तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 10 सितंबर 2014

आरक्षण समर्थक मोहन भागवत के नाम पत्र


नहीं दिखे तुम्हें !
आरक्षण की कुंठा से ग्रसित 
योग्य छात्र आत्महत्या करते हुए।
नहीं देख पाए तुम 
प्रतिभाओ को चौराहों पर जलते हुए।
नजर अंदाज कर गये सवर्णों की दरिद्रता की पराकाष्ठा।
कहाँ सजो पाए तुम
निष्पक्ष निष्ठा ?
भूखे विलखते सवर्ण बच्चों के 
मुख से छिनते निवाले।
गरीबी के दंश से मरते मासूम 
भोले भाले।
उनके भी घर में छत नहीं
खेती के लिए जमीन नहीं।
खाने के लिए भर पेट अन्न नहीं।
बस्त्रो से ढकता तन नहीं ।


भीख मागते है उनके बच्चे।
जिन्हें दलित कहते है 
उनके जूठे बर्तन धोकर
 पेट पालते हैं ये बच्चे।
सवर्णों की पढ़ी लिखी बेटियां 
अब ब्यूटी पार्लर चलाती है।
जिन्हें दलित कहते हैं उनको सजाती हैं।
हिंदुत्व को टुकडो टुकड़ों में 
बाटने वाली आरक्षण नीति ।
हजार वर्ष पीछे ले गयी देश की उन्नति।


आज का हिन्दू
आरक्षण के लिए
बाबरी मस्जिद पर गोलिया बरसाने 
वालो का समर्थक बन जाता है।
उनकी सरकार को चुन कर लाता है।
धर्म परायणता के ठीकेदार् तो तुम्ही थे
देश में धार्मिक संस्कार के आधार भी तुम्ही थे।
यही है तुम्हारे हिंदुत्व की ताकत।
जिसे तुमने अब पहचाना
फिर बुन लिया 
एक हजार वर्ष तक आरक्षण देने का 
ताना बाना।


देश में सत्य के समर्थक की पहचान थी
 तुम्हारी संस्था।
सभी सवर्णों की शान थी तुम्हारी संस्था।
एक उम्मीद की किरण
शायद तुम न्याय दिलाओगे।
देश को आरक्षण मुक्त कराओगे।
पर यह क्या किया??
भरोसे को धोखा दिया !!!!!!
तुम्हें शर्म नहीं आयी ???
तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हे क्यों नहीं धिक्कार पाई?
तुमने कैसे खो दी विश्वसनीयता ?
कहाँ खो गयी तुम्हारी मानवता ?
अफ़सोस ये की औरो की तरह तुम भी वोट के 
सौदागर बन गये।
सिद्धांतो से समझौता कर गये।
अब तुम्हारी पहचान !!!!!!
किसी राजनीतिक पार्टी की 
कठपुतली के सिवा कुछ नहीं।
संस्था में वो बात नहीं।
तुम्हारे लिए मेरे पास अब वो जज्बात भी नहीं।
जिस तरह सूरज पूरब में 
कभी अस्त नहीं हो सकता ।
उतना ही सच  है ,....
कोई आरक्षण समर्थक,
कभी देश भक्त नहीं हो सकता ।
कभी देश भक्त नहीं हो सकता।।

                                                        -नवीन

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