उसके छिप जाने से पहले, दिन यहाँ ढलता है क्यों ।
आँधियों की इस हवा में, ये दिया जलता है क्यों ।।
शोर बरपा मौत से है ,इस शहर की जुस्तजू ।
दामिनी की रूह से, शिकवा- गिला करता है क्यों ।।
हम मुसाफिर ,तुम मुसाफिर ,मंजिलों की चाह में ।
बे अदब के कायदे पर ,इस तरह चलता है क्यों ।।
उसको आनी एक दिन तुझको बुलाने के लिए ।
रोज उसकी फ़िक्र में, तू उम्र भर मरता है क्यों ।।
नाम चस्पा हो रहा है , शहर की दीवार पर।
शातिरों के इस झमेले में, भला पड़ता है क्यों ।।
जिस्म को बेचीं थी उसने घर की रोटी वास्ते ।
फिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।
आँधियों की इस हवा में, ये दिया जलता है क्यों ।।
शोर बरपा मौत से है ,इस शहर की जुस्तजू ।
दामिनी की रूह से, शिकवा- गिला करता है क्यों ।।
हम मुसाफिर ,तुम मुसाफिर ,मंजिलों की चाह में ।
बे अदब के कायदे पर ,इस तरह चलता है क्यों ।।
उसको आनी एक दिन तुझको बुलाने के लिए ।
रोज उसकी फ़िक्र में, तू उम्र भर मरता है क्यों ।।
नाम चस्पा हो रहा है , शहर की दीवार पर।
शातिरों के इस झमेले में, भला पड़ता है क्यों ।।
जिस्म को बेचीं थी उसने घर की रोटी वास्ते ।
फिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट कल दिनांक 07-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
शुक्रिया गाफिल जी ।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट कल दिनांक 07-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
भाव पूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंजिस्म को बेची थी उसने घर की रोटी वास्ते ।
जवाब देंहटाएंफिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।
बहुत उम्दा! दिल को छू गई ......... !!
मंगलवार 08/01/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
आपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!
आभार दीदी जी
हटाएंजिस्म को बेचीं थी उसने घर की रोटी वास्ते ।
जवाब देंहटाएंफिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।
वाह वाह ...क्या बात है,,,,नवीन जी बधाई,,,,
recent post: वह सुनयना थी,
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंउसको आनी एक दिन तुझको बुलाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंरोज उसकी फ़िक्र में, तू उम्र भर मरता है क्यों ।।
सारे शेर लाजवाब हैं नवीन मणि जी. सुन्दर ग़ज़ल की बधाई.
न जाने ऐसे कितने ही सवाल बिखरे पड़े हैं.. अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंअँधेरें को इसने गम्भीरता से ले लिया है।
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल...
बेहद भावपूर्ण.
सादर
अनु
नाम चस्पा हो रहा है , शहर की दीवार पर।
जवाब देंहटाएंशातिरों के इस झमेले में, भला पड़ता है क्यों ।।
तमाम अशआर बहुत सुन्दर हैं भाई साहब .प्रासंगिक सार्थक सन्देश लिए .आभार आपकी सद्य टिपण्णी का .
भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण सार्थक रचना :
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट;" अहंकार "
उसको आनी एक दिन तुझको बुलाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंरोज उसकी फ़िक्र में, तू उम्र भर मरता है क्यों ।।
लाजवाब शेर कहा है आपने त्रिपाठी जी. बहुत अच्छी ग़ज़ल.
सवाल बहुत हैं ... मगर जवाब मिलते नहीं ...:(
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति !
~सादर!!!
क्या बात है भाई साहब |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं-
इस बेहतरीन प्रश्नावली और-
असरदार सोच पर ||
उसको आनी एक दिन तुझको बुलाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंरोज उसकी फ़िक्र में, तू उम्र भर मरता है क्यों ...
सच है सबक आनी है एक दिन ... पर रोज मरते हैं उसकी फ़िक्र में ...
शायद यही जीवन है ...
दिल को छू गई रचना...........शुभकामनाएं नवीन जी
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंहम मुसाफिर, तुम मुसाफिर, मंजिलों की चाह में।
जवाब देंहटाएंबे अदब के कायदे पर, इस तरह चलता है क्यों।।
लाज़वाब सार्थक सन्देश देते हुए शेर. सुंदर प्रस्तुति दिल को छूती है.
बधाई नवीन जी.
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,नाम चस्पा हो रहा है , शहर की दीवार पर।
जवाब देंहटाएंशातिरों के इस झमेले में, भला पड़ता है क्यों ।।
जिस्म को बेचीं थी उसने घर की रोटी वास्ते ।
फिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ,सार्थक पोस्ट ......
जवाब देंहटाएंदिया जलता रहे, बावजूद आँधियों के!
जवाब देंहटाएंढ़
--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंमुसाफिर का काम है चलते जाना, चाहे फिर आंधी हो या तूफान !!
जवाब देंहटाएंपोस्ट
Gift- Every Second of My life.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
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