तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 11 मई 2014

गज़ल





भूंख के मंजर से जलती लाश को देखा करो ।
अब धुँआ गहरा उठा ,अहसाह को देखा करो ।।


बिक रहा इंसान है , कोहराम भी खामोश है ।
अब मुकम्मल धड़कने व साँस को देखा करो ।।


वह तिजोरी भर गयी है , हुक्मरां के हुक्म से ।
फिर  लुटेंगी  दौलतें , अय्यास  को देखा करो ।।


जलजला की आहटें चर्चा बनी सबकी यहाँ ।
थम ना जाए जिन्दगी , आभास को देखा करो ।


सब मुनासिब हो गया है हसरतो की ख्वाब में ।
शक की नजरों से कभी तुम ख़ास को देखा करो।।


हश्र उनका भी जुदा है मौत भी होगी जुदा ।
बददुआ का है  समंदर प्यास को देखा करो ।।


नफरते नश्तर चुभोया , जिसने तेरे मुल्क को ।
हो गया आबाद वह इतिहास को देखा करो ।।


ये नकाबों का शहर है , फितरतें जालिम यहाँ । 
वक्त के चश्मे से अब , लिबास को देखा करो ।।


इस इमारत की इबारत लिख चुके  पहले खुदा ।
ढह रहे पत्ते हों जैसे ,तास को देखा करो ।।


मंदिर -  मस्जिद बैठने वाले , परिंदे उड़ गये ।
कौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।।

           नवीन

9 टिप्‍पणियां:

  1. नफरते नश्तर चुभोया , जिसने तेरे मुल्क को ।
    हो गया आबाद वह इतिहास को देखा करो ।।


    सही कहा आपने. देखने वाले जरा आँख ठीक से खोल के देख लें.
    ज़बरदस्त ग़ज़ल बनी है.

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  2. वाह ! बहुत सुंदर गजल ...!
    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    RECENT POST आम बस तुम आम हो

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  3. मंदिर - मस्जिद बैठने वाले , परिंदे उड़ गये ।
    कौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।
    ये पंछी लौट के नहि आने वाले .. अमन के बाद ही आयेंगे ... पर इन्सासं नहीं समझ पाता ...
    लाजवाब ग़ज़ल ...

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    1. आदरणीय नाशवा जी सादर आभार । आपके ब्लॉग तक आपकी रचनाओं का आनंद लेने में कठिनाई होती है । आपका ब्लॉग मुश्किल से खुलता है और टिपण्णी तक पहुचने में भी समस्या आती है कृपया टिपण्णी करते समय अपनी नयी रचना का लिंक भी उपलब्ध करा दिया कर्र तो महान कृपा होगी ।

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  4. Bhai Ranjan ji Bhai aashish ji bhai bhaduriya ji sadar abhar aap sb ka .

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  5. मन की गहराइयों से निकली अभिव्यक्ति
    कौन कैसा उड़ रहा आकाश को देखा करो।
    ...............लाजवाब ग़ज़ल !!

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