भूखा है नौजवान जो रोटी के वास्ते |
मिलता है लाली पाप उसे लैप टाप से ||
भत्तों से आग पेट की बुझती भला कहाँ |
ठग के गयीं हैं उसको यहाँ की सियासतें ||
जाड़े की सर्द रात से लड़ता रहा कोई |
बच्चों की मौत पे वहाँ रोता रहा कोई ||
नफ़रत का बीज बो के बहुत खुश मिजाज हैं |
रंगीन जश्ने रात मनाता रहा कोई ||
वो हौसलों का दीप जलाता चला गया |
इमान चीज क्या है , बताता चला गया ||
जब से जगा है देश का ये आम आदमी |
भ्रष्टों की नीद को वो उड़ाता चला गया ||
मजहब के नाम पे किया उसने गुनाह है |
दहशत के लिए भी यहाँ उसकी निगाह है ||
सरकार निकम्मी हो तो मुश्किल नहीं कुछ भी |
दुश्मन जो वतन के उन्हें मिलती पनाह है ||
मिलता है लाली पाप उसे लैप टाप से ||
भत्तों से आग पेट की बुझती भला कहाँ |
ठग के गयीं हैं उसको यहाँ की सियासतें ||
जाड़े की सर्द रात से लड़ता रहा कोई |
बच्चों की मौत पे वहाँ रोता रहा कोई ||
नफ़रत का बीज बो के बहुत खुश मिजाज हैं |
रंगीन जश्ने रात मनाता रहा कोई ||
वो हौसलों का दीप जलाता चला गया |
इमान चीज क्या है , बताता चला गया ||
जब से जगा है देश का ये आम आदमी |
भ्रष्टों की नीद को वो उड़ाता चला गया ||
मजहब के नाम पे किया उसने गुनाह है |
दहशत के लिए भी यहाँ उसकी निगाह है ||
सरकार निकम्मी हो तो मुश्किल नहीं कुछ भी |
दुश्मन जो वतन के उन्हें मिलती पनाह है ||
बहुत ही मर्मस्पर्शी.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना!!
सादर
अनु
जल्दी ही यह नज़ारा बदले. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
जाड़े की सर्द रात से लड़ता रहा कोई |
जवाब देंहटाएंबच्चों की मौत पे वहाँ रोता रहा कोई ||
नफ़रत का बीज बो के बहुत खुश मिजाज हैं |
रंगीन जश्ने रात मनाता रहा कोई ||
संवेदनशीलता नहीं रही समाज में और इन तंत्र के ठेकेदारों में तो खास कर के ... लाजवाब लिखा है समाज की विसंगतियों पर ...
ओज से परिपूर्ण...गंभीर अर्थों को प्रस्तुत करती सार्थक रचना।।।
जवाब देंहटाएंसमाज की पीड़ा व्यक्त करती रचना।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना .....
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य को सहजता से बखान करतीं सुंदर पंक्तियाँ...
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