सच की चिनगारी से, हस्ती तबाह कर देंगे |
हड्डियां बन के हम फीका कबाब कर देंगे ||
दौलते मुल्क पे कब्ज़ा हुआ अय्याशों का |
वक्त आने पे हम सारा हिसाब कर देंगे ||
हम शहीदों की हसरतों पे नाज करते हैं |
उनकी जज्बात को हम भी सलाम करते हैं ||
वतन को बेचने वालों जरा संभल जाना |
तुम्हारे हश्र का अहले मुकाम रखते हैं ||
तुमने लूटा है वतन हमको बनाना होगा |
देश के दर्द को आँखों में सजाना होगा ||
भूख से रोती जिंदगी को मौत दी तुमने |
धन जो काला है उसे देश में लाना होगा ||
वो हुक्मराँ हैं , हम पलकें बिछाए बैठे हैं |
बात जो खास है , उसको छिपाये बैठे हैं ||
वो रिश्वतों के ,बादशाह कहे जाते हैं |
एक दूकान वो , घर में लगाये बैठे हैं ||
उनके मकसद के चिरागों को जलाते क्यूँ हो |
बचेगा देश , भरोसा ये जताते क्यूँ हो ||
जो कमीशन में खा गये हैं फ़ौज की तोपें |
उनकी बंदूक से उम्मीद लगाते ,क्यूँ हो ||
हड्डियां बन के हम फीका कबाब कर देंगे ||
दौलते मुल्क पे कब्ज़ा हुआ अय्याशों का |
वक्त आने पे हम सारा हिसाब कर देंगे ||
हम शहीदों की हसरतों पे नाज करते हैं |
उनकी जज्बात को हम भी सलाम करते हैं ||
वतन को बेचने वालों जरा संभल जाना |
तुम्हारे हश्र का अहले मुकाम रखते हैं ||
तुमने लूटा है वतन हमको बनाना होगा |
देश के दर्द को आँखों में सजाना होगा ||
भूख से रोती जिंदगी को मौत दी तुमने |
धन जो काला है उसे देश में लाना होगा ||
वो हुक्मराँ हैं , हम पलकें बिछाए बैठे हैं |
बात जो खास है , उसको छिपाये बैठे हैं ||
वो रिश्वतों के ,बादशाह कहे जाते हैं |
एक दूकान वो , घर में लगाये बैठे हैं ||
उनके मकसद के चिरागों को जलाते क्यूँ हो |
बचेगा देश , भरोसा ये जताते क्यूँ हो ||
जो कमीशन में खा गये हैं फ़ौज की तोपें |
उनकी बंदूक से उम्मीद लगाते ,क्यूँ हो ||
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
अति सुन्दर रचना. उम्मीद है सारे सपने शीघ्र साकार होंगे और देश का नव-निर्माण होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत\सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंसच लिखा है ... ऐसे हुक्मरां होंगे तो क्या होगा देश का ...
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