---***भगवान् परशुराम को समर्पित छंद***---
स्वाभिमान सर्वथा प्रतीक बन जाता यहॉं ,
न्याय पक्ष के प्रत्यक्ष पूर्ण परिणाम हैं ।
मातृ शीष काट के प्रमाण जग को है दिया ,
सिद्ग साधना के प्रति प्रभु निष्काम हैं ।।
सर्वनाश पापियों का वीणा वो उठा के चले ,
फरसे में लहू के ना दिखते विराम हैं ।
अभिमान चूर किया राजवँशियो का सदा,
दण्ड की प्रचण्डता में वीर परशुराम हैं।।
नीति के नियंता हैं अत्याचारियो की मृत्यु ,
निर्बल मनुज के ढाल बन जाते हैं ।
भृगु के प्रपौत्र जमदग्नि के लाल आज ,
न्याय हेतु क्रुद्ध विकराल बन जाते हैं ।।
दुष्ट व् लुटेरों पे प्रत्यंचा को खीचकर ,
पापियों के मन का मलाल बन जाते हैं ।
राज तन्त्र चोर व् निरकुंश नीतियां तो ,
प्रकट हो परशुराम काल बन जाते हैं ।।
शिव के शिष्य पर स्वयं शिव अंश भी हैं ,
विष्णू के षष्ठ अवतार में महान हैं ।
धर्म स्थापना के हेतु है समर्पित ,
परशुराम संहार के ही भगवान हैं ।।
नीचता के वंशज को गर्भ में मिटाने वाले ,
असहाय प्राणियो के मुख्य अभिमान हैं ।
एक दन्त नाम गणपति का उन्होंने दिया,
माँ के जीवनदान के वो पूर्ण वरदान हैं ।।
देता सन्देश आज परशुराम वंशज को ,
अत्याचारी शासकों को जड़ से मिटाइये ।
जाति पाँति राजनीति जो भी आज करते हैं ,
उनकी निकटता से दूर हट जाइए ।।
हक रोजगार का वो छीनते लुटेरे आज ,
बच्चों के ना हाथ में कटोरा पकडाइये ।
हक के लिए ये बलिदान मांगता है कौम ,
फरसा उठा के परशुराम बन जाइए ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
स्वाभिमान सर्वथा प्रतीक बन जाता यहॉं ,
न्याय पक्ष के प्रत्यक्ष पूर्ण परिणाम हैं ।
मातृ शीष काट के प्रमाण जग को है दिया ,
सिद्ग साधना के प्रति प्रभु निष्काम हैं ।।
सर्वनाश पापियों का वीणा वो उठा के चले ,
फरसे में लहू के ना दिखते विराम हैं ।
अभिमान चूर किया राजवँशियो का सदा,
दण्ड की प्रचण्डता में वीर परशुराम हैं।।
नीति के नियंता हैं अत्याचारियो की मृत्यु ,
निर्बल मनुज के ढाल बन जाते हैं ।
भृगु के प्रपौत्र जमदग्नि के लाल आज ,
न्याय हेतु क्रुद्ध विकराल बन जाते हैं ।।
दुष्ट व् लुटेरों पे प्रत्यंचा को खीचकर ,
पापियों के मन का मलाल बन जाते हैं ।
राज तन्त्र चोर व् निरकुंश नीतियां तो ,
प्रकट हो परशुराम काल बन जाते हैं ।।
शिव के शिष्य पर स्वयं शिव अंश भी हैं ,
विष्णू के षष्ठ अवतार में महान हैं ।
धर्म स्थापना के हेतु है समर्पित ,
परशुराम संहार के ही भगवान हैं ।।
नीचता के वंशज को गर्भ में मिटाने वाले ,
असहाय प्राणियो के मुख्य अभिमान हैं ।
एक दन्त नाम गणपति का उन्होंने दिया,
माँ के जीवनदान के वो पूर्ण वरदान हैं ।।
देता सन्देश आज परशुराम वंशज को ,
अत्याचारी शासकों को जड़ से मिटाइये ।
जाति पाँति राजनीति जो भी आज करते हैं ,
उनकी निकटता से दूर हट जाइए ।।
हक रोजगार का वो छीनते लुटेरे आज ,
बच्चों के ना हाथ में कटोरा पकडाइये ।
हक के लिए ये बलिदान मांगता है कौम ,
फरसा उठा के परशुराम बन जाइए ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-04-2015) को "अपनापन ही रिक्तता को भरता है" (चर्चा - 1950) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।