भाषा मौन होती है तो राष्ट्र मूक बनता है ,ऐसी तश्वीर को ना देश में सजाइए ।
शब्द मौन होता है तो अभिव्यक्ति टूटती है ,भारतीय स्वाभिमान को न यूँ मिटाइए ॥
जननी है मातृ भूमि जननी है मातृ भाषा ,स्नेह मातृ ममता कभी ना विसराइये।
भाषा की मसाल संग संकलप ज्योति ले के ,विश्व की बसुन्धरा में हिंदी को जगाइए ॥
सीता का हरण गर रावण ना करता तो लंका स्वर्ण नगरी भी ख़ाक नही बनती ।
द्रौपदी के चीर को दुशासन ना खीचता तो युद्ध महाभारत कथाएं नहीं मिलती ॥
दुराचारी बनके जो छेड़ते हैं नारियों को , नारी की यथाएं उन्हें माफ़ नहीं करतीं ।
महापाप करते जो नारियों की भावना से ,ऐसे घर कभी दिया बाती नहीं जलती॥
भ्रष्टता की लपटों से डालर उछल रहा , रूपये की मार से गरीबी तडपाती है ।
दाल सब्जी प्याज भी ना थालियों में दिख रही ,तक़दीर भारत की भूख लिख जाती है॥
अर्थ की गुलामी के कगार पे देश आज , महगाई मौत की कहानी लिख जाती है ।
कैसी है विडम्बना ये सोने की चिरइया आज ,पिजरे में आसुओं की बूद पिए जाती है ॥
शीष शरहद पर कटते शहीद के हैं , तेरी क्रूरता का तो जबाब मिल जायेगा ।
भटकल भटका सका ना देशवासियों को जहरीले टुंडा का हिसाब मिल जायेगा ॥
धैर्य का भी बांध गर टूटा देशवासियों का ,राष्ट्र तेरा पल में ही खाक बन जायेगा ।
धर्म से भी ज्यादा राष्ट्र पूजते हैं देशवासी, तेरा ये आतंक तुझे खुद को ही खायेगा ॥
नवीन
शब्द मौन होता है तो अभिव्यक्ति टूटती है ,भारतीय स्वाभिमान को न यूँ मिटाइए ॥
जननी है मातृ भूमि जननी है मातृ भाषा ,स्नेह मातृ ममता कभी ना विसराइये।
भाषा की मसाल संग संकलप ज्योति ले के ,विश्व की बसुन्धरा में हिंदी को जगाइए ॥
सीता का हरण गर रावण ना करता तो लंका स्वर्ण नगरी भी ख़ाक नही बनती ।
द्रौपदी के चीर को दुशासन ना खीचता तो युद्ध महाभारत कथाएं नहीं मिलती ॥
दुराचारी बनके जो छेड़ते हैं नारियों को , नारी की यथाएं उन्हें माफ़ नहीं करतीं ।
महापाप करते जो नारियों की भावना से ,ऐसे घर कभी दिया बाती नहीं जलती॥
भ्रष्टता की लपटों से डालर उछल रहा , रूपये की मार से गरीबी तडपाती है ।
दाल सब्जी प्याज भी ना थालियों में दिख रही ,तक़दीर भारत की भूख लिख जाती है॥
अर्थ की गुलामी के कगार पे देश आज , महगाई मौत की कहानी लिख जाती है ।
कैसी है विडम्बना ये सोने की चिरइया आज ,पिजरे में आसुओं की बूद पिए जाती है ॥
शीष शरहद पर कटते शहीद के हैं , तेरी क्रूरता का तो जबाब मिल जायेगा ।
भटकल भटका सका ना देशवासियों को जहरीले टुंडा का हिसाब मिल जायेगा ॥
धैर्य का भी बांध गर टूटा देशवासियों का ,राष्ट्र तेरा पल में ही खाक बन जायेगा ।
धर्म से भी ज्यादा राष्ट्र पूजते हैं देशवासी, तेरा ये आतंक तुझे खुद को ही खायेगा ॥
नवीन
वाह वाह बहुत बढ़िया छंद ,,,नवीन जी,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-09-2013) के चर्चा मंच 1355 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें -
वाह बहुत उम्दा, वर्तमान परिस्थिति को उजागर करती रचना....नवीन जी,
जवाब देंहटाएंlatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
बहुत उम्दा,बढ़िया प्रस्तुति है .
जवाब देंहटाएंहमारी मातृ-भू हमारा सबसे बड़ा आराधन, धर्म पालन के लिए कहीं बाहर भागना हमारा काम नहीं !
जवाब देंहटाएंशब्दों को शक्ति मिले
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश पर सटीक..
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachna hindi ko maan nahi mil reha hai
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सार्थक छंद
जवाब देंहटाएंभाईदूज पर बहना का हक़ है। .... कुछ लेने का तो ये पोस्ट ले गई। ....
जवाब देंहटाएंभाई का क्या फर्ज (*_*)
फर्ज को क़र्ज़ नहीं रहने देना
मंगलवार 29/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
मंगलवार 05/11/2013 को
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