भूंख के मंजर से जलती लाश को देखा करो ।
अब धुँआ गहरा उठा ,अहसाह को देखा करो ।।
बिक रहा इंसान है , कोहराम भी खामोश है ।
अब मुकम्मल धड़कने व साँस को देखा करो ।।
वह तिजोरी भर गयी है , हुक्मरां के हुक्म से ।
फिर लुटेंगी दौलतें , अय्यास को देखा करो ।।
जलजला की आहटें चर्चा बनी सबकी यहाँ ।
थम ना जाए जिन्दगी , आभास को देखा करो ।
सब मुनासिब हो गया है हसरतो की ख्वाब में ।
शक की नजरों से कभी तुम ख़ास को देखा करो।।
हश्र उनका भी जुदा है मौत भी होगी जुदा ।
बददुआ का है समंदर प्यास को देखा करो ।।
नफरते नश्तर चुभोया , जिसने तेरे मुल्क को ।
हो गया आबाद वह इतिहास को देखा करो ।।
ये नकाबों का शहर है , फितरतें जालिम यहाँ ।
वक्त के चश्मे से अब , लिबास को देखा करो ।।
इस इमारत की इबारत लिख चुके पहले खुदा ।
ढह रहे पत्ते हों जैसे ,तास को देखा करो ।।
मंदिर - मस्जिद बैठने वाले , परिंदे उड़ गये ।
कौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।।
नवीन
वाह नवीन भाई , आपकी रचनाओं की बात ही अलग हैं !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
नफरते नश्तर चुभोया , जिसने तेरे मुल्क को ।
जवाब देंहटाएंहो गया आबाद वह इतिहास को देखा करो ।।
सही कहा आपने. देखने वाले जरा आँख ठीक से खोल के देख लें.
ज़बरदस्त ग़ज़ल बनी है.
वाह ! बहुत सुंदर गजल ...!
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मंदिर - मस्जिद बैठने वाले , परिंदे उड़ गये ।
जवाब देंहटाएंकौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।
ये पंछी लौट के नहि आने वाले .. अमन के बाद ही आयेंगे ... पर इन्सासं नहीं समझ पाता ...
लाजवाब ग़ज़ल ...
आदरणीय नाशवा जी सादर आभार । आपके ब्लॉग तक आपकी रचनाओं का आनंद लेने में कठिनाई होती है । आपका ब्लॉग मुश्किल से खुलता है और टिपण्णी तक पहुचने में भी समस्या आती है कृपया टिपण्णी करते समय अपनी नयी रचना का लिंक भी उपलब्ध करा दिया कर्र तो महान कृपा होगी ।
हटाएंBhai Ranjan ji Bhai aashish ji bhai bhaduriya ji sadar abhar aap sb ka .
जवाब देंहटाएंमन की गहराइयों से निकली अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।
...............लाजवाब ग़ज़ल !!
भाई संजय जी सादर आभार
हटाएंसुन्दर गजल! आभार
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