही सुन्दर हैं..

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  5. नवीन जी... दोनों ही कवितायेँ प्रभावशाती हैं... विशेषकर प्रथम रचना...शांति की तलाश में भटकता इन्सां खुद ही अशांति के वन् में भटकता रह जाता है..बहुत खूब!

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  6. शांति की प्रतीक्षा सभी को है।
    सचेत करती अच्छी कविताएं।

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  7. dono kavitayein bahut acchi hain...pehle wali kavita say hume sach may sikhna chahiyee

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  8. एक में शांति की खोज और एक में मृत्यु की...
    वाह, बहुत खूब !

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  9. एक गलती .. और शान्ति की खोल करती दोनों ही प्रभाव्शाली रचनाएं ...
    लाजवाब ...

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  10. शान्ति आपसी समझ में मिलती है ... फिर २ रूपये की चौकलेट भी भूख मिटा देती है

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  11. एक गलती ....................
    एच आई वी की एंट्री

    क्या बात है .....
    ये गलतियां पछताने तक का मौका नहीं देतीं .....

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  12. प्रभावशाली एवं सशक्त कवितायेँ

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  13. एक गलती ....................
    एच आई वी की एंट्री
    विवश हो गयी अब
    उत्सुकता के साथ साथ
    अंत की प्रतीक्षा ||
    truth of life .

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  14. सुख और शांति अब बहुत ही कम लोगों के पास रह गई है...जिन्हें भौतिक सुख चाहिए उन्हें शांति कहाँ मिल सकती है...सुन्दर रचना के लिए साधुवाद..बधाई

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  15. ek galti uf kitni bhabhini prastut hai badhai
    janmdin ki shubhkamna ke liye abhar
    rachana

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