मरहम के लिए अब कोई सरकार नहीं है ।
मजदूर को एहसान की दरकार नहीं है ।।
गुम हो रहीं हैं अब तो सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो उनका ऐतबार नहीं है ।।
क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो जनाब ये अख़बार नहीं है ।।
कश्ती के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको ।
सूखी नदी में जब यहाँ मजधार नहीं है ।।
बिखरी हुई है लाली जो होठों पे उनके आज ।
अब वक्त का उन्हें भी इंतजार नहीं है ।।
सहमी हुई कली है क्यों भौरों की नजर से ।
मतलब के लिए प्यार का बाजार नहीं है ।।
मजदूर को एहसान की दरकार नहीं है ।।
गुम हो रहीं हैं अब तो सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो उनका ऐतबार नहीं है ।।
क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो जनाब ये अख़बार नहीं है ।।
कश्ती के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको ।
सूखी नदी में जब यहाँ मजधार नहीं है ।।
बिखरी हुई है लाली जो होठों पे उनके आज ।
अब वक्त का उन्हें भी इंतजार नहीं है ।।
सहमी हुई कली है क्यों भौरों की नजर से ।
मतलब के लिए प्यार का बाजार नहीं है ।।
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जवाब देंहटाएंवाह,,, बहुत लाजबाब सुंदर गजल,,,नवीन जी,,बधाई,
जवाब देंहटाएंrecent post : समाधान समस्याओं का,
वाह नवीन जी बहुत शानदार ग़ज़ल कही है दाद कबूल करें
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है नवीन जी!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गज़ल नवीन जी...
जवाब देंहटाएंबढ़िया शेर!!
सादर
अनु
ज़ज़ाक अल्लाह
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
जवाब देंहटाएंकुछ तो करो जनाब ये अख़बार नहीं है ...
बहुत खूब ... सभी श्जेर लाजवाब ... सुभान अल्ला ...
बहुत खूब और प्रभावी..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआप शायद इसे पसन्द करें-
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
एक बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल ... आज के समय के लिए सटीक
जवाब देंहटाएंwahhh...behad umda.....
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/
सब के सब शेर एक पर एक..बहुत उम्दा ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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