गीत
- नवीन मणि त्रिपाठी
गीत सजे निकले जुबान से ,
मधुमय होठ तुम्हारा है ।
एहसासों से शब्द थिरकते ,
अरमानों की धारा है ।
मैं तो लुटा दूं जीवन अपना
देश प्रेम की चौखट पर ।
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
मृत्यु वरण करते किसान हैं ,
भारत तेरी माटी पर ।
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
मानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
फिर भी मौन बने रहते हो ,
ये अपराध तुम्हारा है ॥
बलिदानों को क्या समझोगे
क्या ऐतबार तुम्हारा है ॥
अस्मत बिकती रोज यहाँ है
इज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ।
आह निकलती है गरीब की
मौत की जिम्मेदारी लो ।
सारी दवा बेच खाते हो
कैसा पाप तुम्हारा है !!
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
माँ के पेट में रोती कन्या
टूटी जीवन की आशा ।
नारी के सम्मान का झंडा ??
क्या ये राज तुम्हारा है ??
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
- नवीन मणि त्रिपाठी
गीत सजे निकले जुबान से ,
मधुमय होठ तुम्हारा है ।
एहसासों से शब्द थिरकते ,
अरमानों की धारा है ।
मैं तो लुटा दूं जीवन अपना
देश प्रेम की चौखट पर ।
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
मृत्यु वरण करते किसान हैं ,
भारत तेरी माटी पर ।
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
मानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
फिर भी मौन बने रहते हो ,
ये अपराध तुम्हारा है ॥
बलिदानों को क्या समझोगे
क्या ऐतबार तुम्हारा है ॥
अस्मत बिकती रोज यहाँ है
इज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ।
आह निकलती है गरीब की
मौत की जिम्मेदारी लो ।
सारी दवा बेच खाते हो
कैसा पाप तुम्हारा है !!
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
माँ के पेट में रोती कन्या
टूटी जीवन की आशा ।
नारी के सम्मान का झंडा ??
क्या ये राज तुम्हारा है ??
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना...
बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
बेहद सार्थक...
सादर
अनु
लघु नियन्ताओं को चेताती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर काव्य कृति त्रिपाठी जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर श्रृजन,लाजबाब गीत के लिए ,,,बधाई,त्रिपाठी जी,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
अस्मत बिकती रोज यहाँ है
जवाब देंहटाएंइज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ...
आह सी निकलती है दिल से .. एक टीस उठती है आज देश के हालात देख के ...
सार्थक अभिव्यक्ति है नवीन जी ...
बहुत लजवाब गीत..आभार
जवाब देंहटाएंदेश के वर्तमान परिदृश्य पर सार्थक रचना त्रिपाठी जी ,
जवाब देंहटाएंसाभार......
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
जवाब देंहटाएंमानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
मार्मिक ....!!
बहुत सुंदर बेह्तरीन शानदार प्रस्तुति नवीन जी हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivektti. samay mile to aaiyegaa meri post http://santam sukhaya.blogspot.com par aapakaa swagat hai.
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