बजती रही करीब में शहनाई रात भर ।
बेदर्द तेरी याद बहुत आयी रात भर ।।
तन्हाइयों की जिन्दगी मुझको कबूल थी ।
कसमें हजार प्यार की वो खाई रात भर ।।
दिल की जुबाँ से दिल के तसउअर की बात की ।
कुछ तो जरुर था जो वो शरमाई रात भर ।।
जब लफ़्ज थे खामोश व जज्बात थे बयां ।
वो छत पे बार बार नजर आयी रात भर ।।
मेरी गजल के शेर बदलने लगे मिजाज ।
जब दास्ताने इश्क वो सुनायी रात भर ।।
नवीन
बढ़िया रचना व लेखन , नवीन भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
त्रिपाठी जी, ग़ज़ल पढ़कर बहुत आनंद आया.
जवाब देंहटाएंयशोदा जी लिंक करने हेतु बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल ...!
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनद आ गया...नवीन जी ....
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वाह .. लाजवाब शेरो से सजी ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंवाह ...बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)